Khabar Bhojpuri
भोजपुरी के एक मात्र न्यूज़ पोर्टल।

भोजपुरी संगम’ के 156 वां ‘बइठकी’ भइल संपन्न 

1,654

गोरखपुर। ‘भोजपुरी संगम’ के 156 वां ‘बइठकी’ तुर्कमानपुर, गोरखपुर में डॉ.रवीन्द्र श्रीवास्तव ‘जुगानी भाई’ के आवास पs प्रो.शिव शंकर वर्मा के अध्यक्षता आ नंद कुमार त्रिपाठी के संचालन में संपन्न भइल। बइठकी के पहिला सत्र में भोजपुरी के सेसर कलमकार स्वर्गीय पं.चंद्रशेखर मिश्र के रचनात्मक अवदान पs विस्तृत चरचा कइल गइल।

चरचा क्रम के सुरू में नर्वदेश्वर सिंह पंडित जी के व्यक्तित्व आ कृतित्व पs विस्तार से प्रकाश डालत कहलें कि ग्रामीण परिवेश से जुड़ल कवनो संदर्भ पंडित जी के लेखनी से अछूता ना रहल। सत्य प्रकाश शुक्ल पंडित जी के भोजपुरी साहित्य के चमकत सूरूज बतावत कहलें कि उहां के रचना में समाज के अंतरात्मा के हर कोण से अवलोकन बा, भक्ति के उच्च आदर्श बा, कमजोर नारी के मुखर प्रतिकार बा, सबल के धिक्कार आ नौजवानन में देस प्रेम जगावे के प्रबल संवेग बा।

पं.चन्द्रशेखर मिश्र जी के भोजपुरी के युगपुरुष बतावत जुगानी भाई कहलें कि क्लास आ मास दुनो के बीच एक तरह के असर छोड़े वाला गिनल चुनल रचनाकारन में चन्द्रशेखर जी के नाम लिहल जाला। प्रो.राम दरश राय मिश्र जी के आजादी के बाद के प्रसिद्ध कवियन के पहिला पंक्ति के सम्मानित कवि बतवलें। मिश्र जी के गुरु गंभीर रचना संसार जीवन-जगत, आदमी-औरत, लोक-समाज के समस्त मनोविज्ञान से परिचित आ भाव पक्ष में पूर्ण बा।

बइठकी के काव्य सत्र अद्भुत रूप से रहल प्रभावी

 

युवा रचनाकार सत्यम पाण्डेय ने फरमवलें-

हिंदी देखा भइल किनारे, इंग्लिश भइल महान,

शिक्षा देवे वाला अब स्कुलवे बनल‌ दुकान।

 

अरविन्द कुमार यादव नया कविता के महत्वपूर्ण भोजपुरी आयाम देलें-

हम अयोध्या हईं/ राम, लक्ष्मण, भरत कऽ आपन अयोध्या/ बाकिर न बनि पवलीं/ सीता क अयोध्या

 

सत्य प्रकाश शुक्ल रंग-पर्व के अप्रतिम अलंकरण कइलें-

मन के धो लीहऽ, टो लीहऽ, खो लीहऽ हो,

आजु होली हऽ, केहू क हो लीहऽ हो

 

नर्वदेश्वर सिंह संदेश देलें-

जीवन में प्रेम कऽ पैगाम होवे के चाहीं,

आचरन में राम-घनश्याम होवे के चाहीं

 

प्रेमनाथ मिश्र बसंती रचना पढ़लें-

जबसे बहल बयार बसंती, फूले फूल फुलाइल बा,

किसिम किसिम के फूल देखि के,

भंँवरा ले भकुआइल बा

 

शशि बिंदु नारायण मिश्र सामाजिक संदर्भन के रचना में उकेरलें-

जे आधुनिक चकाचौंध वाला बड़मनई बाऽ,

खाली ऊहे पतंग उड़ाई, बाकी समाज केऽ सब उनके राहे से देखत जाई

 

सृजन गोरखपुरी के गजल विकृत समाज पs गहिराह चोट कइलस- 

आजु ई तऽ बिहान ऊ भरी,

अब त सेनुरो मजाक हो गइल,

सूपनखिया पसंद आ गइलि,

जानकी कऽ तलाक हो गइल

 

संयोजक कुमार अभिनीत जीवन के सार समझवलें- 

जिनगी के सार बूझऽ, आपन हमार बूझऽ

सबके बा एक्के कहानी हो,

अइसे चलेले जिन्दगानी हो

 

डॉ.फूलचन्द प्रसाद गुप्त स्तरीय दोहा सराहल गइल-

पहुना रुकि जा राति भर, धइ लऽ कवनो डार,

आखिर अब जइबा कहांँ, देखऽ भइल अन्हार

 

डॉ.अरविन्द मिश्र फागुनी गीत पढ़लें-

फिर से बसंत गउवाँ आइ गइलें हो,

मोर पियवा न अइले

 

जुगानी भाई आपन बहुचर्चित गीत से काव्य सत्र के अंतिम आयाम देलें-

पेंड़वा के पुनुई से गितिया उतारि के,

  • एक दीया डारि आईं नदिया में बारि के

 

उपरोक्त के अलावा अरविंद ‘अकेला’, विवेकानंद मिश्र, इम्तियाज लक्ष्मीपुरी, डॉ.अजय ‘अन्जान’, वागेश्वरी मिश्र ‘वागीश’, राम समुझ सांवरा, ओम प्रकाश पाण्डेय ‘आचार्य’  अपना रचनन से बइठकी के समृद्ध कइल लो। आउर सुधी जन में रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी, अमरनाथ जायसवाल, डॉ.धनंजय मणि त्रिपाठी, दीपक कुमार आदि लोगन के मवजूदगी महत्वपूर्ण रहल।

कार्यक्रम के अंत में संयोजक कुमार अभिनीत अगिला महीना होखे वाला बइठकी के रूपरेखा बतवलें आ जुगानी भाई सब लोगन के प्रति आभार प्रकट कइलें।

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Comments are closed.