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इहों के जानी ईहों के पहिचानी: अपना लेखनी से नाव बनावत युवा लेखक ‘विवेक सिंह’

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भोजपुरिया माटी अपना भाषा संस्कृति के सहेजे के खातिर हर दउर में आपन सपूत पैदा कई लेले भा ढूँढ़ लेले। नवकाऽ लेखन में आपन नाव मजबूती से भोजपुरी साहित्य के पटल पs राखत विवेक सिंह के जनम सिवान जिला के रघुनाथ पुर प्रखंड के पंजवार गाँव में 12 अगस्त 1995 के कमलावती देवी आ दीनबन्धु सिंह के घरे भईल ।

जइसन कि लगभग हर निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में होला इनकरो गांवही में पालन-पोसन शिक्षा-दीक्षा भइल। स्कूल के बेरा पढ़ाई में मन ना लागे बाकिर कहानी सुने अउर पढ़े के बहुत सवख रहे,आ ई आसानो रहे काहे की गांव में लाइब्रेरी(पुस्तकालय) रहे। फिर गांव के माहौल में नाटक भी एगो आपन स्थान राखेला जवन आदमी लुकाइल कलाकार के बाहर निकाल देवे। अपना से बढ़ लोग के देख के सीखे के जुरून कुछो करा सकत बा। ई सब कुछ समय बाद बन्द हो गइल भा रुक गइल।

फेर शुरू भइल जब इनका उमिर के लड़िका तईयार भइले की हमनी के भी दुर्गा पूजा में नाटक कइल जाओ। आ ओह घरी आपन पहिला लेखनी ओहिजा से शुरू कइले । प्रेमचंद के कहानी रहे ‘घर जमाई’ जवना के आधार पs एगो नाटक लिखले। तीन अंक के पद्रह दृश्य वाला उहो भोजपुरी में। सबके अच्छा लागल बहुत लोग पसंद कइलस। ई सफर लगातार चलत गइल। तीन से चार साल ले। ओकरा बाद कविता लिखे में आपन हाथ अजमवने। जवन पुरुआ के पेज पs  स्थान मिलल स्व.धनन्जय तिवारी जी के स्वजन्य से फेसबुक द्वारा। 2017 से कहानी लिखे के प्रयास कइले जवन पुरुआके पेज फेर जोगीरा डॉट कॉम वाला बेबसाईट पs छपल।

फेर जय भोजपुरी जय भोजपुरिया ग्रुप में जगह मिलल। जहवा से तिमाही “पत्रिका सिरिजन” के प्रकासन होला ओजा ढेरे कहानी लगातार छपल। ओही साथे एगो पत्रिका आवेला “साहित्य सरिता” ओहूमे कहानी लगातार छपल।

सबसे स्नेह जवना कहानी के मिलल उs “प्रेम-दान” “रफथरो” “जुआरी” “ललक रंग” “हॉट कॉफी” “नेह में छोह काहे” आ एगो हिन्दी मे लिखल कहानी रहे स्मृति-प्रेम जवन बड़ौदरा के “संगिनी” पत्रिका में छपल। केतना सारा कहानी पs शॉर्ट फिल्म भी बनल। बीच मे लेखनी रुकल आ फेर चलल। अबे कुछ कहानी  यायावरी वाया भोजपुरी पs रिकॉर्डिंग ख़ातिर देले बाड़े।

बहुत अइसन स्नेही बानी जे इनकरा के अपना ह्रदय में स्थान देले अउर मार्गदर्शन भी कइले लोग।

विवेक सिंह के कहल बा की “अगर शब्द सार्थक ना होइ तs आदमी के जीवन आदर्श ना बन पाई दोसरा के जीवन ख़ातिर। हमनी के अपना समाज अउर मातृ भाषा ख़ातिर कुछ कs दी जा एगो ओस के बूंदों बराबर तs जीवन सार्थक हो जाई।  अउर साहित्य जरूरी बा अपना नया सिरिजन ख़ातिर।”

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