घर छोड़ला के बाद (कविता) मैकश के कलम से
मैकश के कविता जिनगी के मय पहलुअन के शब्दन में समेटले रहेला....
हमरा घर छोड़ला के बाद
घर, घर ना
किराया के मकान लागेला
एगो लइकि बिया
जवन ताकत रहेले एक भोरे से
एगो औरत बाड़ी
जेकर जिनगी में बा इंतजारे लिखल
मन केकर ना ह कि
परिवार संघे बइठ के दु टाइम
आँखी के सोझा
जिनगी के सांझ बितावल जाव
केकर मन ह कि
सुतले में लइकन के छोड़ के
आदमी निकल जाए ड्यूटी
पइसे सबकुछ ना होला
जानऽ तानि
जे पईसे से पेट भर जाए के रहित
त चार किलो पईसा कर्जा लेके
रख देती कहीं घर में
घर खाती, घर छोड़ के
बटोही बनल आत्मा के रोआ देला
केहुके लगे नौकरी
केहु मन से ना करें
मजबूरी में करेला
दिन भर गाय नियम दुहा गइल
आदमी के जनावर बनाके छोड़ देला…
भोरे के बनल खाना
साँझ ले ठंडा जाला
रोटी सूख के पापड़
तरकारी अरुआ जाला
सीसा में देखऽ त
चेहरा ना चिन्हाला
हाथ के सिकन
लिलार प अलगे से बुझा जाला
कबो कबो छूछे हाथे लउटल
लइकन के मन तुड़ देला हो
पाले त सबकुछ बा
आ देखल जाव ठीक से त कुछु नइखे
नोकरी सभकेहु से ना होखे
जिनगी के बन्हिक रख देहल
एतना आसान थोड़े ह !
आसान त इंहा कुछु ना बाटे
बाकी गुलामी से भारी
इंहा जिनगी में कुछ हलहु नइखे….
मैकश के परिचय
गांव के माटी-पानी में सनाइल एगो नब्बे के दशक के भारतीय जवना के आपन भाषा आ संस्कृति में अटूट विश्वास आ लगाव बा। ‘मैक़श’ के परिचय इंहा एगो अइसन साधारण आ जमीन से जुड़ल नवसिखुआ लइका से बा जवना के कलम आ शब्द नवहन के बात करेला। उ संवेदना, भाव आ अंदाज के लिखे के एगो छोटहन कोसिस जवना के समाज आ लोग साधारणतः नजरअंदाज क देला।
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