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राउर कलम से: Blog- इयादन में आजो बा समय के साथे गायब होत गांव के हाट बाजार

बिहार के सारण जिला के रहे वाला सुप्रसिद्ध लोकगायक श्री उदय नारायण सिंह के लिखल एह ब्लॉग के पढ़ीं आ आपन विचार साझा करीं...

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जादे दिन दिन तs नाहिये गुजरल/,बीतल बा राउर गावं छोड़ले?? रउआ के खाली एक बेर इयाद करे के बा आपन बीतल बिहान के। घर से आदेश मिलतही या तs साईकिल से भा फेर पैदले चल देत रहनी सs हमनी के गंवई हाट खातिर। उहां पूरा हफ्ता भर खातिर सब्जी तs किनईबे करे, ना चाहला के बादो तब के ग्रामीण मिठाईयन के स्वाद ले लेत रहे आदमी। मीठा के जलेबी, लकठो, पटौरा, गुड़ही बतासा, हावा मिठाई, पंचमेल मिठाई (गॉजा, टिकरी, खाजा, खजुली आ लड्डू) एह तरे ,जब आदमी खाये, तब खुद के ओह दिन बड़ आदमी लेखा होखे के एहसास होखे।

हाट में बेचाये वाला सामान ललचावे। एह सामानन में अफगान स्नो, सनलाइट साबुन, कलकतिया गमछी, लुका के राखल माला सेंट के छोटी शीशी के दूकानदार से निहोरा करत भाव से मांगल आजो इयाद आवेला। दूकानदार देबो करे तs एह भाव से देवे, जइसे ऊ कवनो एहसान कइले होखे आ हमनी के ओह एहसान के स्वीकारतो रहे। तेलहिया साबुन(कपड़ा धोवे वाला) तब सेर के भाव से बिकल करे। आधा सेर, आधा पौवा, पांच पैसा, दस पैसा, के संगे-संगे अधे पइसो के भाव रहे। छेदही पईसा शायद रउआ इयाद होखे, जवनो के कबो-कबो मा़ई डॉंड़ा के संगे कमर में बान्ह देस काहेकि उ तांबा के होता रहे आ ओकरा से नजर गुजर ना लागत रहे। तब सोरे कनवा के एक सेर होत रहे। मुठ्ठी में पईसा लेके जात रही सs आ थइला भर भर के एक हफ्ता खातिर माल बटोर ले आवत रहनी सs। भउजी लो गते से आलता आ रीबन के फरमाइश करस तs ओकरा के किनल आ भउजाई लो के मुसकी छोड़त सामान ले लेहल तs हमरा आजो इयाद बा।

कहीं कुछ छुटल बा काहेकि गांवन से रिश्ता जे टूटल बा। एक बेर तs ई यकीने ना हो पावेला कि एतना जल्दी ई सब कइसे बदल गइल। अब गंवई हाट एहिसे ना लागेला काहेकि बगल में मॉल खुल गइल बा।  “बोली जी रउआ का का किनेम, इहां तs हर चीज मिलेला”- के तर्ज पs एके जगे, एके दुकान पs सब कुछ मिल जात बा। शहर गांवन  में आके बसे लागल बा। अब हमनी के ना जानी सs बाजार काहेकि हमनी के पत्नी आ भउजाई लो मॉल जाये लागल बा, अब साइकिल के पूछ नइखें, एसी वाली कार जे बा।

बात लमहर हो जाई। बात एतने भर बा कि का आज के संतति ई जान पाई कि हमनी के बाप दादा लो का का गंववले बा लो, ओकरा के बचावे ला ,समाज में खड़ा करे ला? हमनी के बाध्यता बा कि आधुनिकता के एह प्रतिस्पर्धा में हमनी के निरंतर भाग लेहत रहे के होई ना तs हमनी के पिछड़ल कहाये लागेम सs।

हे गांव! हमनी के दोषी बानी सs काहेकि हमनी के मजबूरी तू देख रहल बाड़s, हमनी के माफ करिहs। कबो मवका मिले तs लकठो भा बतासा से बुढ़ारी में भेंट करवा दिह, एह भाग-दउर भरल जिनगी में अब बतासा के पा लेहलो हमनी के पूर्णता होई।

उदय नारायण सिंह

एगो परिचय

भोजपुरिया माटी से निकलल ऊ लोकगायक जे हमेशा अपना जिजीविषा के बल पs आपन अलग राह बनावल। इहां के गायकी के क्षेत्र में जानल-मानल नाव तs बड़ले बानी एकरा साथे-साथे इहां के सामाजिक ताना-बाना के आपन खास अनुभवन के जब-जब लिखेनी तब-तब एगो अलगे रुचिगर उत्कृष्ट खजाना भेटा जाला।

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