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माई-बाबूजी (कविता) गणेश नाथ तिवारी ‘विनायक’ के कलम से

गणेश नाथ तिवारी 'विनायक' समाज के प्रति ससक्त कवि बाड़े। आईं पढ़ल जाव इहाँ के एगो कविता

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बाबू दिन-रात अपना, बचवन के सोंचेले
माई मोर लोर कोर,अचरा से पोछेले

माई के हियरा,जइसे हउवे गाई
बेटवा तs बनि जाला, निपटे कसाई
कवनो स्वारथ बिना, बचवा के पोसेले
माई मोर लोर कोर,अचरा से पोछेले

केतना जतन कइली, केतना उपास हो
तबो नाही बेटवा के, मिलेला सवास हो
कइसे कइसे होइहे बेटवा, दिन-रात सोंचेले
माई मोर लोर कोर, अचरा से पोछेले

छाती से लगवली जाड़ा, गर्मी बरसात हो
“गुलगुल-गणेश” तबो, बुझे नाही बात हो
धूप छाह बबुआ के, अचरा से तोपेले
माई मोर लोर कोर, अचरा से पोछेले

बाबू दिनरात अपना, बचवन के सोंचेले
माई मोर लोर कोर, अचरा से पोछेले

गणेश नाथ तिवारी “विनायक “

गणेश तिवारी ‘विनायक’ के परिचय

गणेश नाथ तिवारी ‘विनायक’ पेशा से इंजिनियर बानी बाकिर भोजपुरी साहित्य से लगाव के कारने इहाँ के भोजपुरी में गीत कविता कहानी लिखत रहेनीं| भोजपुरी भासा से गहिराह लगाव राखे आला एगो अइसन मनई जेकर कलम जुवा सोच के बढिया सबदन में सजावेला| इहाँ के कइ गो कविता ‘आखर ई पत्रिका’, ‘सिरिजन तिमाही पत्रिका’ आदि में छपत रहेला| ‘जय भोजपुरी जय भोजपुरिया’ के संस्थापक सदस्यन में से एक गणेश जी भोजपुरी खातिर बेहतरीन काम कs रहल बानीं|

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