बद्रीनाथ मंदिर के कहानी : शंखनाद हिन्दू धर्म में कवनो भी पूजा में पहिला आ आखिरी में कइल जाला। पूजा के साथ-साथ हर शुभ काम के दौरान शंख के बजावल जाला। शंख के सुख, समृद्धि आ शुभ के कारक मानल गइल बा। कहल जाला कि शंख के बजवले बिना पूजा अधूरा मानल जाला। दूसर ओर चारधाम में से एगो बद्रीनाथ में शंख बजवले पs रोक बा। भगवान विष्णु के अवतार बद्रीनारायण के पूजा बद्रीनाथ मंदिर में कइल जाला। इहाँ उनुका लगे शालिग्राम से बनल 3.3 फीट ऊँच मूर्ति बा।
मानल जाला कि एह मूर्ति के स्थापना 8वीं सदी में शिव के अवतार मानल जाए वाला आदि शंकराचार्य द्वारा कइल गइल रहे। इहो मानल जाला कि भगवान विष्णु के ई मूर्ति इहाँ ही स्थापित भइल रहे। कहल जाला कि एही जगहा भगवान विष्णु के साथे तपस्या कइले रहले। बद्रीनाथ में शंख के ना बजवले के पीछे एगो किंवदंती बा। जवना के अनुसार हिमालय में जब राक्षसन के बहुत आतंक रहे त ऋषि लोग ना मंदिर में भगवान के पूजा ना कर सकत रहे ना कवनो दोसरा जगह पर।
राक्षसन के आतंक देख के अगस्त्य ऋषि माँ भगवती के मदद खातिर गोहार लगवले, जेकरा बाद माँ कुष्मांडा देवी के रूप में प्रकट भइली आ अपना त्रिशूल आ खंजर से राक्षसन के नाश कs दिहली। हालांकि माँ कुष्मांडा के क्रोध से बचे खातिर उहाँ से दुगो राक्षस आतापी अवुरी वातापी भाग गईले। एहमें से अतापी मंदाकिनी नदी में लुका गइल आ वातापी बद्रीनाथ धाम जाके शंख के भीतर लुका गइल। जवना के बाद इहाँ शंख ना बजावल जाला।
बद्रीनाथ में शंख के के वैज्ञानिक कारण भी बा। जवना के मुताबिक अगर शंख के इहाँ बजावल जाए त ओकर आवाज़ बरफ से टकरा के आवाज़ पैदा क दिही, जवना से बर्फ में दरार हो सकता अवुरी हिमस्खलन के खतरा भी बढ़ सकता। एही से इहाँ शंख ना बजावल जाला।
(अस्वीकरण: इहाँ दिहल जानकारी सामान्य मान्यता आ जानकारी पs आधारित बा। खबर भोजपुरी एकर पुष्टि नइखे करत।)