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कहानी : आजु पढ़ी कुंदन सिंह : केसर बाई

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लेखक – आचार्य शिवपूजन सहाय

दूनों के उठती जवानी रहे । ओह जवानी पर अइसन चिकन पानी रहे कि देखनिहार के अखि विछिलात चले । गाँव के लोग कहे कि बरम्हा का दुआरे जब सुघराई बटात रहे तब सबसे पहिले ईहे दुनो बेकति पहुँचले । सचमुच दूनों आप- आपके सुग्घर । बिआह का बेर माड़ो में देखनिहार का धरनिहार लागल रहे ।

घर -परिवार में केहू ना रहे । दुइए प्रानी से आँगन घर गहगहाइल बुझाइ । जब एगो बनूक छतियावे त दोसर ओकर तमतमाइल चेहरा निहारि-निहारि के मुसुकाए आ भहूँ फ्रफरावे लागे । एगो जब बँसुरी बजावे त दोसर चिटुकी बजाइ -बजाइ के गुनगुनाए लागे । एगो जब कसरत करे लागे त दोसर ओठ चांपि के उँकारी देत चले । एगो जब खाए बइठे त दोसर बेनिया डोलाइ के सवाद पुछे ।

एक दिन आसिन के पूनो का अँजोरिया में अपने अँगना पटिहाटि खटिया पर सुजनी डसाई के दूनो बतरस के आनन्द लेत रहले कि एही बीच एगो कहलस कि हम तोहरा के बहुत पेयार करीला । ई सुनि के दोसरकी बोललि, हमहूँ तोहरा पेयार के दुलार करीला ।

” वोह दुलार के हम सिंगार करीला । जब-जब हम तोहरा दुलार के सिंगरले बानी, तोहरा जरुर इयाद होई । माघ के रिमरिमझिम मेघरिया में, फागुन के फगुनहट से मस्ताइल रंगझरिया में, चइत बइसाख के खुब्बे फुलाइल फुलवरिया में, जेठ के करकराइल दुपहरिया में, असाढ – सावन के उमड़लि बदरिया में, भादो के अधरतिया अन्हरिया में, कुआर-कातिक के टहाटह अंजोरिया में, अगहन-पूस के कंपकंपात सिसकरिया में – जब-जब तूँ हमरा प्यार के दुलार कइलू, हम वोह दुलार के अइसन सिंगार कइलीं कि तोहार आँखि मँडराए लागलि । बाटे इयाद ? ”

अतना सुनिके ऊहो ठुनकि-ठ्नकि के जम्हाई लेवे लागलि । अइसन रंग ढंग देखि के ई कहलसि कि हमनी का भगवान के दीहल सब सुख भोगत बानी, बाकी अपना देस के कोनो सेवा अवहीं ले ना संपरल । छत्री का कोखी जनम लेके हमनी का अपना जाति के कोनो गुन दुनिया के ना देखवलों । हमरा इसकूल के साथी सब कहेलनि कि जब से तोहरा बिवाह भइल तब से तूं अइसन मउग हो गइल से दिन रति घरे में घुसल रहे ल ।

” एह खातिर हम का क्री ? सरकारे आपन करनी निहारी । पहिले रउरे उसुकाईले पाछे लागीले देसभक्ति के गीति गाइके अपना साथियन के ओरहन सुनावे । रावा जवन काम करबि तवना में हमरा साथ देवही के परी । रावा झण्डा लेके निकसी त देखीं जे हमहूँ अपने का संगे निकासत बानी कि ना । हमहू छत्री के बेटी हई । हमरा नइहर के सखी के मरद अपना संगे हमरा सखिओ के जेहलि में ले गइल बाड़े । रउरो हमरा के जहाँ चाहीं तहां ले चलीं । रावा साथे हम आगिओ में कुदबि त तनिको आँच ना लागी । रउरे संगे तरुआरिओ के धार पर सँसते-हँसते चलि सकीला । बाकी रउरा बिना हम कतही ना जाइ सकी । पहिले सरकारे अपना के सुधारीं, हम त पिछलगुई हईं । मरद के परछाँही मेहरारु हवे । मेहरिया के पाछा-पाछा मरदा रसियाइल डोरियाइल फिरी त कवन अभागिन होई जे ओकरा के लुलुआवत रही ? ”

” तोहार बात हम काटत नइखीं, बाकी सभ दोस हमरे नइखे । ”

” अच्छा त बिहान होखे दम हमही पहिले तिरंगा झंडा ले के निकसबि । ”

” तब त हमरा छाती सिकंदरी गज से डेढ गज के हो जाई । बात नइखीं बनावत । ”

” तोहरा बान बनावे से अधिका चिकनावे आवेला । ”

” अच्छा त काल्हु जब सरकारी चरन चउकठ लाँघी त देखल जाई हमार उमंग-तरंग । ”

सन उनइस सौ बेयालिस ईसवी में भोजपुरियो इलाका अइसन अगियाइल रहे कि जेने देखीं तेने उतपाते लउके । कहीं सड़क कटात रहे, कहीं टेसन आ मालगोदाम लुटात रहे, कहीं थाना-डाकखाना फुँकात रहे, कहीं भाला-बरछा-फरसा मँजात रहे, कहीं मल्लू अइसन मुँहवाला टामी लोग के लाटा कुटात रहे कहीं रेल के लाइन उखड़ात रहे, कहीं कौनो पुलिस-दरोगा ओहारल डोला में लुका के परात रहे, कहीं मकई का खेत में लड़ाई के मोरचा बन्हात रहे, जहाँ सूई ना समात रहे तहां हेंगा समवावल जात रहे, सगरे अन्हाधुन्हिए बुझात रहे ।

कुन्दन -केसर के देखा देखी गांवो के लोग कमर कसले रहसु । सभे ईहे बिनवावt-मनावत रहे कि गोरन्हि के राज उलटि जाउ । गोरा अफसर लोग जेने-तेने विललात फिरत रहसु । दूनो के साहस आ उतसाह त काम करत रहे, दूनो के रुप के जादू सबसे बेसी मोहिनी डाले । जेने दूनो के दल चले तेने हंगामा मचि जाइ । दूनों बेकत के बोली सुनला से लोगन के मन ना अघात रहे । जनता पर रुप आ कंठ के टोना अइसन चलल कि अँगरेजी सरकार के माथा टनके लागल । दूनो के नाम वारण्ट कटल । जनता दूनों के पलक-पूतरी अइसन रच्छा करे लागलि । जब थाना-पुलिस के गोटी न लहलि त फउजी गोरन्हि के तइनाती भइल । तबो गोरा लोग के छक्का छुटि गइल, बाकि दूनो के टोह न मिलल ।

जवना दिन दूनों अपना घर के असबाब एने-ओने हटावे खातिर गाँवे पहुँचले तवने दिन पीठियाठोक गोरो पहुँचले स । दूनों अपना घर के खलिहाइ के भीतर बतियावत, छतियावत, रहलेसनि, तबले गोरा धमकि अइलेस, हल्ला सुनि के दूनों के कान खड़ा हो गइल । कुन्दन कच्छा कसि के बनूक में टोंटा भरे लागल, केसर झपट के मियान से तरुआरि खींचि के कमर में आँचर बान्हि लेलसि । दूनों हूह करत धड़-फड़ बाहर निकलले त केवार खुलते गोरा अचकचाइ गइलेस । कुन्दन तीनि जाना के ठावें पटरु कइ देलस आ केसरो दुइ जाना के माथ काटि के दुरुगा-भवानी अइसन छरके लागलि । गोरा लोग के जबले खुले-खुले तबले दूनों के मार-काट से केहू के हाथ कटा के गिरि परल आ केहू के कपार फाटि गइल आ केहू के छाती छेद ले के गिरल कँहरे लागल । अतना छत्रियाँव दिखवला के बाद दूनों बहादुर खेत रहले । गोली लगला पर केसर घुमरी खात कुन्दन का देह पर जा गिरलि । अतने में गाँव जवार के लोगनि के गोहार जुटलि , बाकि गोरा आपन पाँचो लास लेके पराइ गइलेस ।

कुन्दन-केसर के लोथ उठाइ के लोग गंगाजल से नहवावल, चन्दन चढावल, फूलमाला से सजावल, अँजुरी के अँजुरी फूल बरिसावल, अगरबत्ती-कपूर के आरती देखावल, दूनों के जय जयकार से आकास गुंजावल, गाँवे-गाँव घुमाई के दूनों साहसी सहीदन के पूजा करावल आ घरे-घरे देवी लोग लोर ढारि-ढारि अर्घ चढावल । चारु ओर पंचमुखे ईहे सुनाइ जे अइसन मरन भगवान बिरले के देले ।

 

 

 

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