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एह नवरात्रि करीं थावे माई के दर्शन

जानीं कि का बा एह मन्दिर के इतिहास

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माता थावेवाली के मंदिर बिहार राज्य के गोपालगंज जिला के थावे में बसल बा। ई गोपालगंज-सीवान राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोपालगंज जिले से महज 6 किलो मीटर दूरी पर बसल बा। दक्षिण दिशा में जिला मुख्यालय से 6 किमी दूर एगो गाँव बसल बा, जहवां मसरख-थावे खंड के पूर्वोत्तर रेलवे अउर सिवान-गोरखपुर लूप-लाइन के एगो जंक्शन स्टेशन थावे” बा।

मां दुर्गा मंदिर के ठीक सामने एगो बहुते पुरान किला बा लेकिन किला के इतिहास अस्पष्ट बा। हथुआ के राजा के उहवाँ एगो महल रहल, लेकिन अब ई खंडर अवस्था में बा। इसी मंदिर के पास आजो मनन सिंह के भवन के खंडहर मौजूद बा। हथुआ राजा के निवास के पास एगो पुरान मंदिर बा जौन देवी दुर्गा के समर्पित बा।

मंदिर के बाड़ा के भीतर एगो अजीबोगरीब पेड़ बा, जेकर वानस्पतिक परिवार अबले पहचानल नाइ गइल बा। मूर्ति अउर वृक्ष के संबंध में स्थानीय लोग के बीच कई किवदंती प्रचलित बा

कौने-कौने नाव से जानल जाली थावे वाली माई

मां थावेवाली को सिंहासिनी भवानीथावे भवानी अउर रहषु भवानी के नाव से  भक्तजन पुकारेने। अइसे त साल भर इहवाँ माई के भक्त आवेने, लेकिन शारदीय नवरात्र अउर चैत्र नवारात्र के समय इहवाँ श्रद्धालुअन के भारी भीड़ लागsला। इहवाँ माई के भक्त प्रसाद के रूप में नारियल, पेड़ा अउर चुनरी चढ़ावेने।

माई अपने प्रत्येक भक्त के ऊ देहले बाड़ी जौन ऊ पवले के योग्य बाने। मा के हमसे महंग कौनो तैयारी के जरूरत नाइ बा। ओनके कुछ सस्ता अउर आम चीज चाहीं। माई के भक्त (भक्ति), पवित्रता (पवित्राता), अउर प्रेम जइसन कुछ चीज के छोड़के कुछऊ नाइ चाही

दर्शन कइले के निम्मन दिन

सप्ताह में दू दिन, सोमवार अउर शुक्रवार, माँ के प्रसन्न करे खातिर पूजा करे खातिर खास मानल जाला।  एह दिन भक्त दूसर दिन के तुलना में बड़ संख्या में माई के पूजा करेने। “चैत्र” (मार्च) अउर “अश्विन” (अक्टूबर) के माह में “नवरात्र” के अवसर पर साल में दू बेर विशेष मेला का आयोजन कइल जाला।

थावे मंदिर के गर्भ गृह नगदे पुरान बा। तीन तरफ से जंगल से घिरल एह मंदिर में आज ले कौनो छेड़छाड़ नाइ कइल गइल बा। नवरात्र के सप्तमी के मां दुर्गा के विशेष पूजा कइल जाला। एह दिन मंदिर में भक्त भारी संख्या में पहुंचेने। चैत्र (मार्च-अप्रैल) के महीना में एगो बड़ मेला हर बरिस आयोजित कइल जाला।

थावे मन्दिर के इतिहासथावे मंदिर का इतिहास

पौराणिक मान्यता बा कि इहवाँ माई अपने परम भक्त रहषु के बुलावा पs असम के कमाख्या स्थान से चल के इहवाँ पहुंचल रहली। किवदंति बा कि माई कमाख्या से चल के कोलकाता (काली के रूप में दक्षिणेश्वरमें प्रतिष्ठित), पटना (इहवाँ माई पटन देवी के नाम से जानल जाली), आमी (छपरा जिला में माई दुर्गा के एगो प्रसिद्ध स्थान) होत थावे पहुंचल रहली, अउर रहषु के मस्तक (सिर) के विभाजित (फाड़कर) करत साक्षात दर्शन देहले रहली। देश के 52 शक्तिपीठ में से एगो थावे मंदिर के पीछे एगो प्राचीन कहानी बा।

जनश्रुतियों के मुताबिक राजा मनन सिंह हथुआ के राजा रहने। ऊ अपने आपके माई दुर्गा के सबसे बड़ अउर परम भक्त मानत रहने। गर्व होखले के कारण अपने सामने ऊ केहू के माई के भक्त नाइ मानत रहने। एक समय राज्य में अकाल पड़ गइल अउर लोग खाए के तरसे लागल|

माई थावे वाली के परम भक्त रहषु

थावे में कमाख्या देवी माई के एगो सच्चा भक्त रहषु रहत रहल। पौराणिक कथा के अनुसार रहषु माई के कृपा से दिन में घास काटे अउर रात के ओही से अन्न निकल जात रहल, जौने कारण उहवाँ के लोग अन्न मिले लागल, लेकिन राजा के विश्वास नाइ हुआ।

राजा ने रहषु के ढोंगी बतावत माई कके बोलावे के कहने। रहषु कई बेर राजा से प्रार्थना कइने कि अगर माई इहवाँ अइहें त राज्य बर्बाद हो जाई, लेकिन राजा नाइ मनने। रहषु के प्रार्थना पर माई कोलकता, पटना अउर आमी होत इहवाँ पहुंचली| राजा के सब भवन गिर गइल अउर राजा के मौत हो गइल।

माई जहवाँ दर्शन देहली, उहां एगो भव्य मंदिर बा अउर कुछए दूरी पर रहषु भगत के मंदिर बा। स्थानीय लोग के बीच मान्यता बा कि जौन लोग माई के दर्शन खातिर आवेने ऊ रहषु भगत के मंदिर में जरूर जाने नाइ तो उनकर पूजा अधूरा मानल जाला।

हर बरिस अष्टमी के इहवाँ बलि के विधान बा, जेसे हथुआ राजपरिवार की ओर से संपन्न करावल जाला। ई स्थान हथुआराज के ही अधीन रहल। मंदिर के पूरा देखरेख पहिले हथुआराज प्रशासन ओर से कइल जात रहल। अब ई बिहार पर्यटन के नक्शा में आ गइल बा।

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