कोलकाता के युवा कवि युवा कवियत्री भीषण गरमी से हरान होके कइलन इनर देव से निहोरा।
काल्ह #kolkata_calling_rain के नाम से कोलकाता के युवा कवि सागर सिंह अउरी युवा कवियित्री अनु नेवाटिया i चलावल लोग फेसबुक पर।
भीषण गरमी के देखत इनर देव से शायरी के माध्यम से इनर देव से निहोरा भइल, बुझाता जे इनर देव के इ निहोरा पसन आइल, काहेकि सांझि होत होत जम के बारिश अउरी बेजोड़ हवा चलल, आ कोलकाता वाला लोग के गरमी से राहत मिलल।
गरमी के अति देखि के, भइल निहोरा आज।
बरिसे लगले सांझि खा , देखि इनर महराज।।
बरखा_इन_कोलकाता
रउआ लोग भी निचे लिखल शायरी के पढ़ी आ मौसम के आनंद उठाई
बोली बोली इनर महराज की जय
अनु नेवटिया के शायरी
बस इतनी इस मौसम से हम मुहब्बत निभाते हैं
कच्चे घर में रहते हैं और बारिश बुलाते हैं
वो राहत, ठंडक, खुशबू और मुहब्बत लेकर आता है
एक बेरंग सा पानी कितनी रंगत लेकर आता है
है बारिश दूर ज़मीं से, नहीं कोई हरियाली बचाने वाला
न मेघ मल्हार गाने वाला, न है कोई नाव चलाने वाला
झूमते बादल, दीवानी बिजली, वो पवन आवारा कहाँ है
तपती धरती पुकार रही, शीतल सुगन्धित धारा कहाँ है
तेरा आना भी जैसे कलकत्ते की बारिश….
हवा ने दी ख़बर
घटा ने आहट
मन मगर सूखा ही रह गया।
यूँ भी ज़रूरी है बारिश का आना क्योंकि
हर ज़मीं को मुहब्बत की नमी नहीं मिलती
तू है सर्वोपरि, इंसानों को मात दे
रख दिल बड़ा हे ईश्वर, बरसात दे।
इश्क़ में हारी दिल मैं हारी ,वजूद लेकिन हार नहीं गयी
प्यार किया बेहद लेकिन ,कभी हद से पार नहीं गयी
वो आये चीरकर आसमां तो भीग लूँ बेशक मगर
मिलने पानी से कभी धरा अब्र के द्वार नहीं गयी
कहो कोई गीत स्वागत के गाऊं
या इस रिम झिम को गले लगाऊं
कैसे कैसे मनुहार करूँ मैं
बून्द बून्द सत्कार करू मैं
बड़ी मिन्नतों से बदली बरसी मेरे शहर में
थी धरा भी ये कबसे तरसी मेरे शहर में
#kolkata_calling_rain
सागर सिंह के रचना
सूखी गर्म ज़मीं पर कुछ करामात हो जाये ।
झटक दो गीली ज़ुल्फ़ें ता बरसात हो जाये ।
सुनो,ज़रा बादलों के दिल तोड़ दो ।
तपती ज़मीं को बरसात चाहिये ।
बैठ कर बर्क़ के ज़ीने पर रक़्स ए अब्र देखेंगे !
कभी दामन बचाएंगे कभी बूंदों को छू लेंगे !
इस दिल को सुकुं कैसे आये ।
ना बारिश आई ना तुम आये ।
चलो आज पूरी धूप की गुजारिश कर दो ।
मेरी आंखों से सावन लो, बारिश कर दो ।
सुबह से बादलों को छेड़ रहे थे हम
शाम को बारिश ने बदला चुका दिया
गुल देखिये गुलशन देखिये शज़र देखिये
बारिश के नज़ारे ज़रा एक नज़र देखिये।
जमीं पे कीचड़ है फ़लक़ से ओले बरसे
जूते बचा लिजिये या फ़िर सर देखिये ।
मौसम ए बरसात मे सद रंग ए नज़ारा होता !
तुम होते जो हमनशीं मौज़ ए बहारां होता !
रिपोर्ट: गणेश नाथ तिवारी