अब ले हमनी के खाली परब के रूप में दिवाली के मतलब समझ में आवत रहनी जा। बाकिर रउआ इs जान के हैरान होखब कि हमनी के देश के एगो गांव के नाव भी दिवाली हs। जवन आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिला के गारा मंडल में स्थित बा। समृद्ध इतिहास आ जीवंत संस्कृति वाला ई गाँव पूरा पांच दिन दिवाली के परब मनावल जाला। इहाँ के लोग अपना पुरखा के पूजा कईला के बाद ही इs परब मनावेले। एह गाँव परम्परा के पीछे एगो रोचक कहानी बा। एह गाँव के नाव दिवाली काहे राखल गइल ओकरा पीछे एगो कहानी बा.
गाँव से जुड़ल एगो ऐतिहासिक कहानी
सदियन पहिले श्रीकाकुलम क्षेत्र में एगो ताकतवर राजा के शासन रहे। जे अपना धार्मिकता आ भक्ति खातिर जानल जात रहले। राजा अक्सर पास के प्रतिष्ठित श्री कूर्मनधा मंदिर के दर्शन करत रहले। एक दिन मंदिर से लवटत घरी रात में राजा अचानक बेहोश हो गईले अवुरी सड़क पs गिर गईले। गाँव के लोग ओकरा के मदद करे खातिर दौड़ल आ तेल के दीपक से इलाका के रोशन कs के पानी पीये के दे दिहले। राजा के जब होश आ गइल तs गाँव के लोग के दयालुता आ अन्हार के बीच ओह लोग के रोशनी के इशारा देख के उनका बहुते भावुक हो गइल. राजा जब गाँव के लोग से गाँव के नाम पूछले तs उनका पता चलल कि एह गाँव के कवनो नाम नइखे। गाँव के लोग के दयालुता के आभार आ पहचान में राजा घोषणा कइलन आ कहले – “रउरा दीप जरा के हमार सेवा कइनी; आजु से एह गाँव के दीपावली कहल जाई.” एह तरह से एह गाँव के नाम दीपावली राखल गइल.
धरोहर के प्रतीक
दिवाली गाँव सांस्कृतिक धरोहर आ सामुदायिक भावना के सुंदरता के गवाह बा। दिवाली मनावे के एकर अनूठा तरीका ना खाली एह परब के महत्व के सम्मान करेला बलुक पूर्वज के सम्मान आ सांप्रदायिक सौहार्द के भोग के गहिराह मूल्यन के भी दर्शावत बा। एह छोटहन गाँव में रोशनी के पर्व पहिले से अधिका चमकत बा, जवन आए वाला सभे के दया, कृतज्ञता आ परंपरा के स्थायी शक्ति के याद दिलावत बा.