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सद्गुरु के बिचार : खेती जोग जमीन कुछुए फसिल खातिर बचल बा, जौन जल्दिये अनुपजाऊ हो जाई

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जिनगी माटी में फलs-फूलs ला। 36 से 39 इंच के माटी के परत धरती पs मौजूद जीवन के 87 प्रतिशत हीसा के आधार बा। हर चीज ओही से पनपs ला। जब मटिए समृद्ध नाइ होई त मान लीं जां कि हमनी के धरती के छोड़ देहले बानीं जा। संयुक्त राष्ट्र के संस्था सब वैज्ञानिक प्रमान के संगे कहले बा कि धरती पs खेती जोग माटी अब बस 60 से 100 फसिल भर खतिरे बचल बा। एकर मतलब बा कि हमनी के माटी 45 से 60 साल में आपन उर्वरता बिलवा देई।

अगर अइसन हो जाई त धरती पर खाए आला समान के गंभीर समस्या पैदा हो जाई एके टालल नाइ जा सकेला। जब खाद्य संकट आई त बरियार लोग हथियार के इस्तमाल कsके खाना छोर लीहें लोग। अउर एसे जौन अराजकता अउर मुश्किल पैदा होई ऊ कल्पनो नाइ कइल बा। यह मत सोचल जा कि बस गरीबे मुइहें; ऊ अमीरन के मरिहें अउर अमीरो मुइहें। ई बस एगो भयावह तस्वीर खींचल नाइ बा, काहें की माटी के अनुपजाऊ भइले के भविष्यवाणी दुनिया में आज कई शीर्ष वैज्ञानिक कs भइल बानें।

हमनी के माटी तेजी से बलुआह ऊसर होत जात बिया काहेंसेकी हर बेर जब रउआ कुछऊ उगावेनीं, त फसिल से ओमें से जैविक तत्व निकल के आवे ने सs। लेकिन माटी में वापस कुछऊ नाइ लौटावल जा रहल बा। एगो ऊष्णकटिबंधीय जंगल में- पेड़-पौधन के पतई अउर पशु अपशिष्ट के कारण- जैविक तत्व लमसम सत्तर प्रतिशत चाहे बेसिए होई। खेती के माटी में न्यूनतम जैविक तत्व तीन से छौ प्रतिशत होखे के चाहीं। लेकिन आजु दुनिया में खेती के लमसम चालीस प्रतिशत जमीन में जैविक तत्व के मात्रा 0.5 प्रतिशतो से कम रह गइल बा।

त हमनी के का करे के चाहीं? समाधान कौनो रॉकेट साइंस नाइ ह; एके बस अमल में लवले के बात बा। का हमनीं के एके समय रहते कइले खातिर तैयार बानीं जा, ताकि एह धरती पs हर जीव के तकलीफ के कम से कम कs सकेल जा? अगर हमनी के अभिनिये से सुरु कइल जाए, त पंद्रह से बीस बरिस में एगो निम्मन वापसी क सकल जाई। लेकिन मान लीं कि हम पच्चीस से पचास बरिस अउर अगोरा करतनीं जा अउर फेर माटी के दसा सुधरले के कोसिस करतनी के त ओके ठीक कइले में 200 बरिस ले लाग सकsला| ऊ दौर इंसान खातिर भेयावह होई।

हमनी के जौन कइले के जरूरत बा, ओके तुरन्ते करे के होई। एही से हम ‘जागरूक धरती’ नाव के अभियान सामने ला रहल बानीं। हम हमेसा सोचेनीं कि उद्योगन चाहे सरकार के एके करे के चाही। लेकिन हम ई भुला जानी के कि हमनी के एगो लोकतांत्रिक देस बानीं जा। आज दुनिया में 5.2 अरब लोग अइसन देशन में रहे ने सब , जहां वोट देहले अउर अपने देस के नेतृत्व चुनले के क्षमता बा। हम एपर ध्यान दे रहल बानी जा कि कइसे कम से कम तीन अरब लोग के संगे ले आवल जाए ताकि पर्यावरण के मुद्दा सरकार चुनले के मुद्दा बन जाए।

जब पर्यावरण चुनाव के एगो अहम मुद्दा बनी, तब्बे ऊ सरकारी नीति बन पाई, अउर सिर्फ तब्बे ओकरे खातिर एगो बड़हन बजट आबंटित होई, ताकि समाधान होखे। माटी हमनी के संपत्ति नाइ विरासत ह। सबके ‘जागरूक धरती’ अभियान खातिर ठाढ़ होखे के चाहीं|

अभिन अइसन बुझाता कि पर्यावरण अमीरन के चर्चा के विषय बा। जबकि हर आदमी के एकरे बारे में जागरूक होखे क  चाहीं| पर्यावरण के प्रश्न चुनावी मुद्दा बने के चाहीं अउर राजनीतिक पार्टियन के घोषणापत्र में पर्यावरण के मामिला के महत्व देवे के चाहीं।

(ई लेखक के आपन विचार ह)

लेखक – सद्गुरु

भोजपुरी अनुवाद – आशुतोष तिवारी ‘आशू’

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