प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट किशोरवय मन पऽ टेलीविजन, इंटरनेट मीडिया (TV & Internet Media) के ‘विनाशकारी’ प्रभावन पऽ गंभीर चिंता व्यक्त कइले बा। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ के एकलपीठ ई चिंता कौशांबी निवासी एगो अइसन किशोर के आपराधिक पुनरीक्षण याचिका स्वीकार करत कहलस, जवना में किशोर न्याय बोर्ड आ कौशांबी के पाक्सो अदालत के ओह आदेस के चुनौती दिहल गइल रहे, जेमे कहल गइल रहे कि नाबालिग संग सहमति से शारीरिक संबंध बनवला में आरोपित के वयस्क मान के ओकरा खिलाफ मुकदमा चलावल जाई।
न्यायालय निचला अदालत के आदेश के न्यायोचित ना पवलस आ ओकरा के रद कs दिहल। कोर्ट कहलस, “रिकार्ड में अइसन कुछुओ नइखे जवना से ई पता चले कि आरोपित कवनो शिकारी हs आ बिना कवनो उकसवले अपराध दोहरावे के खातिर प्रवृत्त बा। आ खाली एह खातिर कि उ जघन्य अपराध कइले बा, ओकरा के एगो वयस्क के बराबर नइखे रखल जा सकत, काहे कि मनोवैज्ञानिक ओकरा के सामाजिक संपर्क के अपर्याप्त पवले बा लो।”
कोर्ट याची के किशोर मान के ओकरा खिलाफ मुकदमा चलावे के निरदेस किशोर न्याय बोर्ड के दिहल। कोर्ट सुनवाई के दौरान आरोपित किशोर के मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन रिपोर्ट पऽ ध्यान दिहल। एमे 16 साल के आरोपित के बौद्धिक स्तर 66 मिललऽ।
न्यायालय कहलस कि ई आईक्यू ओकरा बौद्धिक कार्यक्षमता के ममिला में ‘सीमांत’ श्रेणी में रखत बा, जवन औसत बा। कोर्ट कहलस, मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट याची के पक्ष में बा। पीड़िता के संगे शारीरिक संबंध बनावत समय ओकर उमिर लगभग 14 बरिस रहे। न्यायालय इहो ध्यान में रखलस कि पीड़िता के गर्भपात के दवा दिहल ओकरा विवेक पऽ निर्भर नइखे।
कोर्ट कहलस कि किशोर न्याय अधिनियम के धारा 15 के तहत बोर्ड के चार मानदंड के आधार पऽ उचित प्रारंभिक मूल्यांकन करेके चाहीं, जवन इ बा- मानसिक क्षमता, जघन्य अपराध कइला के शारीरिक क्षमता, अपराध के परिणाम के समझला के क्षमता आ अपराध के परिस्थिति।
कोर्ट कहलस, किशोर न्याय बोर्ड आ अपीलीय न्यायालय कानून के अनुसार याची भा ओकर अभिभावक गवाह के सूची, दस्तावेज आ अंतिम रिपोर्ट उपलब्ध करावे में विफल रहल। हाई कोर्ट, बाम्बे हाई कोर्ट द्वारा मुमताज अहमद नासिर खान बनाम महाराष्ट्र राज्य के 2019 के फैसला में कइल गइल टिप्पणि से आपन सहमति व्यक्त कइलस।
एमे कहल गइल रहे कि टेलीविजन, इंटरनेट मीडिया (TV & Internet Media) नाबालिगन के संवेदनशील दिमाग पऽ विनाशकारी प्रभाव डालत बा आ एकरा परिणामस्वरूप बहुते कम उमिर में ओकर मासूमियत खत्म होत बा। कोर्ट कहलस, निर्भया ममिला अपवाद रहे, ना कि कवनो सामान्य नियम आ सब किशोरन पऽ वयस्क के तरे मुकदमा नइखे चलावल जा सकत, जब तक कि ओकरा मानस पऽ पड़े वाला समग्र सामाजिक आ मनोवैज्ञानिक प्रभाव पऽ उचित विचार ना कइल जाव।
‘कानून विकासशील अवधारणा हs आ एकरा के समय के संगे तालमेल बिठावेके होल। एह न्यायालय के ई माने में कवनो संकोच नइखे कि टेलीविजन, इंटरनेट मीडिया (TV & Internet Media) जइसन दृश्य माध्यम के किशोरन पऽ पड़े वाला घातक प्रभाव के नियंत्रित नइखे कइल जात आ ना अइसन प्रतीत होला कि सरकार एह तकनीक के अनियंत्रित प्रकृति के कारण किशोरन पऽ पड़े वाला ओकरा हानिकारक प्रभाव के रोके के खातिर एके नियंत्रित कs सकी।’ –हाई कोर्ट