“जाना” (मजदूर के गाथा) कविता प्रिंस रितुराज दुबे
‘जाना’
ढो ढो के बोझा कान्ह बथल
हाथे का आईल ये भईया |
बड़का बड़का के सपना सजइनी
ना लागल हाथे ठीक से खाहु क रुपईया |
कार करत जब हार जाई
भेली आ पानी से थकान मेटाई |
हमके जाना भा मजदुर कहल जाला
एही से हमसे छुआ छूत क भेद होला |
बिहाने बिहाने रोजे जागी
उगत सुरुज दईब क गोण लागी |
कपार से पसेना चुअत जाला
तबो ना हम आपन गोण रोकी |
बिपत परे चाहे होखे बरखा
कार ना छोड़ी हम घामा में |
खाली गोण दउरत चली
फोका निकले काट गड़े |
निति भईल इंडिया के ख़राब
जाने दोसरा से कब लिलो सिख |
जनावे खातिर मई दिवस मनावल जाता
मजूरी देबे घरी तोल मोल कईल जाला |
चलल जाव अब अबेर होता
बच्च्वन होईये भुखाईल घरे |
माई बाउजी के जोहत जोहत
सूत गईले बिना खईले |
जिनगी बा अनमोल सबके
सब के मिले दुःख के आगे सूख |
हमनी के करम बा फूटल
दुःख के आगे अवुरी मिले दुःख |
जाने कब दईब मेहरबान होईहे
बच्चन कब जईहे ईस्कुले |
पढ़ लिख के करम बनइहे
जिनगी कब होई खुशाल |
अजब जिनगी के समय बा भईया
ना मिले दाना ना लुगा |
दोसरा के हम जिनगी सजाई
अपने देह पS रहे फाटल कुरता आ लुगा |
प्रिंस रितुराज दुबे के परिचय
भोजपुरिया माटी-पानी में पनपल एगो नवहा जेकरा अपना भाखा भोजपुरी से आ संस्कृति में अटूट विश्वास आ लगाव बा। ‘प्रिंस रितुराज’ के परिचय इंहा एगो अइसन कवि आ निठाह भोजपुरिया जेकर कलम आ लेखनी जन सरोकार के बात करेला
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