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सूइये तागा जोड़े में उजर गईल जिनिगी (कविता) मैकश के कलम से

मैकश के कविता जिनगी के मय पहलुअन के शब्दन में समेटले रहेला....

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कोइला के धाह में ककड़ गईल जिनिगी
सूइये तागा जोड़े में उजर गईल जिनिगी

लईकाई में हमरो बड़ बड़ कहानी रहे
एगो नाय रहे आ छाती भर पानी रहे
आन्ही पानी आईल कबड़ गईल जिनिगी
सूइये तागा जोड़े में उजर गईल जिनिगी

जे मन के हिरिख रहे , रह गईल मने में
पर पगलेट अदमी, फंसल रहल धने में
मरलस समे झठहा जस झड़ गईल जिनिगी
सूइये तागा जोड़े में उजर गईल जिनिगी

चूरूवा भर साँस बा, घोंट घोंट पिये के बा
एगो जिनगी में,केतना जिनगी जिये के बा
धरे – धरे में हाथ से ससर गईल जिनिगी
सूइये तागा जोड़े में उजर गईल जिनिगी

जान बावे कम ,अरमान अभी जादा बाटे
घाव बा पुरान , निशान अभी जादा बाटे
एहर ओहर सगरे.. पसर गइल जिनिगी
सूइये तागा जोड़े में उजर गईल जिनिगी

मैकश के परिचय

गांव के माटी-पानी में सनाइल एगो नब्बे के दशक के भारतीय जवना के आपन भाषा आ संस्कृति में अटूट विश्वास आ लगाव बा। ‘मैक़श’ के परिचय इंहा एगो अइसन साधारण आ जमीन से जुड़ल नवसिखुआ लइका से बा जवना के कलम आ शब्द नवहन के बात करेला। उ संवेदना, भाव आ अंदाज के लिखे के एगो छोटहन कोसिस जवना के समाज आ लोग साधारणतः नजरअंदाज क देला।

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