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अतवारी छौंक: बात कुछ पुरनका दौर के!बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी “नय्यर साहब”

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खबर भोजपुरी रउरा लोग के सोझा एगो नया सेगमेंट लेके आइल बा , जवना में रउरा के पढ़े के मिली फिलिम इंडस्ट्री से जुड़ल रोचक कहानी आ खिसा जवन बितsल जमाना के रही।

आजू पढ़ी ओ पी. नय्यर साहब अइसन व्यक्तित्व रहल बाड़े जेकरा से लोग या तs प्यार कs सकेला (जेकर संख्या लाखन में होई) या नफरत कs सकेला ( जेकर संख्या खाली इकाई में होई)।

पचवा -छठवाँ दशक के फिलिम संगीत के सुरीला दौर में रुचि राखे वालन में अधिकतर श्रोता शंकर-जयकिशन के प्रशंसक रहल होखीहें, केहू के नौशाद के राग से प्यार हो गइल होखी, केहू के बर्मन दादा के शौक रहल होखी आ शायद हो सकेला कि कुछ लोग सलीलदा के दीवाना हो गइल होखे बाकिर ओहमें से केहू नय्यर साहब के प्रतिभा के कायल भइल बगैर नाहीं रह सकेला।

अक्सर लताजी आ नय्यर साहब के बीच के तथाकथित अनबन के लेके अखबार-पत्रिका में बहुत कुछ छपल बा। एगो पत्रिका में साक्षात्कार लेत घरी उनुका से पूछल गइल कि ऊ लता के कवना तरह के गायिका मानत बानी, नय्यर साहब के जवाब रहे कि “लता जी बहुते बढ़िया गायिका हई। लता जइसन गायिका के जनम सौ साल में एक बेर होला। बाकिर ई जरूर कहब कि आशा भोसले जइसन गायिका हजार साल पs जनम लेली।” आशाजी के नय्यर साहब ना खाली निखरले बलुक अपना बेजोड़ प्रतिभा के माध्यम से आशाजी पs ई लेबल भी हटा दिहले कि ऊ खाली कैबरे भा सपोर्टिंग हीरोइन खातिर गा सकेली।

भलहीं ये रात फिर ना आएगी के “फिर मिलोगे कभी इस बात का वादा कर लो” आ आपसे मैंने मेरी जान मोहब्बत की है, जान क्या चीज़ है, ईमान भी ले सकती हैं हो आ ‘कश्मीर की कली’ के इशारों-इशारों में दिल देने वाले बता ये हुनर तूने सीखा कहां से हो, ‘तुमसा नहीं देखा’ के देखो क़सम सेहो या फिर ‘फिर वही दिल लाया हूं’ के आंखों से जो उतरी है दिल में तस्वीर है एक अनजाने के होखे,, आशा भोसले लताजी के जइसन रोमांस आ दरद शिद्दत से अभिव्यक्त कइली। हँs, ई अलग बात बा कि प्रसिद्धि आ लोकप्रियता के शीर्ष आ पंचम (आर.डी. बर्मन) के संगत में रहला के बाद आशाजी नैयर साहेब से कन्नी काट लिहली। इनकर साझा सफर के अंतिम मंजिल प्राण जाए पर वचन ना जाए’ के गीत “चैन से हमको कभी, आपने जीने ना दिया, जहर भी चाहा अगर पीना तो पीने ना दिया” रहे।

आशाजी के एह गीत खातिर ‘फिल्मफेयर अवार्ड’ मिलल, जवना के ऊ खाली नैयर साहेब से स्वीकार कइली। शायद ई कवनो बड़हन संगीतकार के कवनो बड़हन गायक के दिहल आदरांजलि रहे।

नय्यर साहब संगीत के कवनो औपचारिक शिक्षा ना लेले रहले अवुरी राग-रागिनी से अनजान रहले, लेकिन संगीत के रचना में एतना डूबल रहले कि उs अपना बलबूता से शास्त्रीय गीत के रचना करत रहले। अकेली हूं मैं पिया आ (‘संबंध’), देखो बिजली डोले बिन बादल के (‘फिर वही दिल लाया हूं) आ छोटा-सा बालमा अखियन नींद चुराए (‘रागिनी’) सुनला के बाद कई गो बेहतरीन मास्टर लो आपन कान पकड़ लेले रहले। नैयर साहेब के तर्क रहे कि का होई अगर गूंगा आदमी के बोले के ना आवे तs कम से कम गुड़ के स्वाद तs पहिचान सकेला!

जब सत्तर के दशक में पंचमदा, कल्याणजी-आनंदजी आ लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के तेज संगीत के लहर चलत रहे, किशोर कुमार के तूफान रफी साहेब के गद्दी के हिलावत रहे, ओह दौर में उहो अपना संगीत के कायाकल्प करे के सफलतापूर्वक प्रयोग कइले रहलें। जब “एक बार मुस्कुरा दो” के रिकार्डिंग के दौरान एक-एक कs के सौ संगीतकार स्टूडियो में घुस गईले तs गेटकीपर कहलस कि ‘बर्मनदादा के गाना ना, नैयर साहेब के गाना इहाँ रिकॉर्डिंग होखता, एतना लोग कहां से आईल बाड़े।’ तब नय्यर साहब बीच में आके कहले कि गीत हमार हs, लेकिन स्टाइल नया बा। आ जब गाना “तू औरों की क्यों हो गई” रिकार्ड कs के रिलीज भइल तs साल भर हर जगह पs इहे गाना बाजत रहल। जे समय के गति के समझत रहे आ बैकग्राउंड म्यूजिक में व्यापक प्रयोग करत रहे (‘रात फिर ना आएगी’ के पार्श्व-संगीत के आजो सलीलदा के ‘क़ानून’ आ वसंत देसाई के ‘अचानक’ के पार्श्व-संगीत के समतुल्य राखल जाला) उs शख़्स जेकरी एके धुन “ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का (‘नया दौर’) पs पिछला साठ सालन में कम-से-कम अब ले एक करोड़ सादीयन में बीस करोड़ बाराती नाच चुकल होखी, खाली एतना ही कहल जा सकेला -” नय्यर साहब बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी, मेरी ज़िंदगी में हुजूर आप आए। ”

 

 

 

 

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