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पुण्यतिथि विशेष: यादन में स्व.गोरख पाण्डेय

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गोरख पांडे जी के जनम, उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला के ‘ मुड़ेरवा के पांडे’ गांव में 1945 में एगो गरीब परिवार में जनम भइल रहे। जनम के कुछ समय बाद माई के निधन हो गइल। बाबुजी दोसर बिआह कइले बाकी सौतेली माई से इनकर ना बनल । इनकर पालन पोषण फुआ कइली ।

कम उमिर में बिआह भइला के बादो गोरख पांडे जी आपन आगे के पढाई जारी रखले। आ सुरुवाती शिक्षा के बाद बनारस चल गइले । बनारस में सम्पुर्णानंद संस्कृत महाविद्यालय से साहित्यचार्य के उपाधि पवले । बनारस में आवते सामाजिक सक्रियता भी बढ गइल आ बाद में इहां के सम्पुर्णानंद से ही छात्र अध्यक्ष बनले । बाद में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1971 के आसपास दर्शनशात्र से एम ए कइले । बाद में डाक्टरेट (शोश काम) खातिर जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयु) में दाखिला लेहने। एजुगा इहां के ‘ज्यां पाल सात्र के अस्तित्ववाद में अलगाव के तत्व ‘ विषय पs आपन शोध के काम कइले । शोध के दौरान ही 29 जनवरी 1989 के गोरख पांडे जी के मात्र 44 साल के उमिर में निधन हो गइल ।

किसान आंदोलन से उनकर सक्रिय जुड़ाव रहे आ कविता के माध्यम से उनकर शब्द शोषण से मुक्त दुनिया के आवाज बन गइल। अगर एकरा के भोजपुरी साहित्य के दुर्भाग्य ना कहल जाव तs अउरी का कहब जाव कि मानसिक बेमारी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित अतना दुर्लभ आ प्रगतिशील साहित्यकार 29 जनवरी 1989 के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में आत्महत्या कs लिहले। गोरख पाण्डेय जी तनी अउरी दिन रहल रहते तs अउरी कई गो अद्भुत रचना रहित जवन जनम लेत आ भोजपुरी साहित्य के इतिहास के अंग बन गइल रहित। प्रस्तुत कइल गइल बा ‘समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई’ किताब से गोरख पाण्डेय के चुनल रचना –

हाथी से आई, घोड़ा से आई

अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद…

 

नोटवा से आई, बोटवा से आई

बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद…

 

गाँधी से आई, आँधी से आई

टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद…

 

काँगरेस से आई, जनता से आई

झंडा से बदली हो आई, समाजवाद…

 

डालर से आई, रूबल से आई

देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद…

 

वादा से आई, लबादा से आई

जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद…

 

लाठी से आई, गोली से आई

लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद…

 

महंगी ले आई, ग़रीबी ले आई

केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद…

 

छोटका का छोटहन, बड़का का बड़हन

बखरा बराबर लगाई, समाजवाद…

 

परसों ले आई, बरसों ले आई

हरदम अकासे तकाई, समाजवाद…

 

धीरे-धीरे आई, चुपे-चुपे आई

अँखियन पर परदा लगाई

 

समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई

समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई

 

गोरख भोजपुरी में कई गो गीत आ कविता लिखले। उहाँ के क्रांतिकारी गीत हर जगह मजदूर-किसान आ छात्र आंदोलन में गावल गइल बा –

झकझोर दुनिया हो झकझोर दुनिया

जनता की चले पलटनियां

हिल्ले ले झकझोर दुनिया।

 

हिल्ले ले पहड़वा

हिल्ले ले नदी तलवा

सगरे में उठे रे हिलोरवा

हिल्ले ले झकझोर दुनिया।

इनकरी निधन के बाद इनके तीन गो संग्रह प्रकाशित भइल बा – स्वर्ग से विदाई (1989), लोहा गरम हो गया है (1990) आ समय का पहिया (2004)। गोरख आजु एह दुनिया में नइखन, बहुत दिन हो गइल दुनिया से विदाई लेले। बाकिर उनकर गीत हमेशा गुंजायमान रही, उनकर कविता सुनत रही आ एह तरह से ऊ हमेशा जिंदा रहीहें।

 

 

 

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