लोक आस्था के महापरब छठ के सुरुआत आम तौर पs दिवाली के छव दिन बाद होला। लोग बेसब्री से एह महापरब के इंतजार करेला लो। हिन्दू धरम में एकर बड़ महत्व बा। मुख्यतौर पs छठ पूजा बिहार, झारखंड आ पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सन में मनावल जाला। बाकिर, अब बड़ पैमाना पs देसभर के कइयन राज्यन आ बिदेसन में मनावल जा रहल बा। छठ पूजा में सूरज देव आ छठी मईया के पूजा के विधान बा। अइसे तs ई महापरब बरिस में तीन बेर होला। एगो चइत महीना, दूसरका कातिक आ तीसरका भादो महीना में। एमे कातिक महीना के छठ के विशेष महत्व बा। महिला लोग एह व्रत के अपना संतान के सुख शांति आ लमहर उमिर खातिर करेला लो। आईं जानल जाव छठ पूजा के सुरुआत कब से भइल ? भगवान सूरज के आराधना कब से सुरू भइल? एह बार छठ महापरब कब से कब तक मनावल जा रहल बा? आईं जानल जाव सबकुछ…
पौराणिक मान्यता के अनुसार, त्रेता युग में माता सीता सबसे पहिले छठ कइले रहली। भगवान श्रीराम भगवान सूरज नारायण के आराधना कइले रहनी। द्वापर में दानवीर कर्ण आ द्रौपदी सूर्य के उपासना कइले रहे लो। एकरा अलावे छठी मईया के पूजा से जुड़ल एगो कथा राजा प्रियंवद के बा, जे सबसे पहिले छठी मईया के पूजा कइले रहस। मान्यता बा कि छठ महापरब पs माता अपना संतान के लमहर उमिर, अच्छा स्वास्थ्य आ भविष्य खातिर सूरूज देव आ छठी मईया के पूजा-अर्चना करेला लो। एह दौरान महिला लोग 36 घंटा के निर्जला व्रत रखेला लो।। इहे वजह बा कि एह व्रत के सबसे कठिन व्रतन में से एगो मानल जाला।
श्रीराम आ सीता कइले रहे लो सूरज के उपासना
पौराणिक कथा के अनुसार, लंकापति रावण के वध कइला के बाद भगवान श्रीराम अयोध्या लवटले। बाकिर भगवान राम पs रावण के वध के पाप रहे, जवना से मुक्त होखे खातिर ऋषि-मुनियन के आदेस पs राजसूय यज्ञ करावाल गइल। तब ऋषि मुग्दल श्रीराम आ माता सीता के यज्ञ खातिर अपना आश्रम में बोलवलें। मुग्दल ऋषि के कहला के अनुसार, माता सीता कातिक शुक्ल के षष्ठी तिथि के सूर्यदेव के उपासना के व्रत रखली। इस दौरान राम आ सीता माता पूरा छव दिनन तक मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहके पूजा-पाठ कइल लो। एह तरे छठ परब के इतिहास रामायण काल से जुड़ल बा।
जानीं, पंचांगन के अनुसार कवना तिथि से होला छठ के सुरुआत
बनारस आ मिथिला पंचांग के अनुसार, हर साल कातिक महीना के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी तिथि से छठ पूजा के सुरूआत हो जाला। ई महापरब पूरा चार दिन तक चलेला। दिवाली खत्म होखतही छठ गीतन से एकर माहौल बने लागेला। छठ पूजा के मुख्य व्रत कातिक महीना में शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि के रखल जाला। पहिला दिन नहाय-खाय के संगे छठ पूजा के सुरुआत होला। दूसरका दिन खरना होला। ओहिजा तीसरका दिन सांझ के अरघ आ चउथा दिन उगत सूरज के अर्घ्य देला के संगे व्रत के पारण कइल जाला आ एही के संगे एह परब के समापन हो जाला। अइसन में आईं जानल जावs एह साल छठ पूजा कब से सुरू हो रहल बा।
नहाय खाय कब बा, का-का होला एह दिन?
नहाय-खाय से छठ पूजा के सुरुआत होला। अबकी बेर पांच नवंबर माने मंगर के नहाय खाय हs। नहाय खाय जइसन कि एकरा नावे से स्पष्ट होला कि एह दिन नहा के भोजन करे के विधान बा। नहाय खाय के दिन व्रत करे वाला महिला लोग नदी भा तालाब में नहाला लो। जदि नदी में नहाइल संभव ना होखे तs घरो में नहाइल जा सकेला। एकरा बाद व्रती महिला लोग भात, चना दाल आ लौकी के प्रसाद बनाके ग्रहण करेला लो।
छठ खरना पूजा में केकर आराधना होला?
छठ पूजा के दूसरका दिन के खरना कहल जाला। अबकी बेर खरना छव नवंबर माने बुध के बा। कातिक मास के शुक्ल पक्ष के पंचमी तिथि के खरना के प्रसाद बनावल जाला। एह दिन माई लोग दिनभर व्रत रखेला आ पूजा के बाद खरना के प्रसाद खाके 36 घंटा के निर्जला व्रत के आरंभ करेला लो। एह दिन माटी के चूल्हा में आम के लकड़ी से आग जराके प्रसाद बनावल जाला।
छठ के पहिला आ दूसरका अरघ कब बा?
छठ पूजा के तीसरका दिन सांझ के बेरा नदी भा तालाब में खड़ा होके डूबत सूरज देव के अरघ दिहल जाला। अबकी बेर सात नवंबर माने बियफे के पहिला अरघ दिहल जाई। एमे बांस के सूप में फल, गन्ना, चउर के लड्डू, ठेकुआ सहित आउर सामग्री रखके पानी में खड़ा होके पूजा कइल जाला। छठ पूजा के चउथा आ आखिरी दिन उगत सूरज के अरघ दिहल जाला। अबकी बेर आठ नवंबर माने सुक के दूसरका अरघ दहल जाई। एह दिन व्रती लोग पारण करी। संगही अपना संतान के लमहर उमिर आ अच्छा भविष्य के कामना करी लो।