खबर भोजपुरी एगो सेगमेंट ले के आइल बा जवना में हर सोमार के दिने रउरा सभे अपना देश के कोना-कोना में बसल मंदिरन के जानकारी दी.
माई तरकुलहा देवी मंदिर में स्थानीय लोग के अलावा गोरखपुर-बस्ती मंडल के सब जनपद अउर नेपाल से बड़ संख्या में भक्त माई के दर्शन करे आवेले। कहल जाला कि माई भगवती के दरबार में जवन मनसा होला ऊ पूरा हो जाला। नवरात्रि पर एह मंदिर में पूजा के खास महत्व बा। इहे कारण बा कि नवरात्रि के हर दिन इहाँ भक्तन के भीड़ देखे के मिलेला। अमर शहीद बंधु सिंह जंगल आ तरकुल के पेड़ से ढंकल इलाका में पिंडी बना के पूजा करत रहले।
माँ तरकुलहा देवी मंदिर स्वतंत्रता संग्राम के साक्षी बा। ओह घरी ओहिजा जंगल रहे, एही से स्वतंत्रता सेनानी लोग खातिर लुकाए खातिर सबसे उपयुक्त जगह रहे। देशभक्त लोग एहिजा माई भगवती के पूजा करत रहे आ अपना अभियान पs निकलत रहे। इहाँ नवरात्रि से एक महीना के मेला के आयोजन होला। एह स्थल पर मुंडन, पवित्र धागा आ अउरी संस्कार भी होला।
असल में तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर अपना अनेक चमत्कार आ कहानी खातिर जानल जाला, ई मंदिर स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़ल बा।
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माई तरकुलहा देवी मंदिर के इतिहास
मंदिर के कहानी चौरीचौरा तहसील क्षेत्र के डुमरी रियासत के बाबू बंधु सिंह से जुड़ल बा। बाबू बंधु सिंह अंग्रेजन के सिर काट के माई के चढ़ावत रहले। एकरा चलते अंग्रेज अधिकारी डेरा गईले अवुरी धोखाधड़ी से बंधु सिंह के गिरफ्तार कs फांसी देवे के आदेश देले।

लटकल फांसी के फंदा सात बेर टूट गइल. तब बंधु सिंह माई तरकुलहा से निहोरा कईले कि हे माई हमरा के अपना चरण में ले लs। आठवीं बेर बंधु सिंह खुद गरदन में फांसी के फंदा लगवले। एकरा बाद गोरखपुर के अली नगर चौराहे पs 12 अगस्त 1857 के सार्वजनिक रूप से फांसी पs लटका दिहल गइल। उनुका के फांसी दिहल गइल। बाद में भक्त लोग इहाँ मंदिर बनवले।
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मंदिर के कहानी चौरीचौरा तहसील क्षेत्र के डुमरी रियासत के बाबू बंधु सिंह से जुड़ल बा। बाबू बंधु सिंह अंग्रेजन के सिर काट के माई के चढ़ावत रहले। एकरा चलते अंग्रेज अधिकारी डेरा गईले अवुरी धोखाधड़ी से बंधु सिंह के गिरफ्तार कs फांसी देवे के आदेश देले।
लटकल फांसी के फंदा सात बेर टूट गइल. तब बंधु सिंह माई तरकुलहा से निहोरा कईले कि हे माई हमरा के अपना चरण में ले लs। आठवीं बेर बंधु सिंह खुद गरदन में फांसी के फंदा लगवले। एकरा बाद गोरखपुर के अली नगर चौराहे पs 12 अगस्त 1857 के सार्वजनिक रूप से फांसी पs लटका दिहल गइल। उनुका के फांसी दिहल गइल। बाद में भक्त लोग इहाँ मंदिर बनवले।
मंदिर के विशेषता
माई तरकुलहा देवी मंदिर स्वतंत्रता संग्राम के साक्षी बा। ओह समय इs जंगल रहल। एहलिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियन के लुकइले के सबसे मुफीद जगही रहल। देशभक्त इहां माई के पूजा-अर्चना कs के अपने अभियान पs निकलत रहले एहके अलावा ईहां राम नवमी से एक महीना के मेला लागsला। ई पुरान परंपरा बा। बाकिर अब उहवाँ सौ से अधिक दुकान स्थायी बा अउर रोज मेला के दृश्य होला। लोग पिकनिको मनावे उहवाँ जाला। मुंडन अउर जनेऊ अउर दूसर संस्कारो एहिजा होला।

देस के एकलौता मन्दिर जहवाँ परसादी में मटन चढ़ावल जाला
ई देश के इकलौता मंदिर बा जहवाँ प्रसाद के रूप में मटन देहल जाला। बंधू सिंह अंग्रेजन के मूड़ी चढ़वले के जौन बली के परम्परा शुरू कइले रहले. ऊ आजो चालू बा। अब ईहाँ पs बकरा के बलि चढ़ावल जाला, एकरे बाद बकरा के मांस के माटी के बरतन में पका के प्रसाद के रूप में बाटल जाला।
तरकुलहा देवी माता मंदिर के समय
तरकुलहा देवी माता मंदिर सुबह 7:00 बजे खुलेला आ साँझ 8:00 बजे बंद होला। सबेरे 8:00 बजे आ साँझ के आरती 7:00 बजे होला।
तरकुलहा देवी कइसे जाई
गोरखपुर जिला मुख्यालय से लमसम 22 किलोमीटर दूर देवरिया रोड पs फुटहवा इनार के लग्गे मंदिर मार्ग के मुख्य गेट बा। उहवाँ से लमसम डेढ़ किमी पैदल, निजी वाहन चाहे आटो से चलके मंदिर पहुंचल जा सकsता।

हवाईजहाज द्वारा
तरकुलहा देवी के मंदिर जाए खातिर सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गोरखपुर हवाई अड्डा बा।
ट्रेन
चौरीचौरा, देवरिया भा गोरखपुर रेलवे स्टेशन से तरकुलहा देवी मंदिर जा सकेनी।
सड़क के रास्ता
देवरिया भा गोरखपुर रेलवे स्टेशन से बस भा टैक्सी से तरकुलहा देवी मंदिर जा सकेनी.