माता सती के 51 शक्तिपीठ व उनकी मान्यताओं के बारे में सभे जानs ला। जहां-जहां माता सती के अंग गीरल रहल उहां-उहां शक्तिपीठ स्थापित हो गइल। एही शक्तिपीठ में से एक शत्तिपीठ उत्तरप्रदेश के बलरामपुर जिला से 28 किलोमीटर दूर तुलसीपुर में बसल बा। इहाँ बसल शक्तिपीठ में देवी सती के कंधा अउर पट अंग गिरल रहल, एह कारण एकर नाम पाटन पड़ गइल। एह स्थान के देवीपाटन धाम से भी जानल जाला अउर एके योगपीठ भी मानल जाला।
एह शक्तिपीठ में विराजमान देवी मां पटेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध बाड़ी। माई सती के यह पवित्र स्थान नेपाल सीमा के नजदीक बा। एलिए इहाँ देशभर के लोग त अइबे करs ला बल्कि संगही नेपाल से भी हर साल बड़ संख्या में श्रद्धालु दर्शन खातिर आवेने। किवदंतियों के आधार पर पता चलsला कि एह मंदिर के संबंध माता सती के साथ-साथ भगवान शिव, गुरु गोरखनाथ अउर कर्ण से जुड़ल बा।
देवी पाटन मंदिर में पहिले पशु-पक्षियन के लागsला भोग, फिर खाने भक्त, होला इच्छा पूरा
बलरामपुर के तुलसीपुर क्षेत्र में बसल देश की इक्यावन शक्तिपीठन में से एक माँ पाटेश्वरी देवी पाटन मन्दिर में आजुओ पशु-पक्षियों के प्रसाद खियवले के बाद भक्तन में बाँटे के परम्परा ह। ईश्वर के वास मनुष्यवे नाइ बल्कि पशु-पक्षियन के संगे कण-कण में होला। एकर बानगी प्रत्यक्ष रुप से देखे के मिलs ला। इहाँ आजुओ पशु-पक्षियन के परसादी खियाके भक्त के बाँटे के परम्परा बा।