गोरखपुर। हिंदी आ भोजपुरी साहित्य के दुनिया आज बहुते दुखी बा। सुक के देर रात गोरखपुर के डुमरी गांव में जनमल आ पद्मश्री सम्मान से सम्मानित 101 बरिस के प्रख्यात साहित्यकार प्रो. रामदरश मिश्र अब ना रहलें (Pro. Ramdarsh Mishra Passes Away) । ऊ कुछ दिन से बीमार चलत रहलें आ नई दिल्ली के द्वारिका सेक्टर-7 में अपना आवास पs अंतिम सांस लेलें। सनिचर के दिन दिल्ली के मंगलापुरी श्मशान घाट पs उनकर अंतिम संस्कार भइल, जहां उनका के चाहे वाला लोगन के भीड़ उमड़ पड़ल। सब केहू के आंख लोर से भिंजल रहल।
गोरखपुर के लाल रहलें प्रो. मिश्र
15 अगस्त 1924 के गोरखपुर के डुमरी गांव में जनमल प्रो. रामदरश मिश्र के भाई रामनवल मिश्र भोजपुरी के प्रसिद्ध कवि रहलें। प्रो. मिश्र अपना पीछे बेटा शशांक आ विवेक, बहू रीता, सागरिका, माया, बेटी स्मिता आ अंजलि समेत भरल-भरल परिवार छोड़ गइल बाड़ें।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ देलें श्रद्धांजलि
प्रो. मिश्र के निधन पs मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गहिराह शोक जतवलें। ऊ कहलें कि हिंदी साहित्य के क्षेत्र में ई अपूर्व क्षति बा। देस भर के साहित्यकार लोग कहल कि एह नुकसान के भरपाई अब कबो ना हो सकी।
कइयन गो सम्मान से सम्मानित रहलें प्रो. मिश्र
साहित्य जगत में अतुलनीय योगदान खातिर प्रो. रामदरश मिश्र के साहित्यकार सम्मान (1984), साहित्य भूषण सम्मान (1996), दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान (1998), शलाका सम्मान (2001), महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान (2004), भारत भारती सम्मान (2005), साहित्य अकादमी सम्मान (2015) आ पद्मश्री (2025) सहित दर्जनन पुरस्कार मिलल।
जीवत रहत प्रकाशित भइल रचनावली
हिंदी आ भोजपुरी के सशक्त आवाज प्रो. मिश्र कविता, कहानी, निबंध, आलोचना- हर विधा में अमिट छाप छोड़लें। उनका लेखनी में पूर्वांचल आ गोरखपुर के माटी के खुशबू बसल रहत रहे। ऊ ओह विरला साहित्यकारन में रहलें जिनकर रचनावली जीवत रहते प्रकाशित भइल।
उनका प्रमुख रचना में-
उपन्यास: पानी के प्राचीर, सूखता तालाब, बिना दरवाजे का मकान, आकाश की छत, रात का सफर, आदिम राग
कहानी संग्रह: खाली घर, सर्पदंश, बसंत का एक दिन, एक कहानी लगातार, विदूषक, मेरी कथा यात्रा
निबंध आ आलोचना: छायावाद का रचनालोक, हिंदी उपन्यास एक अंतरयात्रा, आधुनिक कविता सर्जनात्मक संदर्भ प्रमुख बा।
संगठन के सेवा में हमेशा सक्रिय रहलें प्रो. मिश्र
- लेखन आ अध्यापन के संगे-संगे प्रो. मिश्र कइयन गो साहित्यिक संगठनन के मजबूत कइलें।
- 1952 से 1955 तक ऊ साहित्यिक संघ, वाराणसी के प्रधान सचिव रहलें।
- 1960 से 1964 तक गुजरात हिंदी प्राध्यापक परिषद के अध्यक्ष रहलें।
- 1984 से 1990 तक भारतीय लेखक संगठन के अध्यक्ष पद पर रहलें।
- ऊ मीमांसा, नई दिल्ली के अध्यक्षो रहलें।
- एकरा अलावे ऊ लमहर समय तक कइयन गाे मंत्रालयन में हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में योगदान देलें।
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