जब आधा से ज्यादा फिल्मी दुनिया गोली – बंदुक के ईर्द – गिर्द घूमत होखे, अश्लीलता खुलियाम परोसल जात होखे, वेब सीरीज देखे खातिर कान में हेडफोन के जरूरत पड़त होखे; तब अइसन माहौल में जदि केहू पंचायत जइसन वेब सीरीज बनावता तऽ ओकरा हिम्मत के बलिहारी देवे के चाहीं। पंचायत देखत घरी हमरा अइसन महसूस भइल कि ‘कान में पंचायत के सवांद ना गाँव के आवाज सुनाई देता’। एगो समय रहे जब गाँव में शहर कहीं दूर बइठल बउऽआत रहे आ गाँव होत सबेरे आ डूबत सांझ मुस्की मारे। बाकिर अब बहुत चीज बदल गइल बा। हमरा उहे समय इयाद आइल जब गाँव , गाँव लेखाँ रहें। बॉलीवुड में हमेशा नया – नया प्रयोग होत रहेला, बाकिर ‘पंचायत’ जइसन प्रयोग ‘बजर जमीन पऽ धान लहराइल’ जइसन बा। ना कहानी लिखे वाला के कवनो जोर बा आ ना किरदार निभावे वालन के कवनो जोर बा। एमें जदि प्रेमो परोसल गइल बा तऽ समर्पण वाला। मतभेदो देखावल गइल बा तऽ ओमें मन भेद नइखे। राजनीतियो देखावल गइल बा तऽ एक दम गाँव के चउक पऽ बइठल आ चाय के दोकान वाला। आ सबसे सुंदर हमरा ई लागल कि “जदि केहू से केहू के मन मिलऽता, केहू से केहू के लगाव बा तऽ उहाँ ना घर के दूरी कवनो मायने राखऽता आ ना रिश्ता मायने राखऽ ता”! प्रहलाद चाचा के सचिव जी से ओतने लगाव बा जतना बिकास से। पंचायत वेब सीरीज देखत घरी इहो महसूस भइल कि “जिनिगी में रिश्ता के मजबूती एह बात पऽ टिकल बा कि मन कतना मिलऽता, विचार कतना मिलऽता”, रिश्ता के मजबूती एह बात पऽ बिलकुल नइखे टिकल कि घर से घर के दूरी कतना बा आ कवन हितइ पड़ऽता।
~ सोनु किशोर
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