Chhaap Literature Festival 2024: मनुष्य के जीवन के सार हs Akhilendra Mishra के पुस्तक ‘अभिनय, अभिनेता, और अध्यात्म’

khabar Bhojpuri Desk

Chhaap Literature Festival 2024: अखिलेंद्र मिश्रा, एगो अइसन नाम जे अपना हर किरदार के शिद्दत से जियले बाड़ें। बिहार के एगो छोट से गांव से निकलल ई कलाकार मनोरंजन के दुनिया में आपन अनोखा पहचान बनवलें। 90 के दशक में जब टीवी सीरियल चंद्रकांता आइल, तs ‘क्रूर सिंह’ के रोल अखिलेंद्र के घर-घर में मशहूर कs देलस। एकरा बाद फिलिम सरफरोश में ‘मिर्ची सेठ’ होखस भा लगान में ‘अर्जन’, ऊ हर रोल के अइसन निभवलें कि मानो ऊ उनकरे खातिर लिखल गइल होखे। 2008 में आइल सीरियल ‘रामायण’ में अखिलेन्द्र मिश्रा ‘रावण’ के किरदार निभाके खूब वाहवाही लूटले रहस। बाकिर, अभिनय के एह लमहर जतरा के दौरान, अखिलेन्द्र मिश्रा एगो अइसन एहसास के आभास कइलें आ ओकरा पs पुस्तक लिखलें, जवन हर व्यक्ति आ अभिनेता खातिर कवनो वरदान से कम नइखे।

19 अक्टूबर के जमशेदपुर के आदित्यपुर ऑटो क्लस्टर में आयोजित ‘छाप’ इनॉगरल लिटरेचर फेस्टिवल में अखिलेन्द्र मिश्रा अपना किताब “अभिनय, अभिनेता और अध्यात्म” पs चंद बात कहलें। ऊ बतवलें अध्यात्म का हs आ अभिनेता खातिर ई काहे जरूरी बा। एक्टर अपना किताब के सारांश कुछ उदाहरणन के संगे समझवलें।

अध्यात्म के हमनी के जिंदगी से का रिस्ता बा आ एकरा के कइसे पहचानल जा सकत बा, एहपर अखिलेन्द्र मिश्रा आपन बात कुछ अइसे सुरू कइलें। “ब्रह्मांड के जनमे ध्यात्मिक बा। चाहे हम होखी, रउआ होखी, ई माइक होखे, कुर्सी, टेबल, फूल, ऑडिटोरियम होखे, सब कुछ अक्षुण्ण से बनल आ ई पूरी प्रक्रिया आध्यात्मिक बा। मनुष्य के जनमो आध्यात्मिक बा। मनुष्य, शिशु रूप में जब माँ के गर्भ में होला, तब नाभि से सांस ले रहल होला आ जइसही धरती पs आवेला, दाई नाड़ी काटेली, फेर शिशु के सांस नाक से चलल सुरू हो जाला। ई पूरा प्रोसेस आध्यात्मिक बा। अपना अंदर के जवन आतंरिक बेवस्था बा, एकरा के जानल स्वः के जानल, अपना आप के जानले अध्यात्म बा। हर मनुष्य आध्यात्मिक बा।”

ऊ अपना विचारन के आगे बढ़ावत अभिनेता के जिंदगी में अध्यात्म कइसे मवजूद बा, एह पs प्रकाश डललें। ऊ कहत बाड़ें, “काहेकि हम अभिनेता बा, एहिसे अभिनेता खातिर ई पुस्तक लिखले बाड़ें। एह सृष्टि रुपी मंच पs प्रत्येक मनुष्य अभिनेता बा, अपना-अपना किरदार अदा कs रहल बा। हर मनुष्य एह सृष्टि रुपी मंच पs आपन किरदार निभावेला आ फेर अपना किरदार के पूरा कs के निकल जाला। अभिनय, अभिनेता आ अध्यात्म, पूरा सृष्टि के जवन मूल बा, ऊ अध्यात्मे बा।”

पूरा देह कुछ ना करेला, सूक्ष्म देह सब करेला: अखिलेन्द्र

“मनुष्य जिनगी में एगो चरित्र निभा रहल बा। बाकिर ऊ अभिनेता हs एह जिनगी में आ ओकरा दोसरो एगो किरदार मिलल बा, तs ओह आवरण के जो ओढ़ेला, ऊ खाली एह देह के ऊपर से ना ओढ़ेला, काहेकि अभिनेता के जवन तइयारी बा, ऊ खाली एह देह के ना होला। रउआ अपना निजी जिनिगियो में, तइयारी सूक्ष्म देगा के हs। पूरा देह, सूक्ष्म देह, और सूक्ष्तम देह। ई देह तs उपकरण हs, देह कुछ ना हs। देह कुछ ना करेला, करे वाला हमनी के भीतर बा, ऊ सूक्ष्म देह बा। ई जवन देह हs ई एह देह के चला रहल बा। करण भीतर बा, ई उपकरण हs, ई पांच ज्ञानेन्द्रियां आ पांच कर्मेन्द्रियां।”

“ई देह जवन हमनी के हs, ई पूरा के पूरा ब्रह्मांड हs आ ब्रह्मांड के जेतनना शक्ती बा ऊ हमनी के भीतर बा। जब रउआ ओह मार्ग में आगे बढ़ेम तs धीरे-धीरे उ शक्ती जागृत होखे लगिहें सs। ई हs साधना। ई पूरा के की पूरा आध्यात्मिक प्रक्रिया हs।”

अखिलेन्द्र मिश्रा के कब भइल अध्यात्म के आभास?

ऊ कहत बाड़ें, “हम एक्टिंग करत गइनी, करता गइनी आ एक दिन पता चलल कि हमहूं एक्ट कs रहल बानी आ हमरा लागल कि हम उहे हई। शो चल रहल बा, दर्शक बइठल बा लो, आ अचानक, पता ना कहां से का पावर आइल आ हम बिलकुल फ्लो में बह गइनी। हम IPTA (Indian People’s Theatre Association) के सचिव एमएस सथ्यू साहब जिनका संगे हम मैक्सिमम थिएटर कइनी, उनका के प्रणाम करत बानी, ऊ कबो बोलले नइखे कि तहार परफॉरमेंस बहुत कमाल के भइल। बाकिर ओह दिन ऊ हमरा से पूछलें- ‘का भइल तहरा? आउटस्टैंडिंग काम कइल तु।’ ओह दिन हमरा लागल हमरा भारत रत्न मिल गइल। ओकरा बाद जब दूसरका शो खातिर रिहर्सल करत रहनी, जवना के नाम हs ‘द्रोणाचार्य’, ऊ शो आजो होला आ हम 35 सालन से ओह शो में एक्ट कs रहल बानी। हम ओह नाटक से एहिसे जुड़ल बानी, काहेकि ओह नाटक में हम बैकस्टेज से काम सुरू कइनी, ऑनस्टेज तक आपन जर्नी। ऊ नाटक हमरा जड़ के याद दिलावेला कि हम कहां से सुरू से भइल रहनी, कहां तक पहुंचनी, ऊ नेपथ्य, आ बैकस्टेज वर्क।”

दिलीप कुमार आ आमिर खान अध्यात्म के स्वीकारल लो

अखिलेन्द्र मिश्रा अभिनेता के जिनगी में अध्यात्म के महत्ता के फिलिम इंडस्ट्री के लेजेंड्स के उदाहरण के संगे कुछ अइसे समझवलें। एक्टर कहलें, “स्वर्गीय दिलीप कुमार कहल करत रहलें- ‘हम पहिले फिलिम करे खातिर काम करत रहनी बाकिर बाद में फिलिम करत-करत हमरा पता चलल कि हम तs ई करिये नइखे रहल, जब हम फिलिम कs रहल बानी, तs एगो रूहानी ताकत हमता अंदर आ जाला, जवन हमरा से ई सब करवा देला। हमरा पता नइखे होत कि हम आपन सीन कहां खत्म करेम।’ अखिलेन्द्र मिश्रा आगे कहलें कोनस्टैनटिन स्टेनिसलाव्स्की (Konstantin Stanislavski) के किताब के उदाहरण देत अध्यात्म के बारे में समझवलें। एक्टर आमिर खान से आपन मुलाकात आ ओह दौरान भइल बातचीत के कुछ अंश साझा कइलें। ऊ कहलें, “पिछला दिनन आमिर खान से हमार बात भइल रहे। ऊ कहलें- ‘हमहूं फिलिम, काम करे खातिर करत रहलें, हमरो बाद में ई लागल कि हम नइखी कs रहल, केहू करवा रहल बा, होता चलल जा रहल बा।’ एकरा अलावे अखिलेन्द्र मिश्रा डायरेक्टर सुभाष घई के अध्यात्म से रिश्तो के जिकिर कइलें।

अखिलेन्द्र मिश्रा अपना पुस्तक में अभिनय, अभिनेता आ अध्यात्म के रिश्ता के बड़ गहराई से समझवले बाड़ें। ऊ एह पुस्तक के खासियत तs बतवलही बाड़ें, संगही इहो बतवलें की ‘अभिनय, अभिनेता आ अध्यात्म’ पिछला आठ महीनन से बेस्ट सेल्लिंग बुक्स में से एगो बनल बिया।

जइसे अध्यात्म में इंसान खुद के गहराई से समझे के कोसिस करत बा, ओइसही एगो अभिनेता अलग-अलग किरदारन के निभावत अपना भावना के पहचानत बा। एगो सफल अभिनेता उहे होला जे हर किरदार के भीतर से महसूस करे, ठीक ओइसही जइसे एगो साधक ध्यान में डूबके खुद के जाने के कोसिस करेला आ ई बात अखिलेन्द्र मिश्रा अपना बातन आ अपना किताब के माध्यम से बखूबी समझवले बाड़ें।

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