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कनवा अन्हरन्ह कै राजा हौ: राजनीतिक व्यंग्य के कविता

कवि निखिल पांडेय जी के कलम से

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बाजत अब ओकरे बाजा हौ
कनवा अन्हरन्ह कै राजा हौ

का दी का ली अब के पूछे चलs भले से राहि ना सूझे
भाग बनल किस्मत बहुराइल रंगल सियारन के दिन आइल
राष्ट्रवाद के नाव बिकाइल ,बनरन कै छाती हरियाईल
लोकतंत्र के ई मजा हौ,कनवा अन्हरन्ह के राजा हौ ।

लईकन से नारा लगवाई ,अपने मन के बात सुनाई
आपन अपने ढोल बजाके,चोरवन जैसे आंख चोराई
झूठ सांच के खूब मिलाई ,सोझल रसरी अस उलझाई
गटई काटे ऊ माझा हौ,कनवा अन्हरन्ह कै राजा हौ ।

जाति -धरम के बढे लडाई,तब्बे आपन हित फरियाई
नारा जय समाजवाद के ,सेठन के दरबार लगाई
बाहर वाला का करि पईहे,कुल नेता घरवे के रहिहे
कुर्सी के अईसन नासा हौ,कनवा अन्हरन्ह के राजा हौ

का करिहे कविराज बतावs ,गावs चाहे नाचत आवs ,
दरबारन के गाथा गाई,हलुआ पूरी चांप के खाई
गिरगिटवन कै करि बडाई,गांधी नेहरु के गरियाई
ई कविता सबसे ताजा हौ , कनवा अन्हरन्ह के राजा हौ ।

 

निखिल पांडेय

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