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भोजपुरी दोहा: दीपक सिंह के कलम से

दीपक सिंह के रचना में दर्द आ विरह के पुट तs रहबे करेला एकरा संगे समाज के वर्तमानो लउकेला।

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घुरही भर जगहा बदे, बा सब कूदा फान

तब्बो लागेला बहुत बा ख़तरा में जान ।

 

झाँकल नाही आँख में, मरलस खाली बोल

कइसे ऊ जानी भला, ख़ामोसी के मोल ।।

 

अटकल बात ज़ुबान में, माथा खइलस सोच

लागल कि उनुकर जुबान, सबकुछ लीही नोंच ।।

 

बात केहू ना समुझल, भेंटल जीत कि हार।

दिल में ही सब कैद बा, का देखिले लिलार?

 

सबकुछ ही बाज़ार बा, सगरी लउके हाट

मन सूकुन जहवाँ मिले, कहवाँ अइसन घाट ।।

 

उगलसि घामा पीर के, हमरा चारों ओर

मनपंछी अलगे करे, बेमतलब के रोर ।।

 

कतना ले जोहत रहीं, केतना इंतज़ार

कई साल त बीत गइल , आइल नाहिं बहार ।।

 

अइसन हो संगीत अब, भरल जहाँ हो भाव

जिनिगी के दे प्रेरणा, कम हो हिय के घाव ।।

✍दीपक सिंह सिंह के परिचय

बिहार के सारण जिला के दीपक सिंह वर्तमान में कोलकाता रहत बानी। इहां के साहित्य के दुनिया में एगो उभरत नाम बानी। भोजपुरी के पत्र पत्रिकन में इहां के लिखल कविता आ गजल अक्सर छपत रहेला। भोजपुरी खातिर अपना दिल में एगो खास जगे राखे वाला दीपक सिंह के ई “खबर भोजपुरी” पs प्रकाशित पहिला रचना हs….

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