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सार्वजनिक जगह पs ही कइल गइल अपराध में SC-ST कानून होई लागू, इलाहाबाद हाई कोर्ट के बड़ फैसला

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अनुसूचित जाति आ अनुसूचित जनजाति (अत्याचार के रोकथाम) अधिनियम, 1989 जवना के अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम के नाम से भी जानल जाला। एह बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट एगो बड़ फैसला देले बिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट एगो बड़ आदेश जारी कs कहलस कि जानबूझ के अपमान करे के कथित काम अनुसूचित जाति/जनजाति कानून के तहत तबे अपराध मानल जाई जब उs सार्वजनिक जगह पs भईल होई। एकरा संगे कोर्ट याचिकाकर्ता पिंटू सिंह अवुरी दु लोग के याचिका के आंशिक रूप से स्वीकार कs लेलस अवुरी एससी एसटी एक्ट के संबंध में उनुका खिलाफ मुकदमा रद्द कs देलस।

पूरा मामिला का रहे?

दरअसल नवम्बर 2017 में याचिकाकर्ता पिंटू कुमार अवुरी दुगो अवुरी लोग के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के अलग-अलग धारा अवुरी अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम के धारा 3(1) (आर) के तहत मामिला दर्ज भईल रहे। एs मामिला में आरोप रहे कि आरोपी शिकायतकर्ता के घर में घुस के ओकरा पs जाति आधारित गारी-गलौज के इस्तेमाल कईले अवुरी उनुका अवुरी ओकरा परिवार के मरले-पीटले।

एससी एसटी एक्ट के तहत कब केस दर्ज होई?

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकील के तर्क रहे कि अपराध शिकायतकर्ता के घर के भीतर भईल बा.इs कवनो सार्वजनिक जगह ना हs अवुरी आम जनता के इs घटना ना देखाई देलस। वकील कहले कि एही कारण से एs मामिला में अनुसूचित जाति/जनजाति कानून के तहत कवनो अपराध नईखे होखत। याचिकाकर्ता के वकील कहले कि अनुसूचित जाति/जनजाति कानून के तहत मामिला तबे बनावल जाला जब कवनो आदमी के जानबूझ के सार्वजनिक तौर पs अपमान कईल जाला। एकरा संगे सरकारी वकील एs दावा पs आपत्ति जतवले। हालांकि वकील के कहनाम बा कि, शिकायतकर्ता के घर के भीतर भईल घटना के खारिज नईखे कईल जा सकत।

कोर्ट का कहलस?

एs मामिला पs दलील सुनला के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के कहनाम बा कि शिकायतकर्ता के बयान अवुरी प्राथमिकी से पता चलता कि जवना जगह पs घटना भईल बा, उहाँ कवनो बाहरी आदमी मौजूद ना रहे। एकरा बाद कोर्ट आपन आदेश देके कहलस कि एसएसी-एसटी एक्ट के धारा 3(1)(आर) के तहत जरूरी बा कि अपराध सार्वजनिक जगह पs होखे। इलाहाबाद हाईकोर्ट मामिला के रद्द करत कहलस कि जदी इs अपराध आम लोग के सोझा भईल बा तs अनुसूचित जाति-जनजाति कानून के प्रावधान लागू होई, बाकीर वर्तमान मामिला में अयीसन ना भईल।

 

 

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