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Assam के मजुली के मिलल जीआई टैग, 1500वीं सदी के मास्क के मिलल नया पहचान

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असम के माजुली से मास्क के जीआई टैग मिलल बा। इ मास्क बहुत खास बा, जवन गाय के गोबर, माटी आ बांस से बनल रंग-बिरंग के मास्क से बनल बा। एह बहुते रोचक मुखौटा के अब एगो नया पहचान मिल गइल बा । असम राज्य आजुकाल्हु लगातार सुर्खियन में बा काहे कि हालही में आदिवासी समुदाय आपन नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कर लिहले बा ।

अबकी बेर माजुली के जीआई टैग मिलल बा । माजुली के जीआई टैग मिले के पुष्टि खुद असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व सरमा कइले बाड़े। इ जानकारी उ अपना ट्विटर अकाउंट प देले बाड़े। बता दीं कि जीआई टैग मिलल बहुते खास होला काहे कि ई ऐतिहासिक आ पारंपरिक सामान के दिहल जाला जवना से वैश्विक स्तर प मान्यता मिलेला ।

उल्लेखनीय बा कि माजुली एगो मुँह के शिल्प ह, जवन 1500वीं सदी के पारंपरिक कला ह। असम के संस्कृति से एकर गहरा संबंध बा। ई कला मध्यकालीन काल में असम में संत शंकरदेव द्वारा शुरू कइल गइल रहे। समय के साथ ई कला भी असम के एगो महत्वपूर्ण अंग बन गइल। एह में अलग-अलग पात्र, भाव, विषय आ देवी-देवता के आकार देवे वाला मुखौटा तैयार कइल जाला। इ मास्क अपने आप में बहुत खास होखेला आ आम ना होखेला। माजुली के सामाजिक आ धार्मिक स्थिति के भी मुखौटा के माध्यम से चित्रित कइल गइल बा। इ मास्क देशी सामग्री से बनल बा। माजुली के गाँव में कुशल कारीगर मास्क तैयार करेले। एह पूरा प्रक्रिया में कारीगरन के साफ-सफाई के साथे काम करे के पड़ेला।

पाण्डुलिपि चित्र मुखौटा प कइल जाला

एह मुखौट प पाण्डुलिपि चित्रकला कइल जाला। एह में हिन्दू महाकाव्य के कई गो कहानी के चित्रण बा। खास कर के एहमें भागवत गीता आ पुराण से श्री कृष्ण के कहानी के चित्रण बा । मास्क खातिर जीआई टैग करावे के मूल उद्देश्य इ बा कि कलात्मक विशेषता के सुरक्षा होई आ एकरा के वैश्विक स्तर प ले आवल जाई।

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