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संवेदनशीलता साहित्य के जननी हs : डॉ. आरिफ मोहम्मद खान

दु दिन के गोरखपुर लिटफेस्ट के भइल आगाज।

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गोरखपुर: दु दिन के गोरखपुर लिटफेस्ट के आज सुरुआत लोकतंत्र आ साहित्य विषयक उद्घाटन सत्र से भइल। एह सत्र में मुख्य अतिथि केरल के राज्यपाल आ प्रख्यात राजनीतिज्ञ, चिंतक, विचारक श्री आरिफ़ मोहम्मद खान, मुख्य वक्ता प्रख्यात साहित्यकार आ लेखिका मृदुला गर्ग, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार सिंह मवजूद रहल लोग। कार्यक्रम के अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार आ साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी कइलें।

कार्यक्रम के सुरुआत दीप प्रज्ज्वलन के संगे भइल

अतिथियन के स्वागत करत कार्यक्रम के संयोजक अचिन्त्य लाहिड़ी कहलें कि साहित्य संस्कृति के एह वैचारिक महाकुम्भ में शहर के साहित्यप्रेमी बुद्धिजीवी समाज आज एह आयोजन में सामिल हो रहले। सब लोगन के हार्दिक अभिनंदन करत बा।

कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ. संजय कुमार श्रीवास्तव कार्यक्रम के भूमिका रखत बतवलें कि कइयन गो कठिनाइयन के बावजूद साहित्य के सेवा करे के नशा कुछ अइसन बा जवन एह भगीरथ प्रयास में हमनी के थाके ना थाके देला आ ना रुके देला। आ एह यात्रा के ई पांचवा पड़ाव ऐतिहासिक सिद्ध होखे जा रहल बा।

कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट वक्ता प्रख्यात साहित्यकार मृदुला गर्ग कहलें कि हमनी के संस्कृति ओह खूबसूरत संस्कृतियन में से एगो बा जवन सर्व समाहित बा। चूंकि हमनी के धुंधला देखे के आदत बा एह कारण से हमनी के अंजोर से घबरानी सs। हमनी के समझे के होई कि चुनौती के स्वीकार कइला के बादे चमक आवेला। लोकतन्त्र में साहित्य के महत्ता पs बोल ऊ कहलें कि लोकतंत्र स्वतन्त्र विचार के निर्भीक अभिव्यक्ति बा आ साहित्यो वस्तुतः ओहि चरित्र के बा। लेखक के कथनी ना बलुक ओकरा पात्रन के करनी के महत्व होला। लोकतंत्र में ‘हम ना’ के अपेक्षा ‘हम काहे ना’ के प्रश्न जादे सार्थक बा। लोकतंत्र के रक्षा में साधारण कदम विशेष अवसरन के बल प्रदान करत बा। समाज के साधारण आदमिये वास्तव में क्रांतियन के अगुआ बन जाला। हमनी के अइसन कानूनन पs प्रश्न तs उठावेनी सs जवन स्वतन्त्रता में बाधक बनेला, बाकिर हमनी कबो खुद पs सवाल उठावे के कोसिस ना करेनी सs। साहित्य के वास्तविक लोकतंत्र के उदाहरण भक्तिकाल में विशेष रूप से देखे के मिलल जब दलित लेखक सवर्ण लेखकन के आलोचना कइले बिना समन्वयवादिता के परिचय देलें। ई वास्तव में हमनी के लोकतंत्र के खातिर एगो थाती के समान बा। जब साहित्य लोकतांत्रिक होई तब लोकतंत्र के रक्षा होई। साहित्य में स्त्रियन के सहभागिता आ स्त्रीविमर्श लोकतंत्र में स्वस्थ परंपरा के भूमिका तय करेला। आज साहित्य लोकतंत्र के स्थापना खातिर लगातार लड़ रहल बा आ आपन पाठकन के एह पुनीत काम खातिर आमंत्रित कर रहल बा। भारतवर्ष एकमात्र देश हs जहां पs सही अर्थन में लोकतंत्र स्थापित हो सकत बा आ एकरा खातिर साहित्य कला आ संस्कृति के संस्कारन के पोषण के आवश्यकता बा।

ऊ अपना संबोधन के समाप्त करत कहलें जदि कवनो देस मे स्वस्थ लोकतंत्र स्थापित हो सकत बा तs ऊ आपन देस भारत देस बा।

प्रख्यात पत्रकार आ राष्ट्रपति के प्रेस सचिव अजय कुमार सिंह एह अवसर पs कहलें कि लोकतंत्र के अस्तित्व के कल्पना साहित्य के बिना अधूरा बा। साहित्यिक रचना कालजयी होला आ भविष्य हमेशा भूत से अच्छा होला। साहित्य में स्थानीयता के साथ सार्वभौमिकता, दूनो के तत्व सामिल होला।

आज गीता प्रेस साहित्य के व्यापारिक लोकप्रियता देले बा। प्रेमचंद्र के पात्र वैश्विक स्तर के पात्र बन जाला। लेखक के पात्रन के सार्वभौमिकता कहियो पावल जा सकत बा। अंचल के साहित्य एह ममिला में विशेष बा कि ऊ इहां से निकलके देसे ना  बलूक वैश्विक स्तर पs आपन छाप छोड़त ना। कवनो गांव भा नगर से निकलल लेखक भा कवि कवना तरे वैश्विक स्तर पs अनुकरणीय होत चल जाला, ओकर महत्वपूर्ण उदाहरण गोरखपुर बा। साहित्य के सौंदर्य के अनुभव करे खातिर भाषा कवनो बाध्यता नइखे बलुक भाव महत्वपूर्ण बा। साहित्य के लोकतंत्र सही अर्थन में समावेशी बा जवन अंत्योदय आ वसुधैव कुटुंबकम के भावना के बल देला आ आमजन के हृदय तक पहुंचेला। गोरखपुर के साहित्यिक विरासत पs विचार रखत ऊ कहलें कि ई धरती फिराक जइसन महान लोगन के जनम देले बा, ऊ उर्दू में अइसन रचना के जवन आजो प्रासंगिक बा। ओहिजा साहित्य अमर बा जे समाज के अंतिम व्यक्ति तक जाला आ ओकरा भावनन आ दिलन के छूवेला। लोक साहित्य के दरअसल समाज के आखिरी छोर के लोग जीवित रखले बा। संविधान के प्रस्तावना में समाहित लोकतंत्र के आदर्श स्वतंत्रता संग्राम के आदर्श के रिफ्लेक्ट करत बा आ ओम गोरखपुर आउर प्रेमचंद के विशेष स्थान रहल बा।

कार्यक्रम के अध्यक्षता कर रहल वरिष्ठ साहित्यकार आ साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी कहलें कि राजनीतिक विचारकन के ई मत रहल बा कि ओहिजा व्यवस्था सर्वोत्तम बा जेमे सबसे कम शासन कइल जाई। एह अर्थ में लोकतंत्र विशिष्ट बा। राज्य खुद में मनुष्य के असभ्य होखला के प्रमाण बा आ सब मनुष्य सभ्य हो जाला तs राज्य आ कानून के आवश्यकता नइखे। महात्मा गांधी कहलें रहस, नीति के पालन आ इंद्रियन के वश में कइले सभ्यता हs। हमनी के स्वतन्त्रता के प्रश्न पs अधिकारन के बात तs करेनी सs बाकिर कर्तव्यन के बात ना करेनी सs। स्वाधीनता में कर्तव्य के भावना समाहित बा। शासन व्यवस्था के साहित्य पs पड़े वाला प्रभाव के मुद्दन पs कहलें कि तानाशाही शासन में अगर साहित्य के दुर्गति के प्रमाण देखे के होखे तs कम्युनिस्ट शासन से बेहतर उदाहरण आउर कवनो नइखे हो सकत। लोकतंत्र राजनीतिक विचारकन आ जागृत आत्मन के लक्ष्य हs आ इहे लक्ष्य साहित्यकारो के बा। लोकतंत्र के इहे विशेषता बा कि ओमे जवन रउआ कहल चाहत बानी कह सकत बानी आ रउआ असहमति के अधिकार बा। साहित्य आ मीडिया पs प्रतिबंध तानाशाही व्यवस्था के द्योतक बा। चीन आ रूस एकर उदाहरण बा। लेखक आ साहित्य तानाशाही के शाश्वत विरोधी होला। तानाशाही भलही साहित्य के प्रसार के रोक देवे बाकिर साहित्य के रचना के नइखे रोक सकत।

व्यक्ति के गरिमा आ अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता में टकराहट ना होखे के चाहीं। लोकतंत्र पs जब तंत्र हावी हो जाला तs लोकतंत्र लकवाग्रस्त हो जाला।

संबोधन के अंत में ऊ कहलें कि लोकतंत्र ऑफ द पीपल बाय द पीपल फ़ॉर द पीपल हs। 1789 के फ्रेंच क्रांति के बाद जवना लोकतंत्र के कल्पना कइल गइल रहे ऊ लोक के महत्व आ अभिव्यक्ति के आजादी के हs। ई राज के कल्पना में नइखे बलुका लोक अर्थात जनता के कल्पना में बा।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, वरिष्ठ राजनीतिज्ञ आ केरल के महामहिम राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान कहलें कि हमनी के इहां एह संसार के तुलना एगो विषवृक्ष से कइल गइल बा। एह संसार से विष उत्पन्न होला बाकिर एमे दु गो अमृत से भरल फल लागला जेमे से पहिला हs काव्य आ दूसरका हs सत्पुरुष। काव्य हमनी के रस देला आ सत्पुरुष हमनी के मार्गदर्शन देला लोग। जवन लोग सार्वजनिक जिनगी में होला ओकर व्यस्तता एतना जादे होला कि ऊ किताब पढ़े के समय ना मिल पावेला। एगो दार्शनिक कहेलें कि जवन लोग किताब ना पढ़ेंला आ ओकरा एकर अधिकारे नइखे कि ऊ सार्वजनिक जिनगी के अंदर आवे। यू कहलें कि मनुष्य एगो अकेला जीव नइखे बाकिर जीव आ इंसान में फर्क का बा एकर अर्थ सदैव बदलत रहेला। इतिहास के बोध रखे वाला साहित्य पैदा कs सकत बा। वास्तविक लोकतंत्र में साहित्य के मूल मंत्र इहे बा कि इतिहास से सबक लेके वर्तमान तक खड़ा होखे के हुनर आ जाय। संवेदनशीलता मनुष्य के औरन से अलग करेला। संवेदनशीलता साहित्य के जननी हs। पहिले ई मानल जात रहे कि जवन सत्ता के खिलाफ लिखल रही उहे विश्वसनीय बा। बाकिर अब हमनी के ई फर्क करे के पड़ी कि ई धारणा ओह समय के बात हs जब सत्ता राजा रानी के कोख से पैदा होत रहे। ओह समय सत्ताधारी आज के तरह लोकतंत्र से पैदा ना होत रहे।

बुनियादी तौर पs टिप्पणी भा आलोचना के बगैर लोकतंत्र चल नइखे सकत बाकिर लोकतंत्र में दुराव के भावना ना होखे के चाहीं। हमनिये के बनावल सरकार बा ई अधिकार हमनी के ई आवे वाला समय में अइसन सरकारन के बदल दीं जवन हमनी के भावना पs खरी नइखे उतरत। एसे लोकतंत्र में एगो आत्मविश्वास पैदा होला आ खुद के सशक्तिकरण होला। पहिले खाली सुरक्षा के मानव समाज इकट्ठा होत रहे बाकिर आज समूचा दुनिया आगे बढ़ गइल बा आ आज देस के विकास आ प्रगति खातिर हमनी के साझेदारी आ सामरिक शक्ति बहुते जरुर बा। सरकारन के काम एकर संयोजन कs के एकरा के प्रोत्साहित करे के बा। भारतीय संस्कृति के एह विश्व को के एगो महत्वपूर्ण जोगदान बा। एह संस्कृति के मुख्य पहलू ई बा कि एह संस्कृत में मानव के दैवीकरण आ देवता के मानवीकरण कइल गइल बा। भारतीय संस्कृति के साहित्यिक विचारन पs भाव व्यक्त करत ऊ कहलें कि भारत के संस्कृति आत्मा से परिभाषित होला जवन सार्वभौमिक बा जवन हर केहू के लगे बा जवन अनंत बा जवन अमर बा। आत्मा रंग क्षेत्र जाति धर्म भा कवनो तरे भेद के अस्वीकार करेले। हमनी में से हर केहू के भीतर असीमित सम्भावना आ क्षमता मवजूद बा। दिव्यता के हासिल करे के क्षमता हर मानव में आइल अइसन विचार भारतीय संस्कृति के केंद्र में बा। भारत में भलही राजशाही के अस्तित्व रहल होखे बाकिर यहां आध्यात्मिक लोकतंत्र शाश्वत बनल रहल बा। एह कारण से एकरा विश्व में लोकतंत्र के मां के दर्जा हासिल बा। मानव समाज में जेतने शासन व्यवस्था विकसित कइल गइल बा ओम लोकतंत्र से बेहतर व्यवस्था कवनो नइखे। काहेकि एमे अकाउंटेबिलिटी बा। स्पिरिचुअल डेमोक्रेसी बुनियादी तौर पs भारत में हमेशा रहल। हालांकि ई राजनीतिक रूप से खंडित रहे बाकिर आध्यात्मिक आ सांस्कृतिक तौर पs ई मजबूती से जुड़ल रहे। आदि शंकराचार्य देस के चार कोनन में चार मठ स्थापित कइलें जब ऊ राजनीतिक रूप से खंडित रहे। बाकिर इहां बात चार मठन के ना बलुक एह बात के महत्व बा कि राजनीति के प्रभाव चाहे ईंटन से बनल मॉन्यूमेंट्स खंडित तs हो सकेला बाकिर वैचारिक मॉन्यूमेंट्स कबो खंडित ना होला। आदि शंकराचार्य बतवले कि तहरा अंदर असीमित संभावना बा। ऊ भगवान राम के उदाहरण देत बतवलें कि राम के चरित्र खुद के जाने के माध्यम हs। हम जवन बिहान रहनी ऊ आज नइखे बाकिर आत्मा ना बदलेला। ऊ अमर हs आ हर केहू के अंदर बा। सब में एगो के देखल आ एगो में सब के देखल भारतीय संस्कृति के विशेष गुण हs। गीता हमनी के इहे बतवलें। अपना उद्बोधन के अंत में ऊ कहलें कि लोकतंत्र एगो अइसन व्यवस्था बा जेमे रउआ आपन क्षमता के महसूस कर सकेनी, ओकरा के साकार कर सकेनी आ पूरा तरह फलीभूत कर सके। चुनौती हमनी के भविष्य ना तय करे बलुक हमनी के तय करी कि चुनौतियन के बीच हमनी के भविष्य कइसन होई।

उद्घाटन सत्र में सभे आगन्तुकन के प्रति आभार ज्ञापन आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन राय कइलें। सत्र के संचालन डॉ. श्रीभगवान सिंह कइलें।

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