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जंगल के बीचे बसल बाड़ी बुढ़िया माई, जानीं एह मन्दिर के पूरा इतिहास

असमय काल के गाल में गइले से बचावेली ई माई,

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गोरखपुर जिला मुख्यालय से 12 कीलोमीटर पूरुब में कुस्मही जंगल के बीचे स्थित बा बुढ़िया माई का मंदिर, एह मंदिर के महिमा अइसन बा कि देशवे नाइ विदेसो से श्रद्धालु माई के दर्शन खातिर इहवां खींचाइल चल आवेने। बुढ़िया माई मंदिर से जुड़ल मान्यता बा कि जौन भक्त सच्चा हृदय से इहवाँ आके माई के पूजा करsला ऊ कब्बो असमय काल के गाल में नाइ जाला। माई अपने भक्तन के हमेशा रक्षा करेली।

बुढ़िया माई मंदिर के इतिहास


मान्यता के अनुसार इहवाँ बहुत घन जंगल रहल जेमें एगो मोरि बहत रहल। मोरि पर लकड़ी के पुल रहल। एगो दिन उहवाँ एगो बारात आके नाले के पूरुब ओर रुकी। उहवाँ सफेद कपड़ा में एगो बुढ़िया बइठल रहली, ऊ नाच मंडली से नाच देखावे के कहली। नाच मंडली बुढ़िया के मजाक उड़ावत चल गइल। लेकिन जोकर बांसुरी बजाके पांच बेर घूमके महिला के नाच देखा देहलस। ऊ बूढ़ महिला खुश होके जोकर के आगाह कइली कि वापसी में तू सबके संगे पुल पार मत करिहs। तीसरका दिने बारात लौटल त उहे बुढ़िया पुल के पच्छिम ओर ठाढ़ रहली।

बारात जब बीचे पुल पर आइल त पुल टूट गइल अउर पूरा बारात मोरी में डूब गइल। पूरा बारात में बस ऊ जोकर बचल जौन बारात के संगे नाइ रहल। एकरे बाद बुढ़िया अदृश्य हो गइल। काल की गाल में गइले से बचल जोकर एह बात के खुलासा कइलस। तब्बे से मोरी के दूनों ओर के स्थान बुढि़या माई के नाम से जानल जाला। बुढि़या माई के मंदिर मोरी के दूनों ओर बनल बा। एह दूनों मंदिरन के बीचे के मोरी के नाव से पार कइल जाला।

मंदिर के विशेषता

 

Middle Yayawari

बुढ़िया माई मंदिर कसया रोड पर कुसम्ही जंगल में बसल बा। प्राकृतिक परिवेश में स्थित माई के दरबार में सबके मन्नत पूरा होला। माई के बूढ़ रूप निराला बा। नवरात्र में नेपाल अउर बिहार से बड़ संख्या में भक्त इहवाँ आवेने।

नवरात्र में लागsला मेला


माई के महिमा के ख्याति दूर-दूर ले फइलल बा। वासंतिक अउर शारदीय नवरात्र में लाखों के संख्या में भक्त माई के दर्शन के पहुंचेने। माई के दर्शन के भक्त के कई कीलोमीटर लमहर कतार लाग जात बा। पूरा नवरात्र मंदिर क्षेत्र में मेला लागsला। एहके संगे मंडन, विवाह सहित कई आयोजन मंदिर के लग्गे होला।

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