काटे ले कस के केतनो ई कीड़ा
कुचीह न बाबु बियाहे के बीड़ा
सुनी ल मरदे मेहरारू के किस्सा
विअहल जोड़ी के जिनगी के हिस्सा
बोतली आ कउड़ी के देखनी विआह
बोतली कुँआर रहल कउड़ी दुआह
गइलीं बराते में हमहुँ धधात
पहुचल सिवाने में नाचत बरात
लउकल न जहवाँ तम्बू कनात
आ अउरी ना लऊकल पूड़ी छनात
सगरो बराती के मुहवा झुराइल
आ चेहरा के बत्ती तुरते बुझाइल
भेंट करे तबले ते समधी जी अइने
ते कउड़ी के दादा देखते गरीअउने
बरातिन के लागल बा जोर के पियास
आ लड्डू त छोड़ि न पानी के आस
समधी जी कहलें दुआरे पे चलीं
हीड़ा ले भरि के नस्ता भी कई लीं
कउड़ी के दादा जी भइलें नरम
आ चललें दुआरी पर कुटत करम
पहुँचली दुआरे पे हमनी जा उनके
खटिया न चउकी दुआरे पर जेनके
जहवाँ दियाला बैलन के सानी
ओही जा बइठ के पियनी जा पानी
खाना में मिलल पूड़ी कचाह
कुंचले पर मुहवा से निकले आह
अब तरकारी के करीं हम केतना बड़ाई
मरचा मसाला से मुंह झउसाइल
भीनही के देखनी ना कउनो उपाय
केहुए के मिलल न पानी आ चाय
धनि बाटे बबुआ उ घर के परात
भेजि दिहलस भूखले जे सगरो बरात
अब सुनि रउआँ जा आगे कहानी
कउड़ी के बोतली जरउलस जवानी
राति के सूतल आठ बजे उठल
कइके दतुअन उ चउकी पे बइठल
हँसि के कउड़ी से कहलस हॉय
आ सासु से मंगलस पानी आ चाय
सुनते इ लागल देहि में आग
कउड़ी बेचारा में मरद गइल जाग
कसके पकड़लस उ बोतली के झोंटा
आ मरलस कपारे पर पितरी के लोटा
गइल बउराइ अब बोतली ए भाई
बनि गइल पल में बड़का कसाई
भुइयाँ पटक के छाती पे चढ़ल
आ गटइ दबावे के आगे उ बढ़ल
गाँवे के मनई गइलें छोडावे
पजरी में धइ के ओके उठावे
बोतली जो उठ के दिहलस धक्का
खुली गइल सबके दिमागे के चक्का
झगड़ा छोड़ावत के केतने पीटइले
आ नारी से हिंसा में थाने भी गइलें
दरोगा जी कटलें उनसे मलाई
आ चार लात दिहलें चलते चलाई
ए घटना से हमके ते इ ना बुझाइल
कि लोगवा बेमतलब के काहें कुटाइल
बाती मान “कृष्णा” के लागे भले तीत
मरदा आ मउगी बीच बोलिह न मीत
जे आपुस में मिली रहें दुनु परानी
ते बनी ना कबहुँ जी अइसन कहानी
✍️ कृष्ण श्रीवास्तव
हाटा, कुशीनगर
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