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Father’s Day Special: मैकश के कलम से कविता “बाबूजी”

मैकश के कविता जिनगी के मय पहलुअन के शब्दन में समेटले रहेला....

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बात बात प भले, रूस खिसिया जालन

बाबूजी

बाकी दुख मे जब रहिले त,याद आ जालन

बाबूजी

 

केहु देहाती केहु कहे ,पढ़े मे जीरो हवन

बाबूजी

जे भी बारन हमरा खाती, एगो हीरो हवन

बाबूजी

 

दुख मे घबरा जालन , अकुता जालन

बाबूजी

जे लाइन कटे त बेना हाकके,सुता जालन

बाबूजी

 

दुनिया के सबसे भारी,एगो काम कइलन

बाबूजी

हमनी के सेयान करे मे,अपने बूढ़ा गइलन

बाबूजी

 

हर लइका के जस हमरो,स्वाभिमान रहेला

बाबूजी

हम जहाँ भी रहिले ,संघे ताहर नाम रहेला

बाबूजी

 

हमनी खाती , तहरा केतना रहेला होश

बाबूजी

हम ओतना ना कर पाई,ई रहेला अफसोस

बाबूजी

 

हम केतना खुश बानी,करी का बखान

बाबूजी

जीयते सभकुछ क देल,तु त हव भगवान

बाबूजी

मैकश के परिचय

गांव के माटी-पानी में सनाइल एगो नब्बे के दशक के भारतीय जवना के आपन भाषा आ संस्कृति में अटूट विश्वास आ लगाव बा। ‘मैक़श’ के परिचय इंहा एगो अइसन साधारण आ जमीन से जुड़ल नवसिखुआ लइका से बा जवना के कलम आ शब्द नवहन के बात करेला। उ संवेदना, भाव आ अंदाज के लिखे के एगो छोटहन कोसिस  जवना के समाज आ लोग साधारणतः नजरअंदाज क देला।

 

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