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भोजपुरी संगम’ के 157 वां ‘बइठकी के भइल आयोजन  

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गोरखपुर: भोजपुरी संगम’ के 157 वां ‘बइठकी’ राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार चन्देश्वर ‘परवाना’ के मानस विहार कालोनी, गोरखपुर इस्थित आवास पs डाॅ.फूलचंद प्रसाद गुप्त के अध्यक्षता आ वरिष्ठ कवि धर्मेन्द्र त्रिपाठी के संतुलित संचालन में संपन्न भइल।

पहिलका सत्र में कहानी ‘पिया बावरी’ के भइल समीक्षा

बइठकी के पहिला सत्र में डॉ.धनंजय मणि त्रिपाठी के भोजपुरी कहानी ‘पिया बावरी’ के समीक्षा कइल गइल। समीक्षा क्रम के सुरुआत्त करत नन्द‌ कुमार त्रिपाठी कहलें कि ग्रामीण वातावरण आ भोजपुरी पृष्ठभूमि पs रचल गइल ई कहानी वर्तमान सामाजिक विसंगतियन के विरुद्ध उल्टी गंगा बहावत आपन संदेश छोड़े में सफल बा। समीक्षा क्रम के आगे बढ़ावत प्रेम नाथ मिश्र कहलें कि ठेठ गँवई जमीन पs उपजल एह कहानी में प्रेम, विरह, तड़प आ त्याग तs बड़ले बा संगही सामाजिक मर्यादा आ मान्यतन के कायम रखला के विधानो बा। अरविन्द ‘अकेला’ एकरा के अगल-बगल में घटित घटना पs आधारित कहानी बतावत एकरा सुखद अन्त के सराहना कइलें।

अध्यक्षता कर रहल डॉ.फूलचंद प्रसाद गुप्त एह कहानी के ठेठ भोजपुरी शब्दन से सम्पन्न एगो सफल भोजपुरी कहानी बतवलें आ कहानीकार के बधाई देलें।

बइठकी के दूसरका सत्र भोजपुरी के समृद्ध रचनन से सम्पन्न रहल। 

खास कs के-

राम समुझ ‘सांँवरा’ सुमधुर गीत रंग बरसवलें-

फगुनवा में देवरु करें छेड़खानी

दुइ पुड़िया रंग घोरलें एक बल्टी पानी

प्रेमनाथ मिश्र सुन्दर सवइयन से फागुन के स्वागत कइलें – 

मोदक खाय, महा कविराय, बतावत भंग तरंग है होली,

प्रेम में पागल लोग बतावल, पावन प्रेम क रंग हऽ होली

नर्वदेश्वर सिंह माहौल के आउर बसंती बनवलें-

आइल बसंत भइल सोर,

मनवा में मचल हिलोर,

महिनवा फागुन में

अरविंद ‘अकेला’ लुप्तप्राय भोजपुरी ‘झुलनी’ के शीर्षक गीत में ढललें-

जाने कहांँ झुलनी हेरइलँऽ हो रामा,

जिउ घबरइलंँऽ

बागीश्वरी मिश्र ‘बागीश’ के संजीदा रचना जिनगी के परिभाषित कइल-

लोग कही का, कही का समाज?

सोचत में बीत गइल जिनगी हमार

नन्द कुमार त्रिपाठी बेवस्था पs गहिराह चोट कइलें-

लेके वोट पाइ के कुरसी, जबसे ई बरिआइल बा,

ई.डी.सी.बी.आई. क डर लोकतंत्र छितिराइल बा

अवधेश शर्मा ‘नन्द’ अपना सुन्दर छंदन से भोजपुरी के अलंकरण कइलें –

झकझोरति झारति झूरति बा झनकावति माथ बसंत बयारी,

तन तोरति ताकति झांकति बा कुल्हि भाँपति बा जिउ देति बा जारी।

डाॅ.बहार गोरखपुरी फागुन के भोजपुरी गजल में निबहलें-

निकरल बुढ़ऊ के पर अब होली में,

बाबा लागें देवर अब होली में

वीरेंद्र मिश्र ‘दीपक’ के गीत खूब सराहल गइल-

निमन‌ दिन हे बबुआ! दुअरा पे आई

हँसि नाहीं पइबऽ न आई रोवाई

गीत-संगीत-स्वर के मणिकांचन संजोग लेले चन्देश्वर ‘परवाना’ के गीत ‘बइठकी’ के सफल बनवलस-

अइलें न अबले सजनवाँ नयनवाँ झर-झर झरे,

ताना मारे देखते अएनवाँ नयनवाँ झर-झर झरे।

अध्यक्षता कर रहल डॉ.फूलचंद प्रसाद गुप्त के धारदार दोहा बइठकी के उच्चतम आयाम प्रदान कइलस-

माँ जी! माजीं, न करीं, एहर ओहर कऽ बाति।

उठीं चलीं बरतन घसीं, देर हो गइलि राति।।

एह लोगन के अलावे बइठकी में अजय यादव, निर्मल कुमार गुप्त ‘निर्मल’ आ ओम कुमार जैसवाल काव्य पाठ कइल लोग। रमेश प्रसाद दूबे संस्मरण सुनवलें।

एह अवसर पs रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी, सृजन ‘गोरखपुरी’, कुशवाहा हरिनाथ, रामहर्ष शर्मा, पी.पी.विश्वकर्मा, रमेश प्रसाद दूबे, महेंद्र विश्वकर्मा, संजय शर्मा, डा.भरत गिरि आ सौरभ विश्वकर्मा के विशेष उपस्थिति रहल। कार्यक्रम के अंत में संयोजक कुमार अभिनीत अगिला महीना होखे वाला बइठकी के रूपरेखा बतवलें आ सब लोगन के आभार व्यक्त कइलें।

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