एह बिस्कुट, साबुन आ क्रीम, आजादी से पहिले स्वदेशी आंदोलन में बनल रहे मशहूर ब्रांड, 100 साल पुरान एकर इतिहास
भारत में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वदेशी आंदोलन छिड़ल रहे। एह दौरान बहुत भारतीय व्यापारी देशी उत्पाद के प्रचार खातिर नया उत्पाद बनवले, जवन आजुओ बाजार में उपलब्ध बा। एह में क्रीम, साबुन, शरबत से लेके बिस्कुट तक शामिल बा। जानीं कि ई मेड इन इंडिया उत्पाद कब आ कइसे बनावल गइल।
भारत के अंग्रेजन से आजादी पावे खातिर कई गो आंदोलन भइल आ बहुत लोग के बलिदान दिहल गइल। एह आंदोलनन में स्वदेशी आन्दोलन के भी महत्व रहे, जवना में अंग्रेजी उत्पाद के बहिष्कार क के देशी सामान के इस्तेमाल के बढ़ावा दिहल जात रहे।
हमनी के अयीसन कंज्यूमर प्रॉडक्ट्स के बारे में बतावे जा रहल बानी, जवन कि अंग्रेजी सामान के मुकाबला करे खातीर बनावल गईल रहे। खास बात इ बा कि आजुओ इ उत्पाद हमनी के बीच मौजूद बा अवुरी बहुत लोकप्रिय बा।
एह में से एगो उत्पाद बा बोरोलीन (या हाथीवाला क्रीम, जवन कई ग्रामीण इलाका में अपना पैकेट पs हाथी के लोगो खातीर जानल जाला)। हरियर पैकेट में आवे वाली इ लोकप्रिय क्रीम आजादी से पहिले भारत में एगो देशी व्यापारी ब्रिटिश उत्पाद के मुकाबला करे खातीर लॉन्च कईले रहले।
1929 में देशवासियन खातिर बनल देशी क्रीम बोरोलीन 94 साल बाद भी लोकप्रिय बा। एक बेर भारत में विदेशी सामान आयात करे वाला गौर मोहन दत्ता स्वदेशी आंदोलन में शामिल होखे के फैसला कईले अवुरी बोरोलीन के निर्माण कईले। 15 अगस्त 1947 के भारत के आजादी के जश्न मनावे खातिर 1 लाख बोरोलीन क्रीम मुफ्त में बांटल गईल।
अगिला नाम ‘रूह अफ़ज़ा’ के आइल बा जवन गरमी से राहत पावे खातिर हर्बल शरबत के रूप में शुरू भइल रहे। अफजा के शुरुआत 1907 में हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद कइले रहले आ पुरान दिल्ली से शुरू कइल गइल रहे। आजुओ घर-घर में रूह अफ़ज़ा मिलेला।
आजादी से पहिले आइल एगो अउरी प्रतिष्ठित ब्रांड बा मैसूर सैंडल शॉप। अंडा निहन देखाई देवे वाला अवुरी हरा अवुरी लाल रंग के बॉक्स में आवे वाला इ साबुन 1916 से मौजूद बा। मैसूर के “राजा कृष्ण राजा वाडियार चतुर्थ” बेंगलुरु में एह सरकारी साबुन फैक्ट्री के स्थापना कइले रहले।
अंत में एगो अवुरी प्रतिष्ठित अवुरी लोग के पसंदीदा ब्रांड ‘पारले-जी’ के बात कईल जाए। पीला पैकेट में एगो छोट लईकी के तस्वीर के संगे पैकेजिंग खातीर मशहूर इ बिस्कुट कई पीढ़ी के पसंदीदा अवुरी यादगार रहल बा। 1929 में स्वदेशी आन्दोलन से प्रेरित होके मुंबई के व्यापारी मोहनलाल दयाल कन्फेक्शनरी के निर्माण खातिर एगो पुरान कारखाना खरीद के बिस्कुट आ बेक सामान बनावे लगले। आम भारतीय के बजट के ध्यान में राखत उ पारले-जी बिस्कुट बनवले, जवन आजुओ बिकाता।
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