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दांडी यात्रा के 91 बरिस भइल पूरा

अंग्रेजन के साम्राज्य के नींव हिलावे खातिर सुरु कइले रहनें गांधी जी ई यात्रा

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दांडी मार्च के नमक मार्च चाहे दांडी सत्याग्रह के रूप में इतिहास में जगह मिलल बा। बरिस 1930 में अंग्रेज सरकार जब नमक पs टैक्स लगा दिहलस त महात्मा गांधी एह कानून के ख‍िलाफ आंदोलन छेडने। ये ऐतिहासिक सत्याग्रह गांधी के संगे 78 लोगों अहमदाबाद साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी ले पैदल चल के (390किलोमीटर) कइनें लोग। 12 मार्च के सुरु भइल ई यात्रा 6 अप्रैल 1930 के नमक हाथ में लेके नमक विरोधी क़ानून भंग कइले के आह्वान कइने।

  • 12 मार्च 1930 के साबरमती आश्रमसे भइल रहल नमक सत्याग्रह के सुरुआत
  • नमक क़ानून के तुड़ले पs 70 हजार से ज्यादा लोग के भइल रहल गिरफ्तारी
  • 5 मार्च 1931 के गांधी अउर इरविन के बीच समझौता के बाद खत्म भइल रहल आंदोलन

नमक क़ानून के खिलाफ सुरु भइल रहल दांडी सत्याग्रह 

एटैक्स मुख्य उद्देश्य अंग्रेजन के लागू नमक क़ानून के विरुद्ध सविनय क़ानून के भंग कइल रहल। दरअसल अंग्रेजी शासन में भारतीयन के नमक बनवले के अधिकार नाइ रहल। ओनके इंग्लैंड से आवे आला नमक के इस्तेमाल करे के पड़त रहल। एतने नाइ, अंग्रेज एह नमक पs कई गुना टैक्सो लगा देहल रहे। लेकिन नमक जीवन खातिर जरूरी चीज बा एलिए ए टैक्स के हटावे खातिर गांधी ई सत्याग्रह चलवले रहनें।

 

वर्ष 1930 के दांडी मार्च के बारे में: 

दांडी मार्च, जेके नमक मार्च (Salt March) अउर दांडी सत्याग्रह (Dandi Satyagraha) के नाव से जानल जाला, मोहनदास करमचंद गांधी के नेतृत्व में एगो अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन रहल। एके 12 मार्च, 1930 से 6 अप्रैल, 1930 ले ब्रिटिश नमक के खिलाफ टैक्स प्रतिरोध अउर अहिंसक विरोध के प्रत्यक्ष कारवाई के रूप में चलवले रहनें। गांधीजी 12 मार्च के साबरमती से अरब सागर ले दांडी के तटीय शहर ले 78 अनुयायियन के संगे 241 मील के यात्रा कइल गइल, एह यात्रा के उद्देश्य गांधी अउर उनके समर्थक लोग समुन्दर के पानी से नमक बना के ब्रिटिश नीति के अवहेलना कइल रहल। दांडी के तर्ज पs भारतीय राष्ट्रवादियन के बंबई अउर कराची जइसन तटीय शहरन में नमक बनवले खातिर भीड़ के नेतृत्व कइल गइल| सविनय अवज्ञा आंदोलन पूरा देश में फइल गइल, जल्दिये लाख भर भारतीय एमें सामिल हो गइनें। ब्रिटिश अधिकारी सब 60,000 से बेसी लोग के गिरफ्तार कइने। 5 मई के गांधीजी के गिरफ्तार भइले के बादो ई सत्याग्रह जारी रहल।

कवयित्री सरोजिनी नायडू 21 मई के बंबई से लमसम 150 मील उत्तर में धरसना नाव के स्थल पs 2,500 लोग के नेतृत्व कइली। अमेरिका पत्रकार वेब मिलर के दर्ज कइल गइल एह घटना  भारत में ब्रिटिश नीति के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पs आक्रोश उत्पन्न क देहलस। गांधीजी के जनवरी 1931 में जेल से रिहा क दिहल गइल, जेकरे बाद ऊ भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन से मुलाकात कइने। ए मुलाकात में लंदन में भारत के भविष्य पs होखे आला गोलमेज़ सम्मेलन  में सामिल होखे अउर सत्याग्रह खतम कइले पs सहमति देहल गइल। गांधीजी अगस्त 1931 में राष्ट्रवादी भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में एह सम्मेलन में हिस्सा लिहने। ई बइठकी निराशाजनक रहल, लेकिन ब्रिटिश नेता लोग गांधीजी के एगो अइसन ताकत के रूप में स्वीकार कइने जेके न त ऊ लोग दबा सकत रहनें अउर न अनदेखा क सकत रहनें।

दांडी मार्च  (पृष्ठभूमि):

वर्ष 1929 के लाहौर कॉन्ग्रेस ने कॉन्ग्रेस कार्य समिति (Congress Working Committee) के टैक्स के भुगतान न कइले के संगही सविनय अवज्ञा कार्यक्रम सुरु कइले खातिर अधिकृत कइले रहने। 26 जनवरी, 1930 के “स्वतंत्रता दिवस” मनावल गइल, जेकरे अंतर्गत अलग-अलग जगही पs राष्ट्रीय ध्वज फहरा के देशभक्ति के गीत गावल गइल। साबरमती आश्रम में फरवरी 1930 में कॉन्ग्रेस कार्य समिति के बइठक में गांधीजी अपने अनुसार समय अउर जगही के चयन क के सविनय अवज्ञा आंदोलन सुरु कइले खातिर अधिकृत कइल गइल। गांधीजी भारत के वायसराय (वर्ष 1926-31) लॉर्ड इरविन के अल्टीमेटम देहने कि अगर उनके कम से कम मांग के नज़रअंदाज कइल गइल त ओनके लग्गे सविनय अवज्ञा आंदोलन सुरु कइले के अलावा अउर कौनो दूसर रास्ता नाइ बची।

आंदोलन के प्रभाव:

सविनय अवज्ञा आंदोलन के दुसर-दुसर प्रांत में अलगे-अलगे रूप में सुरु कइल गइल, जेमें विदेशी वस्तुन के बहिष्कार पs विशेष ज़ोर देहल गइल रहे। पुरुब के भारत में चौकेदारी टैक्स के भुगतान कइले सेर मना क देहल गइल रहे, जेमे नो-टैक्स अभियान  बिहार में सबसे बेसी लोकप्रिय भइल। जे.एन. सेनगुप्ता बंगाल में सरकार के प्रतिबंधित किताबन के खुलेआम पढ़के सरकारी क़ानून के अवहेलना कइनें। महाराष्ट्र में वन कानून के अवहेलना बड़हन पैमाना पs कइल गइल। ई आंदोलन अवध, उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश अउर असम के प्रांत में आग के तरे फइल गइल।

महत्त्व:

एह आंदोलन के चलते भारत में ब्रिटेन के आयात नगदे गिर गइल। उदहारन में ब्रिटेन से कपड़े के आयात आधा हो गइल। ई आंदोलन पिछले आंदोलनन के तुलना में नगदे बड़हन रहल, जेमें औरत, किसान, मजूरा, छात्र अउर व्यापारी दुकानदार जइसन सहरी तत्त्व ने बड़हन पैमाना पs भागीदारी कइनें सब। एसे अब कॉन्ग्रेस के अखिल भारतीय संगठन के रूप प्राप्त हो गइल। इस आंदोलन के कस्बा अउर देहात दूनों में गरीब अउर अनपढ़न से जौन समर्थन हासिल भइल, ऊ उल्लेखनीय रहल। एह आंदोलन में भारतीय औरतन के बड़हन संख्या में खुलहा भागीदारी उनके खातिर वास्तव में मुक्ति के सबसे अलग अनुभव रहल। हालाकि कॉन्ग्रेस बरिस 1934 में सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिहल, लेकिन ई आंदोलन वैश्विक स्तर पs ध्यान आकर्षित कइल अउर साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के प्रगति में महत्त्वपूर्ण डेग के चिह्नित कइल।

 

लेख – कुमार आशू

स्त्रोत – इंडियन एक्सप्रेस

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