भोजपुरी के पहिला उपन्यासकार स्व० रामनाथ पांडेय जी के आज 98 वां जयंती हs। उहां के भोजपुरी के पहिला उपन्यास बिंदिया, जिनगी के राह, महेंदर मिसिर, इमरीतिया काकी आ आधे आध लिखनी। भोजपुरी के एह इतिहास पुरुष के समूचा खबर भोजपुरी परिवार आ भोजपुरिया समाज बेर-बेर नमन कs रहल बा।
भोजपुरी के ख्यातिप्राप्त साहित्यकारन के नाम जब कबो लिहल जाला तs ओमे जवन नाम इतिहास के पहिला पन्नन पs आवेला आमे एगो नाम रामनाथ पांडेय जी के होला। 16 जून 2006 के बयासी साल के उमिर में एह संसार के त्याग करे वाला रामनाथ पांडेय जी भोजपुरी उपन्यास आ कहानी के क्षेत्र में अइसन इतिहास रचनी जवना के भुलाइल असंभव बा।
बिहार के सारण जिला के छपरा के रतनपुरा मोहल्ला में 8 जून 1924 के जनमल पांडेय जी के स्कूली शिक्षा पैतृक गांव नवतन, एकमा आ जिला स्कूल छपरा से भइल। आई. कॉम के परीक्षा पास करते रउआ जीविका खातिर रेल महकमा ज्वाइन कs लेनी।
एकरा बादो राउर गियान के लालसा एतना रहल कि स्वतन्त्र छात्र के रूप में बी. कॉम, साहित्यालंकार, साहित्य रतन जइसन उपाधि हासिल कइनी।
अपना लेखनी के शुरुआती दौर में “वह वैश्या थी”, “फुल झड़ गया भौरा रो पड़ा”, “मचलती जवानी” लेखा एक दर्जन उपन्यास लिखनी, बाकिर राउर मन आ माई भाषा भोजपुरी के लेके लगाव भोजपुरी में लिखे के तड़प जगवलस, भोजपुरी आ खाली भोजपुरी खातिर रउआ आपन जिनगी समर्पित कs देनी।
1956 में खाली पांडेय जी के ना, बलुक भोजपुरी भाषा के पहिला उपन्यास “बिंदिया” जब शेखर प्रकाशन, छपरा से प्रकाशित भइल तs ओकर स्वीकृति एगो ऐतिहासिक घटना के रूप में मिलल।
महापंडित राहुल सांकृत्यायन सोल्लास अपना पत्र में लिखले रहनी
भोजपुरी में उपन्यास लिखकर आपने बहुत उपयोगी काम किया है। भाषा की शुद्धता का आपने जितना ख्याल रखा है, वह भी स्तुत्य है। लघु उपन्यास होने से यद्यपि पाठक पुस्तक समाप्त करते समय अतृप्त ही रह जाएगा, पर उसके स्वाद की दाद तो हर एक पाठक देगा। आपकी लेखनी की उत्तरोत्तर सफलता चाहता हूं।
ओ घरी स्त्री-विमर्श जइसन अवधारणा ना होखला के बावजूद दृष्टि-सम्पन्न रामनाथजी उपन्यास के कथानक के नारी-विमर्श पs केन्द्रित कइले रहनी। इहे वजह रहे कि पहिलके उपन्यास मील के पत्थर साबित भइल। फेर तs उपन्यास लेखन अबाध गति से आगे बढ़ल आ एगो-एगो कs के चार गो आउर उपन्यास- “जिनगी के राह” , “महेन्दर मिसिर”, “इमरीतिया काकी” आ “आधे-आध” प्रकाशित होके चर्चा के केन्द्र में रहल रहे।
बच्चन खातिर भोजपुरी के पहिला पत्रिका “नवनिहाल” आ कहानी के पत्रिका “चाक”के प्रकाशन पांडेय जी कइले रही। एही तरे उहां के भोजपुरी आलोचना के पहिला पत्रिका “कसउटी” के शुरूआत प्रो.हरिकिशोर पांडेय के संपादन में कइले रहनी। उहां के दिली ख्वाहिश रहत रहे कि भोजपुरी साहित्य के सब विधा में गुणवता आ परिणाम के नज़र से उत्कृष्ट साहित्य के सृजन लगातार होत रहो।
रामनाथ पांडेय खाली भोजपुरी के गौरव स्तंभ ना रहनी , बलुक उहां के संवेदनशीलता, मनुष्यता आ भारतीय संस्कृति के जियत जागत उदाहरण रहनी। ओह कालजयी साहित्यकार के जयंती पs बेर-बेर नमन।