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अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पs आईं जानल जाए भोजपुरी के लिपि :कैथी के बारे

कैथी- उत्तर भारत के एगो अइसन लिपि जवन लगभग पांच सौ साल ले खूबे बरियारी से अपना वजूद में रहल, आ जेकर आपन एगो समृद्ध इतिहास रहल। आजु बहुते कम लोग कैथी से परिचित होइ, भोजपुरी भासा के आपन लिपि, जवना के प्रसिद्धि एतना रहे जे उ राजस्थान के मारवाड़ी भासा खातियो एक समे में परयोग भइल रहे, बाकिर आजु उहे भोजपुरिया लोग कैथी के नावो कादो जानत होइ की ना।

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आदित्य राजन :भोजपुरी के नवहा लेखक-गायक

भोजपुरी के लिपि:कैथी

 

आजू अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हs ।सब लोग अपना मातृभाषा दिवस के उत्सव के बड़ा जबर आ अलगा-अलगा तरीका से मना रहल बा। आ हमनी के मातृभाषा भोजपुरी हs एह से ख़बर भोजपुरी एह उत्सव के मनावे में काहें पाछे रहे आखिर भाषा के उत्सव के बात तs ओकर विशेष जानकारी शेयर कर रहल बा।

भोजपुरी के ओरात भा खत्म होत लिपि ,कैथी लिपि के बारे में।

कैथी- उत्तर भारत के एगो अइसन लिपि जवन लगभग पांच सौ साल ले खूबे बरियारी से अपना वजूद में रहल, आ जेकर आपन एगो समृद्ध इतिहास रहल। आजु बहुते कम लोग कैथी से परिचित होइ, भोजपुरी भासा के आपन लिपि, जवना के प्रसिद्धि एतना रहे जे उ राजस्थान के मारवाड़ी भासा खातियो एक समे में परयोग भइल रहे, बाकिर आजु उहे भोजपुरिया लोग कैथी के नावो कादो जानत होइ की ना।

त आईं आजु जानल जाव अपना माईभासा भोजपुरी के लेखन पद्धति आ लिपि “कैथी” के बारे में।

कैथी शब्द के उत्पत्ति भइल बा ‘कायस्थ’ से। कायस्थ उत्तर भारत के वर्तमान बिहार आ उत्तर प्रदेश के एगो बिसेस जाति हऽ जेकर मुख्य पेसा व्यवसायिक आ आधिकारिक लिखा –पढ़ी के रहे, उ लोग अपना लिखा-पढ़ी में जवन लिपि के परयोग करे लोग, उ ‘कायस्थी’ कहाइल, उहे आगे कायथी आ फेरु कैथी भइल।

तब कैथी खाली भोजपुरिये खाती ना बलुक मगही, मैथिली, अवधी, उर्दू आ उत्तर भारत के अउरियो क्षेत्रीय भासन के लिपि के रूप में परयोग होखे।

19वीं शताब्दी में बीकानेर ,राजस्थान में ‘सुदामा-चरित’ के एगो पांडुलिपि पावल गइल जवन पूरा कैथिए में लिखल रहे, एह बात से एह लिपि के प्रसिद्धि आ पँहुच के अंदाजा लगावल जा सकेला। गिरमिटिया आ कन्त्राकी के रूप में भारत से हमनी के जे पूर्वज लोग मॉरीशस, त्रिनिदाद, फिजी जइसन देसन में गइल, उ लोग साथे आपन भासा आ लिपियो ले गइल, एसे ओहिजु अभिनो कुछ लोग कैथी के जानकार बा।

कैथी देवनागरी, गुजराती परिवार के लिपि आ सिलोटी /सिलैथी नागरी, महाजनी आ अन्य कुछ उत्तर भारतीय लिपियन के पूर्वज लिपि मानल जाले। देवनागरी आ फ़ारसी से कैथी के ढेर निकटता बा।

कैथी के महत्व तब बढ़ल जब ओकर लोकप्रियता देखि के उत्तर भारत के तत्कालीन अंगरेज सरकार ओके प्रशासनिक कामकाज आ शिक्षा के उद्देश्य से आधिकारिक बनवलस। सन 1875 में, तबके North-Western Provinces & Oudh (NWP & O) आ सन 1880 में तत्कालीन Bengal Presidency (जेकरा में बिहारो रहे) के सरकार, कैथी के मानकीकरण करे खाती प्रोत्साहित भइल आ एकरा के अपना अपना राज्यन के न्यायिक, प्रशासनिक कामकाज आ शिक्षा खाती आधिकारिक रूप से चयनित कइलस।

ओह बेरा आ ओहु से कई सौ साल पहिले ले एह क्षेत्र के लोग कैथी के बढ़िया जानकारी राखत रहे, आ इहे कारन रहे जे सरकार तबके प्राथमिक विद्यालयन में कैथी के शिक्षा के पच्छ में रहे। दरअसल ओ बेरा इसाई मिशनरियन के अंग्रेज सरकार पर बरियार प्रभाव रहे, त ई  मिशन अपना धर्म के प्रचार प्रसार खाती क्षेत्रीय भाषन के आपन माध्यम बनावँ सँ। उ बाइबल आ अन्य धार्मिक साहित्यन के क्षेत्रीय भासन में अनुवाद करा के ओके आम जनमानस ले पँहुचावेसँ, जेकरा खाती ओकनी के ए कुल्हिन भासा,बोलिन के संवर्धन खाती बिसेस रूप से धेयान देवेके परे।

कैथी के उत्पत्ति के जो बात कइल जाओ त एकर कवनो ठोस जानकारी ना भेंटाला, मोटा मोटी देखल जाओ त ई कहल जा सकेला कि कैथी के बारे में कुछ कुछ जानकारी आ प्रमाण 16वीं शताब्दी के आसपास के मिलेला। शेरशाह सूरी (1486-1545) के समयकाल के कुछ पांडुलिपि भेटाइल बा जवन कैथी में लिखल रहे।

प्रख्यात भासाव  द्डॉ सुनीति कुमार चटर्जी जी तऽएक जगहि कहले बानी जे-

“7वां शताब्दी के आसपास पुरान देवनागरी प्रकार के वर्णमाला जवन उत्तर पच्छिम भारत में पहिले प्रचलित रहे, जेकरा के गुप्त भा आद्य नागरी लिपियो कहल जाला, उहे कैथीहऽ। उहे ओ बेरा मगध के भोजपुरिया भूभाग में प्रचलित भइल आ अभिन ले उ इ जमीन धइले बिया। अपना सरलता के कारन कैथी मिथिला ले पसर गइल रहे, जहां खाली बाभन आ ऊंच जात के लोग पुरनका मैथिलि/ तिरहुती जानत रहे लोग।”

 

अपना संरचनात्मक बिसेसता आ भौगोलिक फइलाव के आधार पर कैथी के नयकी इंडो—आर्यन भासन के पूरबी समूह (जेकरा में बांग्ला, मैथिली, उड़िया सामिल बाड़ी स) के बीचो बीच राखल गइल बा।

 

कैथी  “आबूगीडा” प्रकार के लिखाई तकनीक हऽ, जेकरा में व्यंजन में स्वर आ स्वर के चीन्हा मिलाके लिखल जाला, एकर एगो बिसेसता हऽकि लिखत घरी ओकरा ऊपर शिरोरेखा भा पड़ी पाई ना लगावल जाला।

कैथी के वर्णमाला में बहुते परिवर्तन देखे के भेंटाला, पुरान प्राप्त दस्तावेजन के देखल जाओ तऽ अलगे अलगे भासन खातिर लिखाए के वजह से आ उच्चारण के दोस के कारण कैथी के अच्छरन आ शब्द संयोजन में अलगाव देखेके मिलेला। उच्चारने के दोष के कारण कैथी में आधा अच्छर के परयोग आ संयुक्ताक्षर में विभिन्नता देखेके मिलेला, कहीं कहीं आधा अच्छर के परयोग होला, कहीं कहीं हलन्त लगाके लिखाला, त कहीं कहीं आधा अच्छर के जरूरते ना परेला।

एह दोस के निवारण परसिद्ध भासाविद्जॉर्ज ग्रियर्सन  सन 1886 में आइल आपन विस्तृत शोध पुस्तक “Linguistics Survey of India” में कइले बाड़े, आपन एह किताब में ग्रियर्सन कैथी के नाया आ संशोधित फॉण्ट ढलवा के नया वर्णमाला छपववले, जवन कि आजु हमनी के इंटरनेट आ अन्य डिजिटल फॉर्मेट में देखेके भेंटाला।

 

सोरहवां सदी से ले के बीसवाँ सदी के अधिया ले, लगभग 1960 ले, कैथी के जोरदार परयोग आ बेवहार लउकेला, ओकरा बाद एकसूत्रता आ हिन्दी आ देवनागरी के देस के भासा आ लिपि बनवले के चक्कर में कैथी कहाँ दबा बिला गइल, एकरा पऽ केहु धेयाने ना दिहल। सन 1893 में बंगाल में सबसे पहिले कैथी के पतन भइल सुरु भइल, जब देवनागरी के पछधर लोग देस के स्वतंत्रता पूर्व राजनितिक- सामाजिक दशा के हवाला दे के कैथी के प्रयोग के खतम करे के दबाव डालल।ओह लोग के दबाव के कारन कोट कचहरी से, स्कूलन से कैथी के परयोग पर अंकुश लगावल गइल, आ आगे धीरे धीरे कैथी के आपन वजूद खतम होखे लागल।

आज केतना भोजपुरिया लोग होइ जे कैथी के बारे में जानत होइ? केतना लोग के चिन्हत होइ कैथी लिपि के?

कुछ दिन पहिले के अखबार के रिपोट रहे जे, कचहरी में कुछ पुरान दस्तावेज अभिनो कैथी में लिखल बाड़ी स, जेकरा के जरूरत परला पर पढ़े वाला लोग नाममात्र के बा, ई एगो चिंता के बिसय बा।

आ ओहू से बेसी चिंता के बाति ई बा कि हमनी के एगो संस्कृति, एगो परम्परा जेकर इतिहास एतना समृद्ध आ बरियार रहल बा, उ कुछ दिन में विलुप्त हो जाई, खतम हो जाई।

जरूरत बा कैथी के फेरु से जियावेके, जरूरत बा आपन अस्तित्व बचावेके, आवे वाला पीढ़ी एह परम्परा से अवगत होइ तबे हमनी के भोजपुरी आगे बढ़ी पाई।

कुछ दिन पहिलहीं ‘आखर’ का ओर से कैथी के कार्यशाला के आयोजन भइल रहे, जेकरा में कैथी के कुछ जानकार लोग के द्वारा लगभग 40-50 लोग के कैथी का बारे में जनकारी दिहल गइल आ लिखे पढ़ेके सिखावल गइल, ई एगो बहुते जरूरी कदम रहे, आ आगहूँ इ प्रयास होत रहेके चाहीं।

याद राखीं…भोजपुरी तब्बे पूरा कहाई जब कैथियो ओकरा साथे रही, भोजपुरी जदि आतमा हियऽतऽ कैथी ओकर देंहि हऽ।

 

एसे… पढ़ीं भोजपुरी, बोलीं भोजपुरी, सीखीं कैथी, लिखीं कैथी।।

 

खबर भोजपुरी खातिर ई लेख भोजपुरी के नवहा लेखक आ गायक आदित्य राजन लिखले बानी।

 

 

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