सुप्रीम कोर्ट : मंगर के सुप्रीम कोर्ट के फैसला से 40 प्रतिशत दिव्यांग लोग में तक खुशी के लहर आइल। जब न्यायाधीश बीआर गवाई, अरविंद कुमार आ केवी विश्वनाथन के पीठ कहलस कि चालीस फीसदी बेंचमार्क विकलांगता होखला से जबले कवनो विशेषज्ञ रिपोर्ट ना होखे कि उम्मीदवार एमबीबीएस करे में असमर्थ बा तबले कवनो आदमी के मेडिकल शिक्षा लेबे से ना रोकल जा सके।
दरअसल, स्नातक चिकित्सा शिक्षा नियमावली 1997 के तहत 40 प्रतिशत चाहे ओकरा से जादे विकलांग छात्र के मेडिकल शिक्षा लेवे से रोकल गइल बा। एह कानून के चुनौती देत ओमकार नांव के छात्र अदालत में याचिका दायर कइले रहले। जवना सुनवाई में सबसे पहिले न्यायाधीश बीआर गवाई, अरविंद कुमार अवुरी केवी विश्वनाथन के पीठ 18 सितंबर के अपना आदेश के विस्तृत कारण बतवलस।
पीठ कहलस कि, “बेंचमार्क विकलांगता के मौजूदगी से ही कवनो उम्मीदवार एमबीबीएस कोर्स के पात्र होखे से अयोग्य ना होई। उम्मीदवार के विकलांगता के आकलन करेवाला विकलांगता बोर्ड के इ रिकॉर्ड करे के होई कि उम्मीदवार के विकलांगता एह कोर्स के आगे बढ़ावे में बाधा डालता। शीर्ष अदालत आगे कहलस कि विकलांगता बोर्ड के इहो निष्कर्ष निकाले के कारण बतावे के चाही कि उम्मीदवार ए कोर्स के आगे बढ़ावे के पात्र नईखे। एकरा बाद मंगर के दिने एमबीबीएस कोर्स में दाखिला लेबे के अनुमति दिहल गइल काहे कि मेडिकल बोर्ड कहले रहुवे कि उऽ बिना कवनो बाधा के मेडिकल शिक्षा ले सकेलें। पीठ कहलस कि विकलांगता से पीड़ित अभ्यर्थी के एमबीबीएस कोर्स करे के क्षमता के विकलांगता आकलन बोर्ड के जांच करे के चाही।