“सुविधा के शहर में सांप” तैयब हुसैन पीड़ित के लिखल भोजपुरी कहानी।
आज अखबार खोललीं त गिनती में बाघन के संख्या बढ़ गइल रहे. जान के जइसे जान आइल. केतना अजब लागत बा, काल्ह तक देखल गिद्धन के अलोपित हो गइल. कठफोड़वा के पेड़ के तना प सट के 'टिर्र-टिर्र' कइल, फेर देरी ले लमहर ठोढ़ से 'ठक्-ठक्क' करत ओके फोड़ल.
भोजपुरी कहानी: आज अखबार खोललीं त गिनती में बाघन के संख्या बढ़ गइल रहे. जान के जइसे जान आइल. केतना अजब लागत बा, काल्ह तक देखल गिद्धन के अलोपित हो गइल. कठफोड़वा के पेड़ के तना प सट के ‘टिर्र–टिर्र‘ कइल, फेर देरी ले लमहर ठोढ़ से ‘ठक्–ठक्क‘ करत ओके फोड़ल.
मीडिया में पर्यावरण प बड़ चिन्ता लउकेला. एने चिडिय़ा –घर में लगातार दूगो भालुअन के मरे के खबर पढ़ले रहीं. जिराफ बच्चा देवे वाली बिया, एह से बालू बिछावल जा रहल बा ओकरा केज में. ओकरा पहिलका बच्चा के बचावल ना सकल रहे. शेर के घर में ए.सी. चिता के दुआर प फुहारा. स्कूलन में त छोट–छोट लइकन से नारा लगवावल जाला ‘पेड़ लगाओ–जीव बचाओ.’
पूछल जा सकेला पेड़ कटवले काहें जात बा? के कटवावत बा पेड़? बात बहुत दूर ले जाई. जंगल में अफसरन से मिल के ठेकेदारन के चोरी–चोरी पेड़ काटल का सरकार नइखे जानत. कह सकिलें, सरकार के जमीन चाहीं, कल–कारखाना लगावे खातिर. शहर में अब कहां बा एतना जमीन? फेर लोहा, तांबा, अल्मुनिया के रूप में जवन खनिज दबल बा आदिवासी क्षेत्रन में, बिना ओकरा के निकलले विकास कइसे होई? सरकार के पेड़ कटवावल एही से मजबूरी बा. ठीक बा, बाकी जे तीन सौ ,चार सौ बरिस से रहत आइल बा जंगल में, तेंदु–पत्ता आ जड़ी–बूटी बेच के गुजारा कइल जेकर जिनगी बा, ओह गरीबन के सरकार मुआवजा दी. कतहीं बसाई कल–कारखाना खुलले प कामों मिल सकेला. बाकी तत्काल त मजबूरी बा. संविधान में लिखल बा, अइसन जमीन जरुरत पड़ले प उचित मुआवजा देके सरकार अपने कब्जा में ले सकेले.
बाकी संविधान में आदीवासियन के जमीन लेवे के मनाहियो त बा. उजारल आसान बा केतना के, कहां बसवलस सरकार. के जवाब दी? टेहरी बान्ह के उजारल, उड़ीसा के जंगल से भगावल लोग छिछियात फिरता, केहू माई–बाप आ पुछवारे नइखे. ऊपर से सलवा–जुडूम बना के सरकार ओकरे भाई–बंधु से ओकरा के मरवावत बिया. सुरक्षा के नाम प ग्रीन हंट अपरेशन. फौज के नाम स्कॉर्पियन आ कोबरा. देस के मूलवासियन के साथे अइसन बेवहार? रुइयो एक हदे ले दबेले, फेर त विस्फोटे होई.
अकेले में इतिहास के पन्ना खुले लागल. अंग्रेज स जवन जमीन के बंदोबस्ती हमरा पुरखन के नाम कइलन, दरअसल ओकरा पाछे रैयतन प एगो मालिक बहाल कइल रहे, जवना में आसानी से टैक्स–वसूली के काम होत रहे आ जमीनदार बिचौलिया के मार्फत अंग्रेजन के खजाना में पइसा पहुंचत रहे. बदला में मालिक रैयतन से चाहे जेतना बेगारी करावे मारे पिटे, बहु–बेटी के इज्जत से खेलवाड़ करे. आज जमीन के असमान बंटवारा एकरे नतीजा बा कुछे लोग के गांवन में ढेरहन जमीन, बाकी टोला के टोला कमतर. हमरो दादा अइसने जमींदार रहन. उनके रायबहादुर के उपाधि मिलल रहे. बाबूजी, दादो से हुसियार निकललें. बिहार के गांव में अब अधिका जमीन ना बढ़ सकत रहे, एह से जंगलात कावर रोख कइलन.फेर त कोइला–खदान के ठेकेदारी, ट्रक के ट्रक एह करिया पाथर के हेरा–फेरी से टाल–भर सोना उगाहल गइल. धनबाद में सैकडऩ बिगहा जमीन औने–पौने दाम में दखल कइलन. भलहीं सरउ जंगली लोग पीठ के पाछे गारी देवस. ‘दिक्कू‘ ‘दिकदारी देवे वाला‘ कह के बहरवांसू समुझस, बाकी आज परिवार चानी काटता. छोट–मोट राजा बानीं हमनी के. ईहे आदिवासी अपने जमीन के जोतत हमनी के सेवा में लागल रहेलन स , केतना ठाट बा एह पिछड़ल इलाका में.
एगो लइका बा पढ़–लिख के फारेस्ट अफसर के जगहीं प लाग गइल बा. जंगबहादुर बाबू जइसे कोइला मंत्री भइलन, पैरवी के लौ बइठ गइल. ऊहो करतन कइसे ना? हमरे क्षेत्र से खड़ा होलन. हमरा मातहत के जंगलियन के वोट के गारंटी रहेला. जब अइहन, मुर्गा–मीट, देशी–विदेशी के साथे रातो खातिर इंतजाम. कहेलन–जंगली छोकडिय़न के टेस्टे अलगे होला. राकेश विदेशी सुभाव के बाडऩ. उनकर जंगल काट के शहर बसावल जाता. प्लेन्ड वे में बसावल जाई ई शहर. मार्केट, मैदान, पार्क आ बड़का–बड़का मकान जेके अपार्टमेन्ट आ डूप्लेक्स कहल जाला, होई ओह में. एह में रही मॉल्स, मेट्रो, फ्लाईओवर्स आ जाने का–का दो. सरकार, सब वी.आई.पी. लोगन के एलॉट कर रहल बिया प्लाट. ऊ त जंगल के अफसर गुने इनको के मिला के रखल जरुरी रहे, एही से इनको एगो टुकड़ा मिल गइल बा जमीन. अबहीं टेम्परोरी फ्लैट बना लेले बाडऩ.
पोता के छठिहार में गइल रहीं त पुछलीं-‘ठीक बा नू‘ कहलन सेंट–परसेंट. पॉश कालोनी बनी, आगहूं एजा स्वीट्जरलैण्ड रही डैडी. एकदम हेल्दी ऐटमोसफेयर. मन में कहलीं– रहो काहे ना. छोट–छोट पहाड़ बा. पहाड़ी नदी बहत बाड़ीं स. थोड़ के दूर गइले प जंगलात शुरु हो जाला. बाकी सांप बहुत निकलत बाडऩ स. राति के कैंपस के बहरे मत जाइब. जंगल में रहे वाला देहाती मनई घूमे के खेयाल से सांझ के थोड़े आगे बढ़ गइलीं, ठंडा–ठंडा हवा चलत रहे. पहाड़ से पानी गिरे के अवाज नगीचे बुझात रहे. लोमड़ी सियार साथे कुछ अउर जनावरन के चें–चां. चान आसमान में जइसे खिलखिलात होखे. तरे कोलतार के सड़क प दूगो मोट रस्सी चमकत बुझाइल, दूनों खड़ा हो जा स फेर धबाक से गिर जा स. समुझत देरी ना लागल कि नाग–नागिन जोट खेलताडऩ स. सुनले रहीं, अइसन में ओकनी के देखले खतरनाक होले, छेड़ल आ मारे के कोसिस त अपने मउअत के नेवता देवल ह. लइकाई के पढ़ल–सुनल एक प एक खिस्सा इयाद पड़े लागल. एक जना अइसने जोड़ा में से नाग के मार देलन. नागिन उनकर फोटो आंखि में उतार लेलस फेर त आदमियन के छोंज में सुतलो प उनका के चिन्हिए त लेलक आ दे हबक्का, झड़ाई–फुकाई होत रह गइल. आखिर में मुंह से गाज फेंक के मर गइलन.
पंचतंत्र के एगो कहानी आजु के बजारु सोंच खातिर कइसन सटीक उदाहरण बा. एगो पंडित जंगल के कवनो नाग के रोज दूध ले जा के पिआवस. बदला में ऊ बिल में से एगो सोना के सिक्का ले आके ब्राह्मण देवता के आगा रख देवे. ब्राह्मण के कुछ दिन ला कहीं जाए के भइल. ऊ बेटा के समुझवलन– नागे के देला से आपन घर चलता. तू ले जाए में नागा मत करिह. बेटवा एक–दू दिन दूध नाग के पिअवलक त फेर सोचलस, ई रोज–रोज के बखेरा से अच्छा बा, एके बेर सब पइसवे हासिल क लीं.
ऊ दोसरा दिने लाठी लेले गइल, साथ में बिल कोड़े के खुरपी आ कुदार. जइसे नाग निकललन, भरपूर वार क बइठल, नागो सचेत रहे घूम के काटिए लेलक. ओहिजे बेटा राम ढेर हो गइलन.
हमार नाग–नागिन अब जमीन प रहस. एगो फन कढ़ले चार फिट मुंह उठवले रहे. दोसर इत्मिनान से ओकरा देह प लोटात रहे. ई बुझाला नागिन होई, जवन नाग के छत्र–छाया में बेपरवाह रहे.
हम पुछलीं आदमी के रास्ता प काहें सांप. कहलक–हमनी के रास्ता प तोहन लोग बाड़. हम कहलीं– इहां त हमार घर बा, तू जंगल जा, ऊ कहलक घर त तोहरा से पहिले इहां हमार रहे. उल्टे हमहीं चल जाई? अउर का तू लोग जंगलों में हमनी के चैन से जिए देब. हमनी के घर त घर, परिवार तक नाश करे प लागल बाड़ तोहनी के. हमनियो सोच लेले बानीं. लड़े के अलावा कवनो राह नइखे. आखिर जे मरी, ऊ का ना करी.
दरअसल हमरा ठकमुड़की लाग गइल रहे. पलक झपकते ऊ दूनो काट सकत रहस. हम ना भागे के हालत में रहीं ना कटला प नगिचे कवनो दवा–दारु के इन्तेजाम रहे. हमरा आंखि मुर्दाए लागल. लागे लागल अब देह प कुछ सुहुर–सुहुर चढ़ी आ एगो गोड़ छान ली, दोसरका मांस में जहरीला दांत धंसा दी.
ओठ बुदबुदात रहे– असख्य होलन सांप. शहर में रहे के उनका कवनो अधिकार नइखे. ओने सांप थुथुन हिलावत रहे, जइसे कहत होखे–वाह रे सभ्य आदमी आपना आराम खातिर कमजोर के दबावत जा, भगावत जा, उनकर चीज दखलिआवत जा. खाली एही से कि तू लोग अपना सवारथ में एक हो गइल बाड़ जबकि बाड़ गिनती में थोड़ आ कमजोर जादे होइयो के एकवट नइखे. बाकी जेह दिन मिल के जोर लगाई, ओहीं दिन तोहनी के दुरदिन आ जाई. जा आज चेता के छोड़ देत बानीं. बुझाता गांव से आइल बाड़. एह से तनी इंसानियत बाचल बा तोहरा में. जे जुरते हमनी प वार ना करे ओह प हमनियो के मुंह ना उठे. शहरी त मारे के उतजोग में लाग जइतन स. आ हमनियो के काटे के अलावा कवनो दोसर चारा ना रहि जात. तू लोग अपने जात भाई क ना भइल त हमनी के होइब.
मोबाइल बाज उठल. नागिन फिलिम के रिंग टोन रहे. हमार तन्द्रा टुटल, होस आइल त सांप जंगलात कावर सरक गइल रह स. बाकी बेहोशी में ओकनी से कइल बात हमरा बिसरल ना रहे. स्वीच ऑन कइलीं. मोबाइल प सरकारी प्रचार आवत रहे घर के आंगन आ छते प बर्तन में दाना पानी राख देवे के आदत डालीं. ना त आवेवाला दिन में आपन कउआ आ गौरइयो खाली किताब में रह जइहंन स, आंख के सोभा ना……
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