Khabar Bhojpuri
भोजपुरी के एक मात्र न्यूज़ पोर्टल।

भगजोगनी (भोजपुरी कहानी )राजनंदनी जी के कलम से

भोजपुरिया माटी में सनाईल आ गंवई लोक के ताना बाना बिनत ई कहानी सरयू के कछार के उपजल एगो नवहा लेखिका सुश्री राजनंदनी जी के कलम से पहिलकी कहानी हs, भोजपुरिया सब्द्न के रस आ कहनी के मरम बड़ा बेजोड़ बा।

2,636

भगजोगनी

 

जाड़ा के रात आ ओह में ई मुई बदरी…

“का हो राम अबकी उधिआइये के मनबs?” बोरसी में आग सुनगा के दारोगाईंन बुदबुदवली.

अरे न ना… ऊ पुलिस वाली दरोगा ना…. ऊ त हालत के मारल अभागी बिया.

कहल जाला राम जी जब नसीब लिखलन त सब दुख गरीब आ हरिजन के झोली में डाल देलन….आ बाभन ठाकुरन के झोली में धन दौलत आ सान सौकत.

दारोगाइन गांव के ठाकुर साहब के छोट पतोह हई…… नान्ह उमिर में बेचारी के सुहाग उजड़ गइल….अब बिधना जौन जेकर नसीब में लिख के भेजे ऊ त ओकरा भोगही के परी…

जब दुख आवेला त बाढ़ लेखा आवेला, सब उजाड़ के रख देवेला….कुछ बांच भी जाई त ऊ सर जाई…गंध दे दी..

रूप से सुंदरी, जात से ऊंच….कद काठी, सुभाव अईसन कि जे एक बेर देख लेवे त भुलाए न भुलाई… केहू कुछ ऊंचो बोल देवे, तबो मुस्की मार के चल देवे वाली के जिनगी में अईसन बीपत के सैलाब आ गइल.

मांग के सेनुर हटते रीति रिवाज बदल जाला… कपड़ा खाना व्यवहार सब…..अपन सुहाग खोए के गम में अब धीरे धीरे दारोगाइन जिए के कोशिश करते बाड़ी कि राम जी उनका के आस दे देले…. ऊ पेट से रहली.

कइसन अभागि कइला राम जी… हई खुसी के बात केकरा जा के कहीं….सास के? जेकर नजर में हम काल ले इतरावे के कारन रहीं आ आज बाउर….. उनका से??? आ कि बबुनी (ननद) से? कि दीदी (जेठानी) से.?? असमंजस आ विरह जब मिले ला नू…. त एड़ी से कपार ले उजबूजी उठेला… भुइयां लोटल दारोगाइन के आज बेरूवा के चटाई से जादा इ बात गड़त रहे. मानअ जईसे पेट से होके ऊ पाप कर देले बाड़ी…

सौ राज के बात छिप जाला लेकिन पांव भारी, उल्टी होत कहीं… बात लूती लेखा पसर जाला… ठकुराइन सुन के खुश त भईली बाकी दारोगाइन ला ना…अपन कुल ला… एह अंधविश्वास में विश्वास कइली कि बेटा पुनर्जन्म ली….. पेट में एक माह के प्राण लिहले दारोगाइन के भीतर हलचल ना लउकत रहे… मरद के मरला से बड़का दुख उनकरा कोख के आइला के लागत रहे… आंख के पुतली स्थिर हो गइल रहे… हाथ ठंडा… गोड़ आ होठ कपात रहे… भीतर से पुक्की पार के रोवे वाला मन के ईहे अवस्था होत होई.

समुंदर सैलाब आवे से पहिले शांत हो जाला… अईसन कौन सैलाब आवे के बा?????

अब कोख से होकस त घरनी चाहे कलक्टर… एह समाज में विधवा विधवा होले…रस्म-रिवाज, खान-पान, आजन-बाजन सब कुल्ही आदमी अपना मन के कर लेवे ला…लेकिन जब बात न्याय आ परिवर्तन के आवेला त सभे पुरषोत्तम लोग के रीढ़ टूट जाला ..तब परंपरा, अनुशासन, पूर्वज शीर्ष पे हो जाला लोग….. दारोगाइनो के भोगेके के परी विधवा भईला के रकम… कुमकुम हट के जौन लिलार पे अभागी के चंदन लाग गइल होई ऊ भला कइसे खुश हो सकत बीया…कोख के भार से ज्यादा होला माथ पे लागल कालिंकिनी के भार…. शायद ई बात के दारोगाईन भाप लेले रही…. जस तस दिन कटे लागल…सास ससुर के स्नेह से त दारोगाईन तिरस्कृत रही…लेकिन एह समय में गोतनी आ ननद से असामान्य प्रेम उनका ला मानो एगो उम्मीद बन गइल… उम्मीद जिए के? हंसे के?…

उम्मीद एह लागी कि केहू बा जे उनका मूड़ी पर हाथ रखत बा… कूप अन्हरिया में ढिबरी के रोशनियो सूरज के तेज से बेसी होला…गोतनी के प्यार दारोगाईंन खातिर ऊ उम्मीद के अंजोरिया रहे जंहवा सब स्वीकार रहे. अपना असूलन से अडिग…. हमेसा सही खातिर, निष्पक्ष रहे वाली दारोगाइन के लागल जैसे प्रेम निवृत हो गइल बा… बुढ़ पुरनिया लोग बा रूढ़िवादी….आज के लोग पढल लिखल… दीदी आ बबूनी के देखी…. बिधवा के मांस मछरी खाए के माना करे ला समाज…. ऊ अम्मा जी से लुका के हमरा के खिवावे ला लोग…. ताकि हमर पेट में पोसा रहल जान के भरपूर पोषन मिल सको… आ हमहू हड्डी से मजबूत रहम…… इ कूल्ही सोचत दारोगाइन राम जी के सुमिरली…..की दुख त देलअ, हरे के शक्ति देलअ हो राम….सुहाग उजरलअ त कोखि देलअ ….प्रेम छिनलअ त बहिन देलअ जवन एतना सनेह दे देले बाड़ी कि समाज, बाबू जी, अम्मा जी का सोचत बाड़े, ईहो सोचे के बखत नईखे मिलत…… बिरह के आग में झउसाइल दारोगाईन के हर जख्म पे अब जैसे मरहम लागे लागल रहे…. ऊ जिए लागल रही…एक आस के संगे.. उजड़ सूती साड़ी,सुना मांग में उनका मुख पे एक तेज आ गइल रहे……

अनजान रही ऊ आवे वाली बवंडर से…..अचानक गोतनी ननद के उभरल प्रेम के पीछे के राजनीति ऊ ना बुझ पाइली…. ईहे जाड़ के रात….. ओह में बदरा… दारोगाईन जस सूते ही जात रहली…अचानक कीली बाजल…गोतनी केवाड़ी पे रहली….,” दुलहीन हाल्दी सुना ! अम्मा बाबू जी नेवता में गइल बाड़े….हम डाक्टरनी के घरे बोलवेल बानी…ताकि एक बेर निमन से जांच हो जाई….. अंघिआइल दारोगाईन कुछ बुझती समझती तले बबूनी जौरे डॉक्टराइन ढुकली….उनका के लेटे के इशारा कइली….दीदी माथा पे हाथ धइले लेटवली… डॉक्टरनी आला लगा के सांस अंदर बाहर करवइली…कुछ घुल मेल भईल…बेग खोल के सुइयां निकलली…… दारोगाईन आंख नचा के ननद गोतनी के देखते बाड़ी तले लाग़ल जैसे जोड़ से केहू च्यूटी काट लेलहक.

आंखी के आगे अनहरिया छाए लागल….देह हाथ सुन होखे लागल…आस पास सब घूमे लागल….. दारोगाईन के दर्द के अनुभूति भईल….हाथ गोड सुन रहे…….आंख खुलते ऊ अपन खून से लतपथ बिछौना देख के चिलइली…..जांगला केवाड़ी सब बंद, जाड़ा के रात., खून सनाइल कोख….आ कुहकत अभागिन….. उनकर चीख ऊ चारदिवारी में सोखा गइल…कलपत बिलखत उ कौन पीड़ सहे… कोख के जाए के दर्द कि विश्वासघात के … कुहकत पडल बेचारी के कान में आहट भईल… लागल जैसे कोई आवत बा….. ऊ और जोर से विलापे लगली….बड़की ठकुराइन रही…. “कुलक्षिणी बेटा खा ही गइल अब नतियो के खा गइल….जेठानी आ ननदो उनकर पाछा अइली … जेठानी तीर मरली, “अरे अम्मा जी इ आजकल के लइकी हई सन, एखनी के का बुझाई घर कुल परिवार… मर्द के मरते एकरा फुटानी में रहे के रहल ह… लइका हो जाइत त इ त बंधा जाईत… एतने में ननद कोना में से मछरी के कांट देखावत कहली ,” हई देख माई इ कुल नसनी चोरा के जीभ लेवेरत रही… लइका जईसन जेकरा के हमर माई रखली हमारा में एकरा में भेद न कइली, उ इ पाप करत रहे.

दर्द से लपेटाइल जौन आंख ढंग से ना खोल पावत रहे…. सुन्न पडल देह के इ सब बात झकझोरे लागल…. उनका भीतर रोवहूँ के बुता खतम हो गइल रहे. कुफरत, कोंहरत ऊ अचानक पेट के जांते लगली… बाप-बाप के चीत्कार ससुरा वालन के धिक्कार पे आगे पडल…. पह फाटे लागल रहे… धीरे धीरे बात पसरे लागल… आंगन में लोगन के हुजूम जुटल सुरु भइल.

जेकर मुंह में जौन आवे उ बोले लागल….लेकिन उ भीड़ में एक ठो बात सभे मान लिहले रहे…. सभे खिलाफ़ रहे दारोगाइन के… काल ले उ बरहगुना पतोह पे आज अपने कोख खाए के इल्ज़ाम लागत रहे….. उजर सूती साड़ी खून से लाल हो गइल रहे….गोड हाथ छाती सब खून सनाईल रहे….ठकुराइन बाह धईले जब ओकरा के खींच के अंगना में लियावे लगली… मांस के छोट छोट टुकड़ा खून संगे गिरे लागल… सास त माई के रूप होली ..माई त महवारी के दर्द पे हमर कोख सोहरावे लागत रहे… आज त कोख जीयरा सब फाट के चिथरा हो गइल बा…खून में लपेटाइल मांस रह गइल बा… आ भरल अंगना में गोतिया लोग उहो नोचत बाड़ी… बोटी बोटी …जेकर मुंह पे जे आ जावे. दारोगाइन बेसुध रही, देह लहतांगर रहे, लाल लाल अंखियां अइसे फुलल रहे जइसे अब फेक दी… ठोर कांपत रहे, हाथ थरथरात रहे. कलपत कापंत दारोगाइन पानी मांगे के प्रयास कइली तले कौनो तपाक से बोल परल….”मर्द आ कोख खईले बीया इ, अब सिद्ध हो गइल… इ अब रही तs सभे के खा जाई…. जौन मर्द के मार के अपना पहिल कोख के खा ले उ अव्वल दर्जे के डाइन होले…अब एकरा के राखे के जिम्मा ली …एकरा के मुवा देवल ठीक रही.” तले दोसर औरत के कुबोली आइल, “ना ना…मूसमात बांझिन के मारे के पाप काहे कोई के लेवे….. एह गांव में रहे एगो अवुरी. आंख से देख देवे तs आदमी मू जाए…आ मुर्घाटिया में जा के लइका खेलावे…नाक में दम कइले रहे अभगती. शहर से बड़का बाबा के बोलावल गइल रहे….. उ कहले रहन, एकनी के केस में होला सारा जंतर तंतर, ओकरा के काटत सब कुल्हि नास हो जाला.., ओकरा बाद बालू फंकवा देलन…तब से सोझ बीया, ना बोले ले, न सुने ले…दे द खाई…ना द त मांगबो ना करी….. एकरो जवरे हमनी के उहे करे के चाही.”

कइची खोजाए लागल…. चारो बगल अफरा तफरी रहे. दारोगाईन के आंख के सामने सब बस नाचत रहे, उ सुनत रही बाकी समझे के बुता ओरा गइल रहे……अचानक पीछे ओरी के झटका लागल … ठकुराइन, गोतनी, दयाद जवरे मिल के उनकर केस काट देली लो…. ननद बहरी से मुट्ठी भर बालू लइली आ जेठानी पानी… जबरा धर के मुंह के खोल के ओहमे बालू डाले लागल लोग… माल गोरू के भी कांरी लगावे घरी आदमी में दया रहेला… एहिजा ओकर ठोर छीलाता कि जबरा नोचाता… केहू के कोई मतलब नइखे…. जेठानी पानी पियवली…. छनछनाइल दारोगाइन पानी पे टूट परली…..उनका के घसीटत बहरी बथान में एगो टाटी में पहुंचा देवल गइल…दर्द आ लोर दुन्नो सुख गइल…. दारोगाईन हाथ से मुंह देखत बाड़ी, कबो खून… कबो माथा पे हाथ फेर के केस टोवत बाड़ी…. जइसे हर चीज अनजान होखे….. उल्ह मेल मे कब उनकर आंख लाग गइल पता न चलल…अचानक उनका दर्द के आभास भईल…आंख खोलली…. झुरी से झुराइल मुंह लउकल.. छोट छोट आंख, कारिया मुंह, पाकल केस…. “क..क..के बाडू तू…अब का चाही हमरा से….परान?? … म म मार दा … ख खतम कर दे….अब जी के का करम??… काहे लागी जियम??…कुछ नइखे अब हमरा भीरी, हवा आवत बा सांस ला..ले ल इहो कुल्ही…” अकबकाइल, अल्बताइल जोर जोर से फुफूक फुफूक़ के रोवे लगली…मुंह के चीख आ हीया के आह में जमीन आसमान के अंतर होला..उनकर चित्कार में पुकार न रहे , जुटे के आस न रहे.

”चुप हो जो बेटी, बिधना के केहू बदल सकल बा”? इ सुन के बिलखत दरोगाइन के चित्कार सवाल में बदल गइल- ” बिधना के आमदी नईखे बदल सकत बाकी उहे आमदी दोसरा के बदल सकत बा??? हम काल्ह ले सुकमारी रही , आज भाग के मारी ??? कइसन बा तोहर बिधना , अरे बिचकोपरो रंग बदले में तनिका समय लेवे ला.. जौन घर साज बाज से हमारा अपना आंगन में उतरलख , मांगे जुड़ा, कोखे अघा के आशिर्वाद देलस, उहां मांग कोख उजड़त हमर इज्जत उजाड़ देवल गइल, बिधना के रोवनी रो के हमरा के ढांढस बांधे आइल बाडू त लौट जा अम्मा, राम जी से मनावा जे हमर देह हाली से ना प्रान त्याग देवे , चिल्ह कउवा सियार हमर मांस के नोच नोच के खाए, कमसेकम उ बेजुबानन के भूख मिटी.”

चुप बेटी… कापत हाथ से खियाइल अंचरा के कोर धईले उ बूढ़ा दरोगाईंन के लोर पोछली.

बुढ़िया दू चार ईटा जोड़ के तनी पुवरी के धनका के गाय के गोत लगावे वाला पानी के बाल्टी चढ़ा देली… अंचरा के कोर फाड़ के दरोगाइन के लूगा उघार के उनकर देह साफ करे लगली… सुसुम पानी दरद के फारे ला , खून से लथपथ कोख पे जब गरम आभास भइल… दरोगाइन के आंख मुना गइल, राहत के आह निकलल… अम्मा अपना जौरे मोटरी लियवले रही… चूल्हा पे फेनू से कुछ चढ़वली.. “बेटी उठ आंख खोल.. हई धर नाक मूंद के घट से पी जो”

‘काउंची हs?’

‘हरदी मीठा , लरकोर देह के जोड़े के बुता देवेला, रात उतरे वाला बा ढेर बात मत पूछ, पी जो एक घुट में.’

आपन लोग से घात खाइल दरोगाइन के देह से विश्वासघात के डर ओरा गइल रहे, ढेर से ढेर का होई जहर होई त मू जाएम , हम तs इहे चाहत बानी, मने मने बुदबुदावत दरोगाइन हरदी मीठा पी गइली.

‘अच्छा सुन, काल्ह रात के फेनु से आयेम , तबले ते मन से बरियार रहिए.’ एतने कहके मोटरी उठा के अम्मा चल देली.

दरोगाइन ना सवाल पूछे के अवस्था में रही ना सोचे के, उ चुप केकुर के सूत गइली,

दुपहरिया में निन खुलल , निन खुलते रात के बाट जोहे लगली, रात आइल, अम्मा अइली, मोटरी में पूरी तरकारी लेले. हाली से न खा ले, घटी ता अउरी आन देम , गांव में आज भोज रहे, बंसवारी से ताजा ताजा बिन के लियावत बानी.

दरोगाइन के आंख सवाल से भरल रहे लेकिन कुछ पुछली ना ..मोटरी आगा में लेके कहली, ‘भोज अकेला कइसे खाई.. रउवो आई अम्मा’

दुनो जानी संगे खाए लागल लोग, भूख के कउनो जात न होला, तृप्ति में कउनो छुवा छूत ना होला, जूठ कठार के खाना भी ओतने स्वादी रहे, जेतना अमनिया.

“चालीस बरीस पहिले हमर ईहे दुर्दासा भइल रहे, चमरटोली से आइल बानी। अइसन एक्को घर ना होई इ गांव में जेकर लांछन हमर कपार पे ना लागल होखे, कउनो के सरद गरम होखे चाहे बर बेमारी, सब हमरे ऊपर मढात गइल बा, अब ता आदत पड़ गइल बा हमरा गारी के, मार के , चाम आ करेज दूनो बजर हो गइल बा, एगो अवुरी अभागी के साथे इ सब कूल्ही भइल रहे, उनकर देह सदमा न सह पावल, सरग बिराज गइली. तू पढल लिखल बारु , तहरा लेल उम्मीद बा, बिधना के मार बोल के इ लोगन जे कोड़ा चलावत बा इ हमरा तहरा सहला के कारन बा, हमरा बेरी कोई न रहे बेटी, तोरा संगे हम बानी, असमन जान तोरे माई हई , जौन हमनी माई बेटी पे बितल ऊ केहू पे ना बीते के चाही.”

दरोगाइन ओह बुढ़िया के बात सुन के ठकुआइल रही, आंख से खाली झर झर लोर बरसत रहे.

रात उतरे लागल अम्मा चल दिहली, काल्ह आए के वादा कर के

रात के अनहरिया में अब हर दिन एक अंजोर होखें लागल रहें

दिन बितत गइल। दरोगाइन के देह सरियाए लागल, लमसम दु मास होखे के रहे आज अम्मा आवते एगो मोटरी दरोगाइन के देली, “तोर समान पूल पे फेके गइल रहे तोर ननद, ओहि मे से छांट के जौन कागज पवनी लियाइल बानी, पढ़े त आवे ना बाकी देख के बुझा गइल कि अकाज के चीज बा, तोरा कामे आई…. बेटी, खोईचा में चाउर ना, कागज दे रहल बानी, दुभ के जगह हमर आस ध लs .. आ रोप दिहा एक जगह.. उ पसर जाइ, हई कुछ रोपया बा, देवल में से बिनले बानी, एकरो जरूरत पड़ी तोरा.”

एतने कहत अम्मा दारोगाइन के भर पंजरा धर के रोवे लगाली, कपार पे हाथ फेरे लगली, अम्मा अइसन बात काहे कहत बाडु, हम कही जात बानी का?

“भगजोगनी तs बुतात बीया न बेटी…” अंचरा छोड़ा के अम्मा बथानी से निकल गइली.

आज दारोगाइन उनका पीछे पीछे चल देली , देवल के पिछुती आते अम्मा गिर परली, देह उहवे प्रान छोर देलख, दरोगाइन देह से लिपट के बिलखे लगली, उनका छाती के पीटे लगली, भोर होते लोग के हुजूम जुटे लागल, बाकी अबकी बेर भीड़ के बोले के हिम्मत ना रहे, कहल जाला नू… नारी के सौंदर्य जेतना लुभवान होला, रौद्र रूप ओतने विकराल, गरासी कुदारी लेले दारोगाइन के इ प्रचंड रूप देख के केहू के कुछो हिम्मत ना भइल.

दारोगाइन कुछ गोइठा, कुछ लकड़ी के, अम्मा के बगल में सजावे लगली, उनका संगे कुछ अउरी मेहरारू आगइली सs … कवनो के बांझ के नाम मिलल रहे, कौनो के रांणी…. चिता लागल , कउनो मंत्र, कवनो बिधि ना, देबी माई के अस्थान के पिछूती पंचतत्व में अम्मा लीन भइली.

आज ठाकुर साहब के घर के आधा हिस्सा में खाली भगजोगनि रहे ले , गांव जवार में बांझ बिधवा के डायन बोलला पे सउसे भगजोगनी मिल के उ भीड़ के रीढ़ तूर देवे ली सs.

© राजनंदनी सिंह

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Comments are closed.