Mahakumbh 2025: महाकुंभ में कवन देवी-देवता के होला पूजा? इहां जानीं महत्व

Minee Upadhyay
महाकुंभ स्पेशल

सनातन धर्म में महा कुंभ मेला के बहुत महत्व बा। इहाँ प्रयागराज में 13 जनवरी से धार्मिक पर्व शुरू भईल जवन 26 फरवरी तक चली। महाकुंभ में अमृत स्नान के बहुत महत्व बा। एह सिलसिला में पहिला अमृत स्नान भइल बा, दुसरका अमृत स्नान 29 जनवरी के आ तिसरका अमृत स्नान 3 फरवरी के होखे वाला बा. अमृत ​​में नहाए के पहिला अधिकार नागा साधू के दिहल जाला। नागा साधू लोग के भोले शंकर के उपासक मानल जाला।

महाकुंभ मेला के दौरान स्नान के संगे देवी-देवता के पूजा भी होखेला। अइसना में बता दी कि कवन-कवन देवी-देवता के पूजा होला…

कवन देवता के पूजा कइल जाला?

मानल जाला कि महाकुंभ के शुरुआत समुंदर के मंथन के बाद भइल रहे, जब देवता आ राक्षस मिल के सागर से चौदह गो रत्न निकालले रहले, जवना में से एगो अमृत के घड़ा रहे। जवना के चलते देवता-दानव के बीच युद्ध शुरू हो गईल। मानल जाला कि युद्ध के दौरान अमृत कलश के कुछ बूंद धरती पs गिर गईल, जवना के चलते महाकुंभ के शुरुआत भईल। हालांकि समुंदर के मंथन के दौरान सबसे पहिले हलाहल जहर निकलल, जवना के बाद चारो ओर हाहाकार मच गईल।

शीतलता प्रदान करे खातीर कइल गइल जलाभिषेक

एकरा बाद महादेव आगे आके हलाहल विषपान कs के कंठ में रोक देले। एही कारण से महादेव के नाम नीलकंठ रखल गईल। फिर विष के ताप से शीतलता देवे खातिर देव-ऋषि मिल के महादेव के एक घड़ा में पानी, दूध आदि से भर के अभिषेक कईले। तब से महादेव के जलाभिषेक पूजा शुरू हो गईल। इहे कारण बा कि महाकुंभ में महादेव के पूजा होला।

साथ ही अमृत कलश के राक्षस से बचावे खातिर भगवान विष्णु मोहिनी के रूप में एकरा के देवता लोग के बीच बाँट दिहलें। जवना के चलते भगवान विष्णु के भी पूजा होखत रहे। भगवान विष्णु के संगे देवी लक्ष्मी के पूजा के परंपरा भी बा।  एकरा संगे महाकुंभ में माई गंगा के भी पूजा कईल जाला।

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