गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट में ‘संगीत का साहित्य’ विषय पs बोलली मालिनी अवस्थी
भारत में कलाकार के अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के आधार पर तुलना कइल ठीक नइखे। लोकसाहित्य के बारे में ई गलत अवधारणा ह कि ई सब या त मनोरंजन खातिर रचल गइल या फिर अपने सुख खातिर। ई बात फेमस फोक सिंगर मालिनी अवस्थी कहली।
ऊ गोरखपुर लिट फेस्ट में ‘संगीत का साहित्य’ टॉपिक पर आपन बात रखत रहली। बातचीत के शुरुआत मॉडरेटर मीनू खरे संगीत के साहित्य के गंभीरता पर सवाल से कइले जेपर मालिनी अवस्थी गोरखपुर से अपने जुड़ाव के याद करत जवाब दिहली।
लोक अउर बॉलीवुड में देखवली समानता
ऊ कहली कि सच्चाई ई बा कि प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा से युक्त भारतवर्ष के लोक साहित्य पीढ़ीगत संस्कार के ढ़ोअत रहले के परिणाम ह। ऊ सोहर के उदाहरण से बतवलें कि कइसे वेद अउर पुराण के सूत्र ओमें समाहित बा। हिरनी अउर हिरन के रामजन्म पर आधारित सोहर के उदाहरण देत उ कहली कि अइसन सोहर में हमार संगीत अपने माध्यम से हर अगिला पीढ़ी के ई संदेश देला कि मंगल मंगल नइखे हो सकत जौन केहू के अमंगल कsके के होखे। मालिनी अवस्थी दर्शक लोग के बीच कई लोकगीत अउर बड़ बॉलीवुड गीतन के बीच समानता दिखलावत अनेक सुमधुर गीत सुनवलें। सत्र के अंत में ऊ रेलिया बैरन अउर राग भैरवी पs आधारित गीत गवलें।
पुरस्कार खातिर संगीत साधना नाइ ह
साहित्यकार यतीन्द्र मिश्र कहनें कि कौनो गायक कलाकार या संगीतकार कब्बो पुरस्कार खातिर संगीत साधना नाइ करsला। सच्चा कलाकार मंच अउर यश के इच्छा से मुक्त होला। बिना शब्द के संगीत केवल मात्र अलाप चाहे तराना ही रह जाई, एहलिए हर नजरिया से साहित्य अउर संगीत से जुड़ल होला। विनय पत्रिका के ‘पद गाइये गणपति जगवन्दन’ अउर ‘राग बिलावल’ के उदाहरण देत कहनें कि घराना के संगीत खुद में साहित्य से पूर्ण होला। भारत के मतलब ह भाव, राग अउर ताल के मिलन।
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