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ताजमहलः प्रेम के निशानी कि कुछ अउर

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आगरा के ताजमहल आधुनिक दुनिया के सात आश्चर्यजनक स्थानन में गिनल जाला. एकरा के देश के गौरव मानन जाएला. हर साल देश-विदेश से लाखों लोग एकरा के देखे खाती आवे लन. कहल जाला कि शाहजहां मुमताज बेगम के मौत के बाद उनका याद में ताजमहल बनवले रहें आ एकरे में उनकरा के दफ्नावल गइल रहे. ऐही से एकरा के मुगल बादशाह शाहजहां आ उनकर बेगम मुमताज महल के प्रेम के निशानी मानल जाए ला. हालांकि ढेर लोग ताजमहल के शाहजहां के प्रेम के प्रतीक ना माने लन. ताजमहल प तरह-तरह के सवाल उठावे लन ला. ढेर लोग त इहो माने लन कि ई पहिलही से कौनो हिन्दू राजा के बनावल रहे. ओकर निर्माण पर भी सवाल उठे ला. एकर डिजाइन सासाराम में शेरशाह के रौजा से मिलत-जुलत लागे ला. लेकिन एहिजा कहे के मतलब ई बा कि का शाहजहां सच्चो में मजनूं, फरहाद आ रांझा के जोड़ के प्रेमी रहलन. मुमताज महल के प्रेम में पागल रहलें.

इतिहास का कहेला

इतिहास त कुछ अलगे बात बतावे ला. ओह जमाना के मुगल बादशाहन लेखा शाहजहां के भी आपन हरम रहे. जेकरा में बादशाह के ऐश-मौज़ खाती कई-कई सौ रानी-पटरानी रखल गइल रहलीं. अगर उनका मुमताज़ बेगम से सांचो में एतना गहरा प्रेम रहे त अय्याशी खाती हरम काहें के बनवले रहलन. प्रेमी जीव पन बीच तेसर के बर्दाश्त ना करे लन. इहां त सैकड़ा के बात बा. प्रेम एक से होला कि सैकड़ों से? इहो बात कहल जाला कि बादशाह के हुकुम पर ताज़महल बनावे वाला मजदूरन के हाथ काट देल गइल रहे कि ओइसन दोसर इमारत ना बना सकस. जेकरा मन में प्रेम होखी ऊ कभी एतना जालिम ना हो सके. एह तरह के काम ना कर सके ला. सांच पूछीं त जेकरा मन में प्रेम के भाव होखे ला ओकरा मन से दया आ करूणा के भाव कूट-कूट के भरल रहे ला.
ताज पर कविता आ शाइरी

हिंदी उर्दू आ दुनिया के करीब सब भाषा में ताजमहल प कविता आ शायरी भरल पड़ल बा. उर्दू शायरी के बात करीं त ताजमहल पर दू गो कविता बहुते प्रसिद्ध बा. एगो शकील बदायूनी के आ एगो साहिर लुधियानवी के. दूनों के नज़्म एकदम एक दूसरा के विपरीत बा. शकील बदायूनी ताजमहल के मुहब्बत के निशानी मनले बाड़न जबकि साहिर लुधियानवी एकरा के गरीबन के मुहब्बत के मजाक उड़ावल मानत रहें. साहिर लुधियानवी वामपंथी विचारधारा के शायर रहलें. शकील बगायूनी के दक्षिणपंथी ना कहल जा सके ला लेकिन ऊ असल में मध्यमार्गी रहलन. हम दूनों नज़्म खोज-खाज के लाइल बानी. पहिले शकील बदायूनी के नज्म देखी सभनी-

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महलसारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है

इस के साए में सदा प्यार के चर्चे होंगे

ख़त्म जो हो न सकेगी वो कहानी दी है

शकील बदायूनी एकदम ताजमहल के बारे में प्रचलित अवधारणा में डूब के आपन नज्म लिखले रहलें. मुगल बादशाह एकरा के जवन रूप में प्रस्तुत कइल चाहत रहें ओही रूप में स्वीकार कर लेले रहें. मने ई अमीर गरीब सभे के प्रेम के प्रेरणा स्रोत बा. अब तनी साहिर लुधियानवी के नज़्म प नज़र डालीं-

ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सहीतुझ को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही

मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से

बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी

सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशां

उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी

मेरी महबूब पस-ए-पर्दा-ए-तश्हीर-ए-वफ़ा

तू ने सतवत के निशानों को तो देखा होता

मुर्दा-शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली

अपने तारीक मकानों को तो देखा होता

साहिर लुधियानवी ताजमहल के दोसर रूप देखत रहें. ऊ आपन प्रेमिका से एकरा अलावा कोई दोसरा जगहा प मिले के अनुरोध करत बाड़ें.उनकर सवाल बा कि जवन मजदूरन के हाथ काट देल गइल ऊ लोग केहू से प्रेम ना करत रहें का. उनका प्रेम में का कवनो खोट रहे. ईहां फर्क आपन-आपन दृष्टिकोण के बा. खैर जे होखे ऊ प्रेम के निशानी होखे चाहे ना होखे. एकरा में कवनो शक नइखे कि आजो ई स्थापत्य कला के शानदार उदाहरण बा. जवन जमाना में मशीन ना रहे ओह जमाना में हाथ से जेतना सुंदर नक्काशी कइल गइल बा ओकर कवनो जोड़ नइखे. हमनी के ताजमहल पर गर्व होए के चाही. चाहे एकरा के प्रेम के निशानी मानीं चाहे मध्यकाल के स्थापत्य कला के बेहतरीन नमूना.

ये लेखक के निजी विचार हैं. )

Author:  देवेंद्र गौतम

Source: News18

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