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भोजपुरी के इतिहास, अपना नायकन आ लोक संस्कृति कावर देखे के बा जरूरत

बीएचयू के भोजपुरी अध्ययन केंद्र में "भोजपुरी के लोक संस्कृति" पs भइल परिचर्चा के आयोजन।

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बीएचयू के भोजपुरी अध्ययन केंद्र में “भोजपुरी के लोकसंस्कृति और उसके लोक नायक” विषय पs संगोष्ठी के आयोजन कइल गइल, जेमे वक्ता लोग आपन विचार व्यक्त कइल।

विचार व्यक्त करत मुख्य अतिथि डॉ० मुन्ना पांडेय जी

 

एह अवसर पs मुख्य वक्ता के रूप में बोलत दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज में हिंदी के प्राध्यापक डॉ. मुन्ना कुमार पांडेय जी कहनी, आज जब दु गो संप्रदाय एक दोसरा के संशय से देख रहल बा रसूल मियां, फतेह बहादुर साही जइसन लोकनायक एह सबसे ऊपर उठके देश आ समाज के उत्थान के बात करत बा लो। हमनी के भोजपुरी के इतिहास कावर देखे के जरुरत बा। उहाँ के भिखारी ठाकुर के नाटकन बुड़साल के बयान, गबरघिचोर आ विधवा बिलाप जइसन नाटकन के माध्यम से भोजपुरी साहित्य के विषय विविधता के बात कइनी। उहाँ के कहनी कि विश्व में जब रेडिकल फेमिनिज्म के बात ना होत रहे तब भोजपुरी क्षेत्र के एगो लोकनायक गबर घिचोर जइसन नाटक के माध्यम से कहत बाड़े कि स्त्री के कोख पs स्त्रीये के अधिकार होखे के चाहीं। भिखारी ठाकुर लोकरंजन के संगे लोकोपदेश के नायक हउए। उहाँन के आगे कहनी कि हमनी के आपन नायकन आ लोकसंस्कृति कावर देखला के जरूरत बा।

अध्यक्षीय वक्तव्य देत भोजपुरी अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल भोजपुरी के समकालीन साहित्य आ भोजपुरी के भविष्य पs बात कइनी। उहाँ के भोजपुरी के नायकन पs विस्तार से चरचा करे के बात कहनी जवना से लोक संस्कृति के अलग-अलग पक्षन पs बात हो सके।भोजपुरी के विकास खातिर उहाँ के अकादमिक के साथे राजनीतिक इच्छाशक्ति के जरूरत बतवनी। उहाँ के कहनी कि जवन समाज अपना नायकन पs गर्व ना करेला उ बहुत देर ले आपन संस्कृति के बचा ना सकेला।

एह अवसर पs विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलत बलिया के सतीशचंद्र महाविद्यालय के इतिहास विभाग में प्राध्यापक डॉ. शुभनीत कौशिक राष्ट्रीय आ सामाजिक आंदोलनन में नाटकन के महत्त्वपूर्ण भूमिका पs आपन बात रखनी। उहाँ के कहनी कि सामाजिक आ राजनीतिक अवस्था के प्रकट करे में भोजपुरी नाटकन में सशक्त अभिव्यक्ति मिलेला। हिंदी क्षेत्र में भारतेंदु हरिश्चंद्र आ पश्चिम भारत में ज्योतिबा फूले नाटकन के माध्यम से सामाजिक हलचलन के अभिव्यक्ति कइलें बा लो। भोजपुरी के पहिला नाटक 1884 में लिखल रविदत्त शुक्ल के ‘ देवाक्षर चरित’ सहित भिखारी ठाकुर के विधवा विलाप, बिदेसिया, गबरघिचोर आ राहुल सांकृत्यायन के मेहरारुन के दुर्दशा, नईकी दुनिया आउर रामेश्वर सिंह कश्यप के लोहा सिंह जइसन नाटकन में भोजपुरी लोक संस्कृति के प्रमुख विशेषता स्पष्ट हो जाला।

कार्यक्रम के सफल संचालन शोध छात्र राणा अवधूत कुमार कइलें। जे समूचा कार्यक्रम के एक सुर में बन्हले रखले। स्वागत भाषण डॉली मेघनानी आ धन्यवाद ज्ञापन रिंकी कुमारी के रहल। एह अवसर पs डॉ प्रभात मिश्र, डॉ विंध्याचल यादव, डॉ ऋषि कुमार शर्मा, डॉ कौशलेश कुमार, डॉ शैलेन्द्र सिंह के संगे भारी संख्या में शोध छात्र मवजूद रहे लो।

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