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आजादी का अमृत महोत्सव: अंग्रेजन के दबाव में नाइ आइल रहलें भाई जी, राजद्रोह में कई बेर गइलें जेल

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गोरखपुर में 1936 में भयंकर बाढ़ आ गइल रहल। हजारों घर तबाह हो गइल रहल। एकर जानकारी जब पंडित जवाहर लाल नेहरू हो गइले त ऊ इहां दौरे पर अइलें। उनके अइले से पहिले अंग्रेज सब लोग के धमकी देहले रहल कि अगर केहू पंडित नेहरू के कार उपलब्ध करावल त ओकर नाम विद्रोहियन के सूची में लिख देहल जाई।

अधिकांश लोग त अंग्रेजों के खौफ के वजह से अइसन नाइ करे खातिर मान गइलें। लेकिन, हनुमान प्रसाद पोद्दार उर्फ भाई जी अंग्रेजन के आगे नाइ झुकलें अउरी आपन कार नेहरू जी को दे देहले रहलें। गीताप्रेस के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार उर्फ भाई जी बहुत बड़ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहलें। अंग्रेजन द्वारा कई तरह के अत्याचार के बावजूद ऊ स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभावत रहलें।

उनके सहकर्मी गंभीर चंद दुजारे के पुत्र हरिकृष्ण दुजारे बतवलें कि गोरखपुर में नेहरू जी के आगमन पर कार देहले पर अंग्रेज उनकर नाम विद्रोहियन के सूची में दर्ज क देहले रहने।

हथियार के जखीरा के लूट के छिपवले में दर्ज भइल रहे राजद्रोह

कलकत्ता (कोलकाता) में आजादी के आंदोलन अउरी क्रांतिकारियन के साथ काम कइले के एक मामले में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने हनुमान प्रसाद पोद्दार सहित कई प्रमुख व्यापारियन के राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार क के जेल भेज देहल गईल। आरोप लागल कि ई लोग ब्रिटिश सरकार के हथियारन के जखीरा के लूटके ओके लुकववले में मदद कइले रहल।

कलकत्ता में ऊ स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियन अरविंद घोष, देशबंधु चितरंजन दास, पं. झाबरमल शर्मा के संपर्क में अइलें अउरी आजादी के आंदोलन में कूद पड़ल रहलें। एकरे बाद लोकमान्य तिलक अउरी गोपाल कृष्ण गोखले जब कलकत्ता अइलें त भाई जी उनके संपर्क में आइल, एकरे बाद उनकर मुलाकात गांधीजी से भईल रहल। बाद में ऊ जमनालाल बजाज के प्रेरणा से मुंबई चल अइलें। इहां ऊ वीर सावरकर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, महादेव देसाई अउरी कृष्णदास जाजू जइसन विभूतियन के संपर्क में अइलें।

मुंबई में मारवाड़ी खादी प्रचार मंडल के स्थापना कइलें

मुंबई में उ अग्रवाल नवयुवकन के संगठित कर मारवाड़ी खादी प्रचार मंडल के स्थापना कइलें। मुंबई में ऊ अपने मौसेरे भाई ब्रह्मलीन श्रीजयदयाल गोयन्दका के गीता पाठ से बहुत प्रभावित रहलें। उनके गीता के प्रति प्रेम अउरी लोग के गीता के लेके जिज्ञासा देखत भाई जी एह बात के प्रण कइले कि ऊ श्रीमद्भागवत गीता के कम से कम मूल्य पर लोग के उपलब्ध करइहें। बस इहे छोट संकल्प गीताप्रेस गोरखपुर के स्थापना के आधार बनल। 29 अप्रैल 1923 के गीता प्रेस की स्थापना भईल।

 

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