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हमरा ससुर एगो कुंइयाँ खनवलें, डोरिया बरत दिनवाँ बीतल हो राम जी! 

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गोरखपुर। ‘राजा-रानी आवत होइहें, पोखरा खनावत होइहें, पोखरा के आरी -आरी पेड़वा लगावत होइहें’ और हमरा ससुर एगो पोखरा खनवलें, डोरिया बरत दिनवाँ बीतल हो राम जी! बोली से भाषा बने के दिसा में मजबूती से डेग बढ़ा रहल भोजपुरी के कवितन में पर्यावरण विषय पs आयोजित बतकही कार्यक्रम में ऊपर लिखल रचना के पंक्तियन के सुनके मन बाग-बाग हो उठल।

बीतल दिन महानगर के खरैया पोखरा, बशारतपुर में सम्पन्न हुई ‘भोजपुरी संगम’ के 155 वां ‘बइठकी’ में बतकही के दौरान वक्ता लोग मनोहारी भोजपुरी संस्कृति के बहुते सार्थक ढंग से उकेरल।

बइठकी के पहिला सत्र में अपना आलेख में डाॅ. फूलचंद प्रसाद गुप्त कहलें कि प्रकृति, भोजपुरी संस्कृति के मूल में बा। संगही प्रकृति आ पर्यावरण के छोड़के भोजपुरी संस्कृति के कल्पना तक नइखे कइल जा सकत।

एही क्रम में ऊ भोजपुरी के सुख्यात लोककवि स्व. धरीक्षण मिश्र, सुभाष यादव, रामानंद गँवार आ स्व. नरसिंह बहादुर चंद के प्रकृति चित्रण से जुड़ल रचनन के उल्लेख करत कहलें कि तमाम अउरियो कवियन के रचनन में जीव जगत आ खास कs के मानव जिनगी के बचावे खातिर लोगन से कवि लोगन द्वारा नदी, ताल, गाछ-बिरिछ के बचावे के मार्मिक अपील कइल गइल बा।

डाॅ. आद्या प्रसाद द्विवेदी कहलें कि भोजपुरी लोकगीतन में पर्यावरण के सुरक्षा खातिर तुलसी, नीम, पीपल आ बरगद रोपला के उल्लेख हर जगे देखे के मिलेला। इहां ले कि हमनी के संस्कार गीत तs एकरे से भरल पड़ल बा।

अपना आलेख में कवि नंद कुमार त्रिपाठी ‘गंगा मैया तुलसी के नैहर, त भोजपुर सासुर हो। सरग में तुलसी जनमली, मलहोरिया जरिया रोपेला हो’ , गीत के उल्लेख करत कहलें कि प्रकृति आ पर्यावरण भोजपुरी कविता आ संस्कृति के प्राणतत्व हs। कार्यक्रम के संचालन कवि धर्मेन्द्र त्रिपाठी आ अध्यक्षता कुशवाहा हरिनाथ कइलें।

कार्यक्रम के दूसरा सत्र में अरविंद अकेला, भीम प्रसाद प्रजापति, नर्वदेश्वर सिंह, अजय अंजान, कुमार अभिनीत, राजीव रंजन मिश्र, नंद कुमार त्रिपाठी आ डाॅ. फूलचंद प्रसाद गुप्त काव्यपाठ कइल लोग। अंत में इंजीनियर राजेश्वर सिंह आइल अथिति लोगन के आभार व्यक्त कइलें। कार्यक्रम में चंदेश्वर परवाना, डाॅ विनीत मिश्र समेत दु दर्जन लोग उपस्थित रहल।

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