अतवारी छौंक: बात कुछ पुरनका दौर के! राज-नरगिस के साझा सफ़र के अंतिम मुकाम “चोरी चोरी”
खबर भोजपुरी रउरा लोग के सोझा एगो नया सेगमेंट लेके आइल बा , जवना में रउरा के पढ़े के मिली फिलम इंडस्ट्री से जुड़ल रोचक कहानी आ खिसा जवन बितsल जमाना के रही।
आजू पढ़ी ‘चोरी चोरी’ फिलिम जेमें राज-नरगिस के साझा सफ़र के अंतिम मुकाम देखे के मिलल।
हिंदी फिलिमन के इतिहास में दू गो ब्लैक आ वाइट फिलिम बाड़ी सँ जवन पहिला दस मिनट में पइसा वसूल हो जाली सँ आ हमनी के बाकी फिलिम के बोनस के रूप में देखेनी जा, एहमें ‘मधुमती’ शामिल बा, जेकर “सुहाना सफ़र और ये मौसम हंसी” गीत अपना जंगलन के साथे धूप वाला माहौल के बरकरार राखे के चलते एगो दिल जीतेला आ दोसरका ‘चोरी- चोरी’, जवना में दर्शक एकरा के सुरु होले से पहिले अपना सीट पs बइठ जालें “उस पार साजन इस पार धारे, ले चल ओ माझी किनारे” गीत शुरू हो जाला।
बरिसन से पारिवारिक मनोरंजक फिलिमन के गारंटी के रूप में जानल जाए वाला एवीएम के ‘चोरी-चोरी’ बहुते नजरिया से महत्वपूर्ण बा। लोकप्रियता आ उत्कृष्टता के दोहरा मापदंड पs निर्विवाद नंबर वन खिताब पावे वाला संगीतकार शंकर-जयकिशन के कैरियर के ईs सबले महत्वपूर्ण पड़ाव रहे, राज कपूर अभिनीत ईs गैर आर कैम्प के पहिला उल्लेखनीय फिलिम, ई राज कपूर आ नरगिस के सफर के पराकाष्ठा हs, जवन फिलिम दुनिया के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ जोड़ी हs। ई फिलिम अपना समय के कुछ जटिल भ्रांति के भी तोड़ देले रहे।
एहमें कवनो संदेह नइखे कि राज कपूर के संगीत के बढ़िया समझ रहे, ऊ अकार्डियन, हॉरमोनियम, डफ समेत कई गो वाद्ययंत्र बजावे के जानत रहले आ अपना फिलिमन के संगीत पs बहुते मेहनत करत रहले। बाकिर कला आ सृजनात्मकता के क्षेत्र में ईs देखल गइल बा कि कई बेर अपना मूल क्षेत्र के अलावा दोसरा विषयन के ज्ञान बेवजह हस्तक्षेप के नेवता देला आ अइसन हस्तक्षेप के दबाव के परिणाम ईs होला कि रचनाकार आपन कृति के सोलह आना आउटपुट ना दे पावेला।
भले ही राज के अपना समकालीन दिलीप कुमार अवुरी देव आनंद के मुक़ाबले एतना बड़ फैन फॉलोइंग ना मिलल, लेकिन देव अवुरी दिलीप के फैन्स भी समझ के मामिला में राज कपूर के मास्टर मानेले। सिनेमा आ रंगमंच में दखल देबे वाला अपना यशस्वी पिता पृथ्वीराज कपूर के प्यार आ मार्गदर्शन के बावजूद एs कपूर के परवरिश ओइसन ना रहे जइसन पुणे स्टार के मुह में चांदी के चम्मच लेके रहेले। जब रंगमंच में काम करे लगले तs शुरुआत मंच के ढुलाई से कइले आ जब रुपहली के दुनिया में प्रवेश कइले तs आपन कैरियर के शुरुआत क्लैपर बॉय के रूप में भईल आ फेर केदार शर्मा के सातवाँ सहायक के रूप में, बाकिर रचना सीखला के स्वभाव अतना तीव्र आ उनकर अवलोकनात्मक रहे दृष्टि एतना विविधतापूर्ण रहे कि 1943 में 19 साल के उमिर में उनुका फिल्म ‘हमारी बात’ में मुख्य भूमिका मिलल, 23 साल के उमिर में ऊ ‘नीलकमल’ (1947) कइले आ एक साल बाद ऊ… ‘आग’ ( 1948) में स्टार बन गइलन।
एकरा माध्यम से उs फिल्म निर्माण आ निर्देशन के काम भी सम्हार लिहले। ‘आग’ एगो साधारण फिलिम रहे आ आजु हमनी के एकर नाम महज दू गो कारण से याद बा, एगो एहसे कि ई राज कपूर के निर्देशक के रूप में पहिला फिलिम रहे आ दुसरका मुकेश के गावल गीत दिल के छूवे वाला गाना ‘जिंदा हूं इस तरह के गमे जिंदगी’ खातिर कपूर एक साल बाद ही एगो नया मंडली बनावेले। गीतकार के रूप में नयका कलाकार शैलेन्द्र आ हसरत, जे तब तक संगीतकार के रूप में वाद्य वादक भा सहायक के रूप में काम करत रहले। निर्माता-निर्देशक-हीरो के रूप मे हिन्दी सिनेमा के इतिहास में अतना कम उमिर में दोसर केहू अतना बड़हन जगहा नइखे बनवले।
Comments are closed.