फाल्गुन के महीना में देशवासी बेसब्री से होली के इंतजार करेले। देश के दु जगह पs होली बहुत खास मानल जाला, पहिला ब्रज में अवुरी दूसरा काशी में। काशी के होली के भस्म के होली कहल जाला। एह दिन नागा साधू आ अघोरी साधू लोग भस्म से होली खेलेला. कहल जाला कि देश के बाकी हिस्सा से एक दिन पहिले काशी में होली मनावल जाला। अइसना में होलिका दहन कब होई आ होली कब होई ई जानीं?
होलिका दहन आ होली कब होई?
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पाण्डेय अउर प्रो. गिरिजाशंकर त्रिपाठी एगो अखबार के दिहल साक्षात्कार में बतवले कि अबकी बेर फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च के सबेरे 10.02 बजे से सुरू होई जवन 14 मार्च के अगिला दिने सबेरे 11.11 बजे ले चली। रात्रिव्यापिनी पूर्णिमा के रात में होलिका दहन के परंपरा के चलते 13 मार्च के रात में ही होलिका दहन होई।
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एकरा संगे काशी में होलिकात्सव भी शुरू हो जाई। एकरा संगे चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के चलते अगिला दिन 15 मार्च के देश भर में रंग के पर्व होली मनावल जाई। 15 मार्च के उदयातिथि में प्रतिपदा के रात 12.48 बजे ले रही।
काशी के ज्योतिषी आगे बतवले कि 13 मार्च के पूर्णिमा के तारीख सुबेरे 10.02 बजे से शुरू होई, एकरा संगे भद्रा भी मनावल जाई, जवन रात 10.37 बजे खतम होई। भद्रा में होलिका दहन पs रोक बा एहसे रात के 10.37 बजे के बाद ही होलिका दहन होई।
काशी में सबसे पहिले होली काहे मनावल जाला?
बतावल जाता कि काशी में होलिका दहन के बाद भोर में 64 गो योगिनी यानी 64 गो देवी के देख के आ चक्कर लगा के होली खेले के परंपरा बा। ई परिक्रमा आ पूजा होलिका दहन के बाद ठीक सबेरे शुरू होला। इहे कारण बा कि काशी में पूर्णिमा भा प्रतिपदा होलिका दहन होते ही लोग होली खेले लागेला, अइसन स्थिति में अक्सर अइसन होला कि पूरा देश से पहिले काशी में होली मनावल जाला।