भोजपुरी संगम के 153 वीं ‘बइठकी के भइल आयोजन

Anurag Ranjan

गोरखपुर। ‘भोजपुरी संगम’ के 153 वीं ‘बइठकी’ संस्कार भारती के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हरि प्रसाद सिंह के अध्यक्षता आ अवधेश शर्मा ‘नन्द’ के संचालन में दु सत्रन में संपन्न भइल।

कार्यक्रम के पहिला सत्र में सत्य प्रकाश शुक्ल के कहानी ‘गाँठ’ के पाठ आ समीक्षा भइल। समीक्षा क्रम के सुरुआत अरविंद अकेला द्वारा पढ़ल गइल आकाश‌ महेशपुरी के समीक्षा से भइल। जेमे बतावल गइल कि ई कहानी दु पीढ़ियन के बीच के द्वंद्व आ लईकन से दूर होखला प माई-बाप के चिंता के सहज बयान करत बिया।

समीक्षा के दौरान अमन मणि त्रिपाठी कहलें कि कहानी गाँव से सुरू होके शहर में खत्म होत बिया, जवना के भाषा सहज बा आ एकर सब पात्र हमनी के बीच के बा। कहानी में प्रस्तुत भाषायी द्वंद्व पीढ़ीगत बदलाव के संकेत बा।

कहानी प टिप्पणी करत डॉ फूलचंद प्रसाद गुप्त एकरा के भोजपुरी के विलुप्त हो रहल खाँटी शब्दन से भरल सानदार प्रस्तुति बतवलें।

मुकेश आचार्य कहलें कि ई कहानी पुत्र के परिवार के दादा-दादी के परिवार से अलग होखल बतावत बिया जवन आज के सत्यो बा, संगही एकर शीर्षक ‘गाँठ’ के बजाय ‘मसोस’ होखल बेहतर बतवलें।

अध्यक्षता कर रहल हरि प्रसाद सिंह भोजपुरी के आपन जड़ बतावत आवे वाली पीढ़ी के भोजपुरी सीखे आ जाने खातिर एह इस तरह के कार्यक्रमन के जरूरी बतवलें। संगही भोजपुरी के सम्प्रेषणीयता में अत्यंत समृद्ध कहलें।

एह सभे के अलावे जय प्रकाश नायक, वागेश्वरी मिश्र ‘वागीश’, धर्मेन्द्र त्रिपाठी, राजेश्वर सिंह आ राम समुझ साँवरा महत्वपूर्ण टिप्पणी करत एकरा के सफल कहानी बतावल लो।

बइठकी के दूसरा ‘कवितई’ सत्र में हरिवंश शुक्ल ‘हरीश’, वीरेंद्र मिश्र ‘दीपक’, नन्द कुमार त्रिपाठी, नर्वदेश्वर सिंह, अरविंद ‘अकेला’, अवधेश शर्मा ‘नन्द’, सत्य प्रकाश शुक्ल, श्रीमती निशा राय, वागीश मिश्र, मुकेश आचार्य, राम नरेश शर्मा आदि रचनाकार लोग आपन भोजपुरी रचनन से ‘बइठकी’ के समृद्ध कइल लो।

एह अवसर प रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी, अमरेन्द्र कुमार मिश्र, डाॅ. विनीत मिश्र, शुभम उपाध्याय, अमित आ आउर साहित्य सुधी जनन के सक्रिय उपस्थिति रहल।

संयोजक कुमार अभिनीत अगिला महीना होखे वाला ‘बइठकी’ के रुपरेखा बतवलें। आभार ज्ञापन इं.राजेश्वर सिंह कइलें।

अंत में रवींद्र मोहन त्रिपाठी के अर्धांगिनी श्रीमती विंध्यवासिनी देवी के निधन प दु मिनट के मौन रखके श्रद्धांजलि अर्पित कइल गइल।

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