जदि रउरा सोचत बानी कि रउरा कृत्रिम घोंसला बना के चिरई के खाना खियावत बानी तऽ रउरा बिल्कुल गलत बानी। इंसान के एह आदत के चलते चिरई के व्यवहार में बदलाव हो रहल बा। जानवर से प्यार करे के आदमी के आदत चिरई के आलसी बना देले बा। एकरा चलते उऽ लोग भूसा चूस के घोंसला बना के खाना खोजे के भूल रहल बाड़े। जदि अइसन जारी रहल तऽ एक दिन चिरई के जीवन में संकट आ जाई। एकर खुलासा एगो शोध में भइल बा।
भारत में पावल जाए वाला सगरी चिरई सभ के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित कइल जाला। एमें चिरई खरीदे आ पाले पऽ पूरा रोक लगा दिहल गइल बा। हालांकि बहुत लोग घर के छत पऽ कृत्रिम घोंसला लगा के चिरई के मदद अवुरी आवास उपलब्ध करावत बाड़े। ई सब ओही तरह से बनावल जाला जइसे कवनो चिरई बनवले बिया। अक्सर देखल जाला कि मनुष्य के आसपास रहे वाला गौरैया आ मैना समेत कई गो चिरई कृत्रिम घोंसला में रह रहल बाड़ी सन। घर के आसपास आवे वाला चिरई के लोग चावल, गेहूं, रोटी के टुकड़ा अउरी दाल खियावेले। एकरा चलते चिरई आलसी हो रहल बाड़ी सन, घर बना के खाए खातिर संघर्ष करे के जरूरत नइखे।
बिना कवनो मेहनत के सब कुछ हासिल हो रहल बा। एकरा चलते उऽ लोग अपना बच्चा के घोंसला बनावल, खाना खोजल आदि के काम ना सिखा पावेली। एकरा चलते उऽ आपन काम भुला रहल बाड़ी जवन कि कवनो बढ़िया संकेत नइखे।
चिरई के व्यवहार बदलल प्रकृति खातिर कवनो बढ़िया संकेत ना हऽ। उ बहुत दिन से चिरई के बारे में शोध करतारे। शोध से पता चलल बा कि इंसान के मदद करे के आदत चिरई के आपन काम करे के भटका रहल बा। उऽ अपना बच्चा के घोंसला बनावे समेत खाना खोजे के सिखावे में सक्षम नइखी।
प्रशांत कुमार, वरिष्ठ वन्यजीव जीवविज्ञानी पश्चिमी सर्कल हल्द्वानी
चिरई रखल गैरकानूनी बा, अगर केहू के चिरई रखत पकड़ल गइल त ओकरा खिलाफ नियम के मुताबिक कार्रवाई होई। जीव खातिर जंगल से सुरक्षित कवनो जगह नइखे।