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भोजपुरी संगम के 172वीं में भोजपुरी के बल आ बेंवत पs भइल बतकही

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गोरखपुर। भोजपुरी संगम के 172वीं बइठकी रामनरेश शर्मा ‘शिक्षक’ के अध्यक्षता आ अवधेश ‘नंद’ के संचालन में खरैया पोखरा इस्थित संस्था कार्यालय में सम्पन्न भइल। बइठकी के पहिला सत्र में ‘भोजपुरी क बल आ बेंवत’ विषय पs बतकही कइल गइल।

एह दौरान प्रो. विमलेश मिश्र कहलें कि आज भोजपुरी के फइलाव 50 हजार वर्गमील हो चुकल बा। भारत के अलावे दुनिया के कइयन देसन में भोजपुरी फल-फूल रहल बिया। भोजपुरी में काव्य रचना के परम्परा तs खूबे प्रबल बा, संगही उपन्यास, कहानी, निबन्ध, नाटक, आलोचना सहित यात्रा साहित्य, संस्मरण, जीवनी, आत्मकथा आदि साहित्य के छोट विधा तक में भोजपुरी रचल जा रहल बिया।

चन्देश्वर ‘परवाना’ कहलें कि लगभग 24 करोड़ के कंठ में बिराजमान भोजपुरी के आपन अलग पहचान आ संस्कार बा। जवन पीढ़ी दर पीढ़ी खुदे: संचालित बा। पारिवारिक सम्बन्ध, तीज-त्यौहार, प्रेम-व्यवहार, बात-विचार आ मान-मर्यादा के जाने के होखे तs भोजपुरी क्षेत्र-जवार में जाके भोजपुरिया लोगन से मिले के होई। एकरा से भोजपुरी के बेंवत के सटीक अन्दाजा लागी। दिल्ली से आइल केशव मोहन पाण्डेय कहलें कि भोजपुरी के बेंवत अकूत बा। बिना शासन-सत्ता के सहजोग पवलही ई हर जगह ताल ठोक रहल बिया। साहित्य अकादमी के भाषा सम्मान एकरा मिलल बा। शोध जारी बा आ कइयन ग्रन्थन के प्रकाशनो हो रहल बा। अभोजपुरी भाषी क्षेत्रन में भोजपुरी पुस्तकन के खूब मांग बा।

बइठकी के दुसरका सत्र में कविय लोग आपन भोजपुरी कवितन के पढ़ल-

कमलेश मिश्रा के काव्य क्रम हिरदे के छुवल-

का बतलाईं आपन हाल?
घर में बा ना रोटी- दाल

अजय यादव प्रेम प्रसंग उठवलें-

पहिला बेर नजर अझुराइल, दिलवा भइल घायल
एह पर कवनो जोर चलल ना, तोहरे भइल कायल.

प्रेमनाथ मिश्र गीत पढ़लें-

कवनो कहनिया सुनइतअ ए मितवा!
जिनगी के रहिया देखइतअ ए मितवा!

ओमप्रकाश पाण्डेय ‘आचार्य’ रामचरित रचलें –

काल कराल महा बिकराल,
भरल राम रोस से पावक माई.
तीनहुं लोक भुवन चौउदह,
ओके रोकिले ई केकरे प्रभुताई.

अवधेश नन्द के दोहा महत्वपूर्ण रहे –

जगहि-जगहि पर बाति के, अलगे-अलगे मोल.
सबद-सबद हऽ बटखरा,’नन्द’ तउलि के बोल.

डा. बहार गोरखपुरी दोहा छंद के नया आयाम देलें-

कपटी के मुँहवा झरे, मधु सरिता के धार.
रखले बा ऊ जेब में, छल से भरल कटार.

नर्वदेश्वर सिंह तिरस्कृत बुढ़ापा के प्रति संवेदना व्यक्त कइलें –

बूढ़ा-बूढ़ा मति कहा, बुढ़िया क सेवा करा
नाहीं त लगि जाई हाय हो बहुरिया.

सुभाष चन्द्र यादव बचपन के भावुक इयाद प्रस्तुत कइलें-

जब-जब इयाद आवे दिन लरिकाईं के
मनवा मसोसे बड़ा मरे पछताई के

चन्देश्वर ‘परवाना’ आपन चर्चित गीत पढ़लें –

माहुर जरत जेठ घाम बाड़े रे!
तें तअ नजरिया के खाम बाड़े रे!

एह कवि लोगन के अलावे बइठकी में कुमार अभिनीत, सुधीर श्रीवास्तव ‘नीरज’, चन्द्रगुप्त वर्मा ‘अकिंचन’ आ अरविन्द ‘अकेला’ आपन अपनी रचना पढ़ल लो।

काव्य पाठ के बाद प्रेमनाथ मिश्र के फिरोजाबाद के संस्था ‘प्रज्ञा हिंदी सेवार्थ संस्थान’ कावर से आयोजित श्रीमनोहर सिंह स्मृति राष्ट्रीय गीत लेखन प्रतियोगिता में विजेता होखला के उपलब्धि पs बधाई दिहल गइल।

अंत में वरिष्ठ कवि डॉ. फूलचंद प्रसाद गुप्त के बड़ भाई के देहावसान s मौन रखके श्रद्धांजलि अर्पित कइल गइल।
आभार ज्ञापन संयोजक कुमार अभिनीत कइलें।

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