फुलेरा दूज 2023 : आज से होली खेले खातिर तैयार राधा-कृष्ण, जानीं फुलेरा दूज से जुड़ल मान्यता
ज्योतिषी पंडित कल्की राम के अनुसार फुलेरा दुज के परब सबसे पहिले भगवान श्री कृष्ण राधा रानी के साथ द्वापर युग में मनवले रहले, तब से आज भी इ परंपरा के पालन कईल जाता।
फुलेरा दूज 2023 : आज से होली खेले खातिर तैयार राधा-कृष्ण, जानीं फुलेरा दूज से जुड़ल मान्यता
ज्योतिषी पंडित कल्की राम के अनुसार फुलेरा दुज के परब सबसे पहिले भगवान श्री कृष्ण राधा रानी के साथ द्वापर युग में मनवले रहले, तब से आज भी इ परंपरा के पालन कईल जाता।
सनातन धर्म में फागुन महीना के शुक्ल पक्ष के दूसरा दिन फुलेरा दुज के परब मनावल जाला। वैसे भक्त आ भगवान के बीच होली पर्व बसंत पंचमी के दिन से शुरू होला, लेकिन भगवान श्री कृष्ण आ राधा रानी से जुड़ल फूलन के होली के परंपरा अपने आप में बेजोड़ बा। भक्त लोग के भी इ परंपरा पसंद आवेला जवन प्रकृति के जीवंत करेले। त आईं बताईं कि फूल के होली के परंपरा काहे आ कइसे शुरू भइल|
असल में धार्मिक मान्यता के मुताबिक फुलेरा दुज के दिन भगवान श्रीकृष्ण अउरी राधा रानी फूल के होली शुरू क देले। तब से आजु ले भक्त लोग ओह परम्परा के पालन करत आइले बा| ज्योतिषी पंडित कलकीराम के कहनाम बा कि फुलेरा दुज के परब सबसे पहिले भगवान श्री कृष्ण द्वारा द्वापर युग में राधा रानी के संगे मनावल गईल रहे। तब से एह परम्परा के पालन हो रहल बा। आज के दिन भक्त भगवान श्रीकृष्ण के कमर में एगो छोट पीयर कपड़ा बान्हेले, जवना से इ संदेश मिलेला कि हमनी के भगवान अब होली खेले खातीर तैयार बाड़े।
कान्हा राधा के संगे होली खेलले
पौराणिक कथा के मुताबिक एक बेर भगवान श्रीकृष्ण कुछ काम में व्यस्त हो गईले अउरी राधा रानी से ना मिल पवले। राधा रानी समेत सगरी गोपी एह मामिला से दुखी हो गइले| प्रकृति पर भी एकर असर पड़े लागल। फूल आ जंगल सूखे लागल। चारो ओर उदासी आ शरद ऋतु रहे। जेकरा के देख के भगवान श्रीकृष्ण भी परेशान हो गईले। भगवान श्रीकृष्ण के जब एकर कारण पता चलल त उनुका पता चलल कि राधा रानी खिसियाईल अवुरी उदास बाड़ी, जवना के चलते प्रकृति के अयीसन असर होखता।
बरसाना जश्न में डूबल रहे
एकरा बाद भगवान श्रीकृष्ण मथुरा के बरसाना पहुंचले अउरी राधा रानी से मिलले। भगवान श्रीकृष्ण के अपना लगे देख के राधि रानी बहुत खुश हो गईली अउरी फूल तोड़ के फेंके लगली। एही दौरान कान्हा भी फूल तोड़ के राधा रानी पर फेंके लगले। दुनों के बीच के एह खेल में गोपीस भी शामिल हो गईले। सब लोग एक दूसरा पर फूल के बरसात करे लगले। कहल जाला कि ओह दिन फागुन महीना के शुक्ल पक्ष के दुसरका तिथि रहे। एही से तब से ई तिथि फुलेरा दुज के नाँव से जानल जाए लागल।
(नोट: इहाँ दिहल जानकारी धारणा के आधार पे बा। खबर भोजपुरी एकर पुष्टि नईखे करत।)
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